कविता काव्य कौमुदी

दो मुक्तक

राम नरेश तिवारी ‘निष्ठुर’ II

(1)
अश्रुत पूर्वा सारस्वत स्रोत,
अनन्ताक्षर इसमे निखरेगा।
शब्द-शब्द बन सुमन सुगंधित,
सागर सुरभि का बिखरेगा।
साहित्य अनूठा पहले जो ना,
लिखा गया ना सुना गया हो,
भारत के साहित्य गगन मे,
सूर्य चाँद बन निखरेगा।

(2)
वर्षगाँठ अश्रुत पूर्वा की,
विद्वत जन जो आये हैं।
सबका वन्दन अभिनन्दन,
वाणी का प्रसाद जो लाये हैं।
भारत की राजधानी मे यह,
आयोजन आयोजित है,
अहोभाग्य एम पी स्पीकर,
उद्घाटन मे आप बुलाये हैं।

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राम नरेश तिवारी 'निष्ठुर'

प्रसिद्ध बघेली कवि, कथाकार एवं व्यंग्यकार ।

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