जातिगत अध्ययनों की प्रख्यात शोधकर्ता डॉ गेल ओमवेट बहुत याद आएंगी। डॉ ओमवेट (81) ने महाराष्ट्र के सांगली जिले के कासेगांव में बीते दिनों अंतिम सांस ली। उन्होंने विद्यार्थी के रूप में अमेरिका से लौटने के बाद सत्तर के दशक में भारत में बसने के बाद जातिगत अध्ययन का बीड़ा उठाया। उन्होंने एक मार्क्सवादी विद्वान एवं कार्यकर्ता भरत पाटनकर से शादी की। यह दंपति गांव में रहा।
उनके एक सहयोगी ने बताया कि पहली बार पीएचडी छात्रा के रूप में महाराष्ट्र में महात्मा फुले के आंदोलन का अध्ययन करने आईं ओमवेट भारत में जाति एवं अस्पृश्यता व्यवस्था से बहुत दुखी हुईं। उत्पीड़ित जातियों की मुक्ति के लिए काम करने वास्ते महाराष्ट्र में ही बस गईं। वे अमेरिकी मूल की भारतीय विद्वान थीं और आदिवासियों पर अपने लेखन के लिए जानी जाती थीं।
ओमवेट एक प्रख्यात लेखिका थीं। उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उनके शोध ने महात्मा फूले के ‘सत्यशोधक’ आंदोलन को दुनिया के सामने पेश किया। उनकी पुस्तक, ‘दलित और लोकतांत्रिक क्रांति’ युवा छात्रों के बीच लोकप्रिय हो गई। फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्तित्व, वह कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थीं।
मिनियापोलिस में जन्मीं, डॉ ओमवेट अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद भारत लौटीं और खुद को दलितों, गरीबों-वंचितों, किसानों, महिलाओं और अन्य सार्वजनिक नेक कार्यों के लिए विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में झोंक दिया।
ओमवेट-पाटनकर दंपति ने 1980 के दशक की शुरुआत में श्रमिक मुक्ति दल की स्थापना की और इस अवधि के दौरान वह एक भारतीय नागरिक बन गईं। उन्होंने विभिन्न सामाजिक विषयों पर कई किताबें लिखीं, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया और विभिन्न समाचार पत्रों के लिए कॉलम लिखे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, ऑक्सफैम एनओवीआईबी और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों के लिए काम किया। उन्होंने समाजशास्त्र विभाग के तहत पुणे विश्वविद्यालय में फुले-आंबेडकर पीठ का नेतृत्व किया। उन्होंने कोपेनहेगन में एशियाई अध्ययन संस्थान में भी पढ़ाया।
उनके निधन पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने शोक प्रकट किया।
डॉ ओमवेट भारत में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों, संत साहित्य, लोक परंपराओं में योगदान और महिला अधिकारों पर कार्य हमेशा याद आएंगी। (स्रोत समाचार एजेंसी)
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