कविता काव्य कौमुदी

मन में उजियारे के लिए जलाओ मंगलदीप

राकेश धर द्विवेदी II

मंगलदीप जलाओ
अंतस में जो फैले अंधियारे
उसको दूर भगाओ
मंगलदीप जलाओ।
हर साल मरता है रावण
फिर भी सीता बिलखती है,
जुल्म-लूट में डूबा शासक
जनता सोती रहती है,
जनता-जनार्दन को उसकी
कुंभकर्णी नींद से जगाओ
हे शासक! तुम प्रजा के बन जाओ।

सुख-समृद्धि लाओ
मंगलदीप जलाओ।

मन-वीणा के तार जो टूटे
फिर से जोड़ना है उनको
न्याय धर्म और सहिष्णुता के
बीज नए फिर से बोने हैं
मंगलदीप जलाओ।

हर बार सत्य ही जीते बाजी
असत्य-अज्ञानता के रावण को
अबकी बार जलाओ,
रामराज्य के सपने को
तुम पूरा कर दिखलाओ।
सुनो भाई/सुनो बहन
मंगलदीप चलाओ।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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