अंजुम बदायुनी II
मशीख़तों को फ़रोग़ देना नहीं है हुस्ने – विक़ार मेरा
न इतनी हल्की ज़ुबान मेरी न इतना नीचा शयार मेरा
ये क़द-बुलन्दी की कोशिशें सब सुकूने दिल को मिटा रही हैं
जो सिमटा, सिमटा वुजूद में है वो ही है आखिर क़रार मेरा
चमकते चेहरे, संवरते गेसू, मचलते आँचल, बहकते नग़मे
ये सारे मन्ज़र फरेबकुन थे बढ़ा गए इंतशार मेरा
मेरा मिज़ाजे-सुकूते-ख़लवत, तेरा ये बहरे-शऊरे-उल्फ़त,
ऐ काश तुझमें उठें वो लहरें जो बदलें अंदाज़े-कार मेरा
मैं बे-हुनर हूँ, मैं बे-असर हूँ मगर हूँ तख़लीके-ख़ालिक़े-कुल,
तलाश मुझमें मशीयते-रब, मिलेगा कुछ इक़तिदार मेरा
कहाँ ये दुनिया की शर-पसंदी, कहाँ ये “अंजुम” मेरी सदाक़त,
कभी तो आवाज़े – हक़ उठेगी, कभी तो होगा शुमार मेरा
मशीख़्त : शेख़ी, घमंड, फ़रोग़ : बढ़ावा
हुस्ने विक़ार : गौरव का सौंदर्य शयार : रंग-ढंग, तौर तरीक़ा
फ़रेबकुन: धोखा देने वाले, इंतशार : बिखराव
मिज़ाजे-सुकूते-ख़लवत : एकांत शांति की आदत
बहरे शऊरे उल्फ़त: सभ्य प्रेम का समुद्र,
अंदाज़े कार:कार्य शैली तख़लीके ख़ालिक़े कुल : ईश्वरीय रचना,
मशीयते रब: ईश्वर की इच्छा, इक़तिदार : प्रभुत्व
शर : बुराई, सदाक़त : सच्चाई, सादगी, शुमार : गणना
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