कहानी बाल वाटिका

अक्ल बड़ी या भैंस

सुकेश साहनी II

स्कूल से घर लौटते ही उदय ने चक्की के दो भारी पाट जैसे-तैसे स्टोर से बाहर निकाल लिए. फिर उन्हें लोहे की एक छड़ के, दोनों सिरों पर फसा कर भारोत्तोलन का प्रयास करने लगा। चक्की के पाट बहुत भारी थे। प्रथम प्रयास में ही उसके पीठ में दर्द जागा और वह चीख पड़ा।
उसकी चीख सुनकर माँ रसोईघर से दौड़ती हुई आ गयी। उदय की पीठ में असहनीय पीड़ा हो रही थी। उन्होंने उदय को तब कुछ नहीं कहा। वे उदय को एक तरह से एक अच्छा लड़का मानती थी। उदय जब कुछ राहत-सी महसूस करनेे लगा तो उन्होंने कहा, “बेटा, तुम्हें आज यह क्या सूझी?”

जवाब में उदय की आँखें भर आयीं, “माँ, आज स्कूल में मदन ने फिर मेरा हाथ उमेठ दिया। वह मुझसे बहुत तगड़ा है। मैं उससे भी जयादा तगड़ा बनूँगा।”
“अच्छा, पहले यह बताओ, स्कूल में तुम्हारे अध्यापक किसे अधिक चाहते हैं, तुम्हें या मदन को?”

“मुझे।”

माँ ने उसे समझाया “तुम्हारी बातों से स्पष्ट है कि मदन में शारीरिक बल है, बुद्धि नहीं है। बुद्धिमान आदमी अपने गुण की डींगे नहीं हाँकता। तुम चाहो तो अपनी बुद्धि के बल पर उसका घमंड दूर कर सकते हो।”

माँ के समझाने से उदय को नई शक्ति मिली! वह सोचने लगा। सोचते-सोचते उसकी आँखें खुशी चकम उठीं।

अगले दिन खेल के मैदान में उदय अपने कुछ मित्रो के साथ खड़ा था। तभी वहाँ मदन भी आ गया। अपनी आदत के मुताबिक आते ही उसने डींग हांकनी शुरू की, “देखो, मैं यह पत्थर कितनी दूर फैंक सकता हूँ।” इतना कह कर वह एक भारी से पत्थर को फेंक कर दिखाने लगा।
“मदन, मुझसे मुकाबला करोगे?” मदन ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा।

“ज्यादा घमंड ठीक नहीं होता,” उदय ने अपना ध्यान उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा “इस रूमाल को ही ज़रा उस पत्थर तक फेंक कर दिखा दो।”

“बस ये…ये लो।” मदन ने पूरी ताकत से रूमाल फेंका। रूमाल हवा में लहराता हुआ पास ही गिर गया।

उदय ने हँसते हुए कहा, “तुम इस ज़रा से रूमाल को ही नहीं फेंक पाए, पर मैं इस रूमाल के साथ-साथ एक पत्थर को भी तुमसे अधिक दूरी पर फेंक सकता हॅूँ।” यह कह कर उदय ने रूमाल में पत्थर लपेटा और उसे काफी दूर फेंक दिया। सभी लड़के जोर-जेार से तालियाँ बजाकर हंसने लगे। मदन का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया।

शाम को उदय खुशी-खुशी स्कूल से वापस लौट रहा था। वह आज की घटना जल्दी से जल्दी अपनी माँ को बताना चाहता था।

साभार : गद्यकोश

About the author

सुकेश साहनी 

जन्म : 5 सितम्बर, 1956(लखनऊ)

शिक्षा : एम.एस-सी. (जियोलॉजी), डीआईआईटी (एप्लाइड हाइड्रोलॉजी) आईआईटी मुम्बई से।

कृतियाँ : डरे हुए लोग(1991), ठंडी रजाई(1998), साइबरमैन(2019 ), (लघुकथा-संग्रह), भगीरथ परिहार द्वारा लिखित 'कथाशिल्पी सुकेश साहनी की सृजन संचेतना(2019 ) सुकेश साहनी की 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल(1917), लघुकथा : सृजन और रचना-कौशल(आलेख संग्रह,2019), मैग्मा और अन्य कहानियाँ (2004, कहानी-संग्रह), अक्ल बड़ी या भैंस (2005,बालकथा-संग्रह), लघुकथा संग्रह पंजाबी, गुजराती, मराठी, उर्दू एवं अंग्रेजी में भी उपलब्ध। मैग्मा कहानी सहित अनेक लघुकथाएँ जर्मन भाषा में अनूदित। अनेक रचनाएँ पाठयक्रम में शामिल, ‘रोशनी कहानी पर दूरदर्शन के लिए टेलीफिल्म। ठंडी रजाई , दादा जी, कुत्ते से सावधान आदि लघुकथाओं पर शार्ट फिल्म ।

अनुवाद : खलील जिब्रान की लघुकथाएँ (1995), पागल एवं अन्य लघुकथाएँ (2004), विश्व प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित अपराध कथाएँ (2001),

सम्पादन : हिन्दी लघुकथा की पहली वेब साइट .laghukatha.com का वर्ष 2000 से सम्पादन ‘हिमांशु ’ जी के साथ।लघुकथा विषयक अनेक पुस्तकों का संपादन।

सम्मान : माता शरबती देवी पुरस्कार 1996,माधवराव सप्रे सम्मान 2008, दया दृष्टि अतिविशिष्ट उपलब्धि सम्मान 2009, वीरेन डंगवाल स्मृति साहित्य सम्मान-2018 आदि

सम्प्रति : भूगर्भ जल विभाग उ.प्र. के निदेशक पद से सेवानिवृत्त

सम्पर्क : 185,उत्सव पार्ट 2, महानगर बरेली-243006

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