अश्रुत पूर्वा II
नन्हीं मिन्टी दोपहर स्कूल से घर लौटी। रोज की तरह आज भी वह स्कूल बैग कोने में रख दबे पांव बाहर खेलने जाने लगी। लेकिन तभी मां ने उसे देख लिया। बोली, मिन्टी पहले खाना खा लो। फिर खेलने जाना। मन मार कर मिन्टी खाना खाने बैठ गई। जल्दी जल्दी खा कर वह घर के बाहर बनी छोटी सी बगिया की ओर भाग निकली। वहां चहलकदमी करते हुए उसने देखा कि कई पौधों पर फूल खिल गए हैं। रंग-बिरंगे फूलों के बीच कुछ तितलियों को झूमती-इठलाती देख कर मिन्टी का मन नाच उठा। वह सोचने लगी कि काश मैं भी तितली होती।
एक फूल से दूसरे फूल पर जाकर बैठने वाली तितलियों को देखकर ऐसा लगता था कि वे फूलों से बात कर रही हों। फूलों पर बैठी तितलियां भी फूलों जैसी ही लग रही थीं। एक फूल पर बैठी रंग-बिरंगे पंखों वाली तितली को देख कर मिन्टी का मन उसे पकड़ने के लिए ललचा उठा। उसने जैसे ही हाथ बढ़ाया, तितली उड़ कर दूसरे फूल पर जा बैठी। लेकिन मिन्टी ने घात लगा कर उसे पकड़ ही लिया।
पकड़े जाने पर तितली रोने लगी। उसने नटखट मिन्टी से विनती की, छोड़ दो मुझे नहीं तो मेरे पंख टूट जाएंगे। मिन्टी को उस पर दया आ गई। बोली, छोड़ दूंगी। लेकिन पहले अपना नाम तो बताओ। तितली ने कहा, मेरा नाम रानी है। मैं बहुत दूर से आई हूँ। शाम होते ही मुझे घर लौटना है। तितली रानी में छोड़ दूंगी तुम्हें पर कुछ अपने बारे में मुझे बताओ न, मिन्टी ने प्यार से कहा।
तितली ने कहा, देखो अगर मुझे इस तरह अपनी उंगलियों में जकड़े रखोगी तो नाजुक बालों से ढके मेरे शरीर को तकलीफ होगी। और मेरे पंखों पर जो चमकीले बाल हैं, वे झर जाएंगे। मिन्टी ने बंधन ढीला किया, पर छोड़ा नहीं। तितली मुस्कुराई मैं देखने में छोटी जरूर लगती हूँ, पर हूँ बड़े काम की। लोगों की यह शिकायत है कि हम फूलों से मधु चुराती हैं। हम क्यों भला फूलों से मधु चुराने लगे। ये फूल-पौधे और पत्ते ही तो हमारे अपने हैं। जिनके बीच हम अपने रेशमी पंख लहराते उड़ती रहती हैं।
मिन्टी ने तितली को नजदीक से देखा। नन्हीं तितली की दोनों आंखें मोती की तरह चमक रही थीं। उसके पास ही नोकदार लंबा एंटीना अजीब सा लग रहा था। उसके दोनों रंग-बिरंगे पंख बहुत सुंदर लग रहे थे। मिन्टी ने सहसा पूछा, तुम जन्म से ही इतनी सुंदर होती हो तितली रानी? तितली ने कहा, नहीं। अंडों से तितली बनने की एक लंबी कहानी है।
तितली ने बताया, एक मादा तितली कई सारे अंडे देती हैं। अंडे देने के लिए तितलियां ऐसी जगह का चुनाव करती हैं जहां किसी तरह का खतरा न हो। हम पौधों की पत्तियां भी पुरानी के बजाए ताजी हरी चुनती हैं ताकि अंडों से निकलने वाले लार्वा इन्हें आसानी से कुतर सकें। यह लार्वा ही धीरे-धीरे बनता है। इसका आकार बिना पंख की तितली जैसा होता है। कुछ समय बाद प्यूपा इल्ली में बदल जाता है। इल्ली को तुम खोल में बंद तितली मान सकती हो। इल्ली के भीतर एक द्रव निकलता रहता है। इसी से तितली के पंख बनते हैं। पंख बनते ही तितली खोल को कुतर कर बाहर आ जाती है।
फिर तो फुर्र से उड़ जाती होगी तितली। मिन्टी ने खिलखिला कर कहा। तितली बोली, नहीं ऐसी बात नहीं। खोल से बाहर निकलने पर तितली के पंख सिकुड़े रहते हैं। उसे अपने पंखों के सूखने का इंतजार करना पड़ता है। पंख सूखते ही उसके रंग खिल उठते हैं। और फिर रंग-बिरंगे पंखों को फरफराते उड़ चलती है तितली।
ऐसे… यह कहते हुए शैली ने तितली को छोड़ दिया।
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