कहानी बाल वाटिका

सुवर्णक का मुकुट

बालेंदु दाधीच II

कंचनवन में रहता था, एक मोर। नाम था- सुवर्णक। नाम से अनुरूप ही सुवर्णक का चमचमाता सुनहरा शरीर बहुत सुंदर था। लंबे-लंबे पंख, नीले शरीर पर सुंदरता के साथ सजे हुए थे। जब उसके पंख रोशनी में चमचमाते तो सुवर्णक का नीला शरीर एकदम सोने सा लगता। अपनी नीली लंबी गर्दन को ऊंचा उठा कर जब वह कूकता तो सारे जंगल में मिठास गूंज जाती। सुवर्णक के सिर पर कलगी बहुत सुंदर थी। वह प्राय: उसे पानी में निहारता।

एक दिन सुवर्णक नदी के किनारे पानी पीकर ज्यों ही तन कर खड़ा हुआ कि अपनी कलगी की परछाई पर उसकी नजर पड़ी। उसकी सुंदरता देख कर वह जोर से कूका ‘अहा! मेरा मुकुट कितना सुंदर है। पास ही पेड़ पर चतुर सिंह बैठा था, सुवर्णक की कूक सुनते ही वह मन ही मन जल कर राख हो गया। चतुर सिंह एक कौआ था।

‘हूँ ! सुवर्णक के पास मुकुट है। हो सकता है मेरे सिर पर भी हो।’ चतुर सिंह ने सोचा और नदी की ओर उड़ गया। एक धूर्त कौवे को अपनी ओर आते देख सुवर्णक भी उड़ चला फड़फड़ा-फड़!

चतुर सिंह ने नदी में अपनी परछाई देखी। ‘बाप रे मैं कितना बदसूरत हूं।’ चतुर सिंह ने कहा, फिर वह अचानक चौंक पड़ा।’ अरे मेरे सिर पर तो मुकुट है ही नहीं। कुछ देर शांत रहने के बाद उसने सोचा, ‘अरे हां ! और दूसरे कौवों के सिर पर भी तो मुकुट नहीं है। हम सब कितने सारे कौवे जंगल में रहते हैं और किसी के सिर पर मुकुट नहीं है। उधर वह सुवर्णक पूरे जंगल में एक ही मोर है और उसके पास मुकुट है।

फिर चतुर सिंह जोर से चिल्ला उठा-कांव ! कांव !! कांव !! कुछ ही देर में कौवों के झुंड के झुंड वहां जमा होने लगे। जब पूरे कौवों की जमात जमा हो गई तो चतुर सिंह ने भाषण देना शुरू किया, दोस्तों हमारे साथ अन्याय हुआ है। सुवर्णक अकेला मोर है, पर उसके पास सुंदर मुकुट है और हम सब हजारों कौवे हैं पर हमारे पास एक भी मुकुट नहीं। ऐसा क्यों ?

सारे कौवे चिल्लाए, चतुर ठीक कहता है, सुवर्णक के पास चलो।

और सब के सब सुवर्णक के पेड़ की ओर उड़ चले। सुवर्णक के पेड़ को उन्होंने चारों ओर से घेर लिया। फिर मटकू कौवे ने सुवर्णक से कहा, सुवर्णक हमें भी मुकुट चाहिए, हमें बताओ वह कैसे मिलेगा? लटकू भी लगे हाथ बोल उठा, जब तक तुम हमें इसकी तरकीव नहीं बताओगे हम यहां से जाएंगे नहीं। इसके साथ ही सारे कौवे चिल्ला उठे, हमें मुकुट चाहिए। कौवे की मूर्खता पर सुवर्णक को मन ही मन हंसी आ गई। वह समझ गया कि उसे ऐसी तरकीब लगानी होगी कि कौवे संतुष्ट हो जाएं।

यहां से पांच सौ मील दूर नंदनवन में जो बर्फीला तालाब है, उसमें तुम सबको नहा कर आना होगा और वह भी सुबह पौ फटने से पहले। अगर तुम सब इस शर्त को पूरा कर दोगे, तो तुमको भी सुनहरे मुकुट मिल जाएंगे। सुवर्णक ने कहा और मुस्करा कर कौवों की ओर देखने लगा। वह जानता था कि उन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही थी और कोई कौवा इतनी हिम्मत नहीं कर सकता था।

सब कौवे सहम गए। वे कानाफूसी करने लगे । बाप रे ! पांच सौ मील दूर कौन उड़ेगा ? मोटू फुसफुसाया।

और फिर बर्फीले तालाब में स्नान! ना बाबा ना।  लपटू ने आंखें नचाई।

और वह भी पौ फटने से पहले, इस कड़ाकेदार जाड़े में। छोटू बोल पड़ा ।

हमें नहीं चाहिए ऐसा मुकुट।’ सबने मन ही मन सोचा और चुपचाप वहां से खिसकने लगे। कुछ ही देर में सारे कौवे चले गए।

इधर सुवर्णक अपनी ही अक्लमंदी पर खुश हो गया। उसने राहत की सांस ली। 

फोटो- साभार गूगल

About the author

बालेंदु दाधीच

बालेंदु दाधीच देश के जानेमाने तकनीकीविद् हैं। मगर इससे पहले वे लेखक और पत्रकार हैं। वे राजस्थान पत्रिका और जनसत्ता में महत्त्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। इसके अलावा प्रभासाक्षी डॉट कॉम के समूह संपादक भी रह चुके हैं। बालेंदु इस समय माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय भाषाओं के प्रभारी हैं। बालेंदु ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी विषय पर कई किताबें लिखी हैं। वे कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हो चुके हैं। उन्हें राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं।

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