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विनोद कुमार शुक्ल को महत्तर सदस्यता

नई दिल्ली । साहित्य अकादेमी ने इस बार हिंदी और अंग्रेजी के दो शीर्षस्थ कथाकारों को महत्तर सदस्यता प्रदान की है। ये हैं विनोद कुमार शुक्ल और रस्किन बांड। महत्तर सदस्यता साहित्य अकादेमी की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। अकादेमी की फेलोशिप पाने वालों में पंजाबी के तेजवंत सिंह गिल, संस्कृत के रामभद्राचार्य, तमिल से इंदिरा पार्थसारथी, बांग्ला से शीर्शेंदु मुखोपाध्याय, मराठी से भालचंद्र नेमाडे और मलयालम से एम लीलावती हैं।
 एक विज्ञप्ति में बताया गया कि साहित्य अकादेमी की आम परिषद में अध्यक्ष चंद्रशेखर कांबर की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें साहित्यकारों को सर्वोच्च सम्मान देने का फैसला किया गया। साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने बताया कि इस बैठक में विनोद कुमार शुक्ल और रस्किन बांड तथा छह अन्य लेखकों को साहित्य अकादेमी फेलोशिप देने के लिए चुना गया।
   विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रख्यात कवि और उपन्यासकार हैं। साल 1971 में उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिंद’ प्रकाशित हुआ था। इसके आठ साल बाद 1979 में उनका उपन्यास नौकर’ की कमीज छप कर आया।  इसके कथानक से प्रभावित होकर मणि कौल ने इसी नाम से फिल्म बनाई। उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए साल 1999 में शुक्ल को साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया था। उपन्यास ‘खिलेगा तो देखेंगे’ भी खासा चर्चित रहा। विनोद कुमार शुक्ल के कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ को भी पाठकों ने पसंद किया।
विनोद कुमार शुक्ल के लेखन में एक विशिष्ट भाषिक बुनावट दिखती है। संवेदना के स्तर पर हम असीम गहराई पाते हैं। उनके शब्दों में जादू है। उन्होंने अपनी कविताओं में जनजीवन को उकेरा है। शुक्ल ने एक जगह कहा है कि मैं हर उस व्यक्ति के साथ हूं जो हाशिए पर है।
एक जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जन्मे शुक्ल ने अध्यापन को रोजगार बनाया और अपना ध्यान साहित्य पर केंद्रित किया। शुक्ल को रजा पुरस्कार, मध्य प्रदेश शिखर सम्मान और रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार के अलावा कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
इस मौके पर हम पढ़ते हैं विनोद कुमार शुक्ल की एक चर्चित कविता-

जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे
मैं उनसे मिलने      
उनके पास चला जाऊंगा।
एक उफनती नदी
कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने,
नदी किनारे जाऊंगा
कुछ तैरूंगा और डूब जाऊंगा।
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़, खेत
कभी नहीं आएंगे मेरे घर,
खेत खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गांव-गांव जंगल-गलियां जाऊंगा।
जो लगातार काम से लगे हैं,
मैं फुरसत से नहीं
उनसे एक जरूरी काम की तरह
मिलता रहूंगा।
इसे मैं अकेली आखिरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूंगा

(अश्रुतपूर्वा टीम)

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