काव्य कौमुदी ग़ज़ल/हज़ल

अनीस ‘मेरठी’ जी की तीन ग़ज़लें

अनीस ‘मेरठी’ II

..जब शबे फुरक़त किसी की मुन्तज़िर होती है आँख ,
तब खुले दर से लिपट कर रात भर रोती है आँख ।।
..
यूँ तो कहने को बहुत नाज़ुक सी शय है जिस्म की ,
बावजूद इसके हया का बार भी सहती हैं आँख ।।
..
अज़मते किरदार  से महरूम हो जाते हैं लोग
दौलते  शर्मो हया को जब कभी खोती है आँख ।।
..
खोल देती है दिलो के राज़ भी यह बारहा,
बे ज़बां लोगों के दिल की तरजुमा होती है आँख।।
..
जागती रहती है जब तक सोज़शे ज़ख्म ओ जिगर 
ऐ अनीस मेरठी तब तक कहाँ सोती है आँख।।

२ ।I
कोई साग़र ,कोई पैमाना नहीं,
गर्दिशें हैं और मैखाना नही ।
.
हाय उलफत मेरी सूरत क्या हुई ,
आज उसने मुझको पहचाना नही ।
.
आरज़ू करता हूँ अब भी वस्ल की ,
और क्या हूँ जो मैं दीवाना नही ।
.
क्या सुनोगे मुझसे रूदादे वफा ,
मेरी बातें होश मंदाना नही ।
.
अश्क रेज़ी है सुकूने दिल ‘अनीस’
ज़ब्त करके इनको पी जाना नही। 

३ II
ऐसे तेरा रूप छुपाया मुझसे तेरे आंचल ने,
जैसे खिलती धूप चुराली हो आवारा बादल ने।
.
सांसो की तादाद अटल है जाने कितनी बाकी हों
सोचो! कितनी उम्र घटा दी एक तुम्हारी कल कल ने ।
.
मेरी याद भी उसके दिल पर अकसर दस्तक देती है
राज़ ये खोला बहकर उसके रुख़सारों पर काजल ने ।
.
ग़म के खिलौने देकर मुझको कितने प्यार से पाला है
बरबादी के सहराओं ने तकलीफों के जंगल ने ।
.
मंज़िल का पा लेना अब तो और भी मुश्किल लगता है
सारे रस्ते रोक लिए हैं खुदग़र्जी की दल दल ने।
.
सोना फिर सोना कहलाए चाहे जितनी खोट मिले
खुद अपनी पहचान गंवाई मिल कर उसमे पीतल ने ।

About the author

अनीस मेरठी

जनाब अनीस 'मेरठी' का जन्म ज़िला मुरादाबाद के 'हरि नूरपुर' गांव में 31 जनवरी 1936 में हुआ ,पिता सरकारी कर्मचारी थे अतः परिवार मेरठ में आकर बस गया ,वहीं शिक्षा हुई और शुरुआती लेखन वहीं से शुरू किया इसलिए नाम के साथ 'मेरठ' तखल्लुस जोड़ लिया ,
मेरठ से रुड़की तबादला होने के कारण यह परिवार यहीं का हो गया ,रुड़की में ही विद्युत विभाग में नौकरी की और सेवानिवृत्त हो स्वतंत्र रूप से लेखन को समर्पित हो गए,
इनका ग़ज़ल संग्रह 'चाहते और भी हैं पाठको द्वारा बहुत सराहा जाता है ,
अनीस 'मेरठी' ग़ज़ल ,नज़्म क़तआत आदि बहुत खूबसूरती से कहते हैं .

1 Comment

Leave a Comment

error: Content is protected !!