विनीत मोहन औदिच्य II
अनुत्तरित रहा है यह शाश्वत प्रश्न
पूछता रहा हूँ स्वयं से, कौन हूँ मैं ???
मिथ्या गर्वोक्त, प्रतिज्ञाबद्ध भीष्म ?
सुविधा भोगी द्रोण या कृपाचार्य ?
महत्वाकांक्षी मोह ग्रस्त अंध धृतराष्ट्र ?
अति मदान्ध, हठी दुर्योधन ?
द्यूत निपुण, कुटिल- शिरोमणि शकुनि ?
तिरस्कृत – उपकृत, अज्ञात राधेय ?
निर्लज्ज, क्रूर दुशासन ?
कामुक, अनाचारी जयद्रथ ?
असहाय, भ्रमित शल्य ?
अंतहीन व्रण पीड़ा भोगने भटकता हुआ
मणि कांति विहीन अश्वत्थामा ?
विधर्मियों की राजसभा में
दांतों के मध्य जिव्हा सा विवश विदुर ?
इन सभी का हूँ मैं समुच्चय
यही है मेरा यथार्थ,
मैं हूँ मात्र भक्ति हीन, निर्गुण,
स्वयं की कामनाओं के वशीभूत,
एक अभिशप्त यायावर !!!
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