राकेश धर द्विवेदी II
मंगलदीप जलाओ
अंतस में जो फैले अंधियारे
उसको दूर भगाओ
मंगलदीप जलाओ।
हर साल मरता है रावण
फिर भी सीता बिलखती है,
जुल्म-लूट में डूबा शासक
जनता सोती रहती है,
जनता-जनार्दन को उसकी
कुंभकर्णी नींद से जगाओ
हे शासक! तुम प्रजा के बन जाओ।
सुख-समृद्धि लाओ
मंगलदीप जलाओ।
मन-वीणा के तार जो टूटे
फिर से जोड़ना है उनको
न्याय धर्म और सहिष्णुता के
बीज नए फिर से बोने हैं
मंगलदीप जलाओ।
हर बार सत्य ही जीते बाजी
असत्य-अज्ञानता के रावण को
अबकी बार जलाओ,
रामराज्य के सपने को
तुम पूरा कर दिखलाओ।
सुनो भाई/सुनो बहन
मंगलदीप चलाओ।