कहानी

डर

चित्र ; साभार गूगल

नीता अनामिका II

फोन की घंटी बज रही थी। नंदिनी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त थी। जब उसने फोन उठाया तो देखा दूसरी तरफ बड़े भैया थे। नंदिनी जैसे ही हेलो कहा, भैया बोल उठे, बेटा, दीदी के ससुर अब नहीं रहे हो, सके तो तुम उसके घर पहुंचो। हम सभी भी पहुंच रहे हैं। नंदिनी ने हामी भर दी और झटपट अपने काम निपटाने लगी। करीबन 5:00 बजे वह घर से निकल पड़ी। दीदी के घर पहुंचने में उससे डेढ़ घंटे लग गए वहां पहुंचकर देखा कि दीदी के ससुर का शव पड़ा था। परिवार के सभी लोग इकट्ठा थे। घर से निकलते वक्त नंदिनी ने अपनी 14 वर्षीय बेटी को समझा आई थी कि किसी भी हालत में दरवाजा न खोले और कोई बात हो तुरंत फोन कर दे।

नंदिनी का छोटा सा तीन लोगों का परिवार था। वह, उसकी बेटी और पति। उसके पति शहर से बाहर नौकरी करते थे। नंदिनी अपनी बेटी के साथ अकेली फ्लैट में रहती। काम के तामझाम में काफी समय गुजर गया समय घड़ी देखी तो रात के 9:00 बज रहे थे। शव उठने की तैयारियां हो चुकी थीं। सभी उदास चेहरे लिए खड़े थे। यह सब होते होते रात के दस बज चुके थे।

नंदिनी को अब चिंता सताने लगी कि इतनी रात को घर कैसे जाया जाए। वह भैया से आहिस्ता से बोली,मैं निकलती हूं घर पर बेटी अकेली है। मुझे घर पहुंचने में देर हो जाएगी। यह सुन कर भैया बोले बॉडी निकल जाए तो तुम भी निकल जाना। एक रिश्तेदार भाई था उसे कहा कि तुम दोनों साथ निकल जाना। जैसे ही लाश निकली, नंदिनी भी रिश्तेदार के साथ घर को निकल पड़ी।
रात काफी हो चुकी थी। टैक्सी के लिए काफी देर इंतज़ार करने के बाद अखिर में दोनों ने बस पकड़ने की सोची। रात काफी हो गई थी। इसलिए बसें रास्ते पर बहुत कम दिखाई दे रही थी। बड़ी मुश्किल से एक बस आई, जिस पर वह और उसके रिश्तेदार भाई चढ़ गए।

भाई साथ होने से थोड़ी निश्चिंत थी। भाई का घर पास आ गया था, वह अपने स्टाप पर उतर गया। यह देख नंदिनी मायूस हो गी। उसने घड़ी देखी। रात के बारह बज रहे थे बस में भीड़ बहुत कम थी। मुश्किल से एक या दो महिला ही बस में थी। बस की खिड़की वाली साइड पर जगह मिलने पर नंदिनी बैठ गई। तभी छह-सात लड़कों का एक झुंड चढ़ा और नंदिनी के पास वाली सीट पर आकर खड़ा हो गया।

लड़कों ने शराब पी रखी थी। उनमें से एक लड़का नंदिनी के बगल वाली सीट पर बैठ गया और अपने दोस्तों से बातें करने लगा। नंदिनी ने पूरे बस में नजर घुमाई उसने देखा बस में उन लड़कों के झुंड को छोड़ चार या पांच लोग ही थे, तभी कंडक्टर ने आकर पूछा मैडम कहां जाना है? नंदिनी ने पैसे निकाल कर देते हुए कहा मुझे फलां स्टाप पर उतारना है। कंडक्टर ने नंदिनी को टिकट देते हुए बाकी पैसे लौटा दिए। तभी उन लड़कों में से एक ने कहा चलो जहां तक की जाती है हम भी इसके साथ वहीं उतरेंगे। दूसरे ने कहा अरे रहने दे यार छोड़ ना। और फिर उस लड़के ने कंडक्टर को बुलाकर नंदिनी वाले स्टॉप का किराया चुका दिया।

नंदिनी का दिल बैठने लगा था। तभी उसे एक उपाय सूझी। उसने मोबाइल निकाल झूठ मूठ एक नंबर मिलाया और कहा, बेटा पापा को बोलो मैं पहुंच रही हूं। वह आकर मुझे ले जाएं यह कह कर नंदिनी ने फोन काट दिया। उसने तिरछी आंखों से देखा पास बैठा लड़का उसके करीब आने की कोशिश कर रहा था। तभी दूसरे लड़के ने कहा अबे यार बहुत देख लिया। अब मेरी बारी है, यह कह कर उसने उस लड़के को उठाया और नंदिनी की देह पर गिरते हुए बैठ गया। नंदिनी का दिल जोरो से धड़कने लगा, पर उसने चेहरे पर डर के कोई भाव नहीं आने दिए।

  • वह घटना नंदिनी के दिलों दिमाग पर गहरा असर छोड़ गई थी। उस दिन से उसे लोगो पर से विश्वास उठ सा गया था। एक अज़ीब सा डर उसके दिमाग मे घर सा कर गया था।

थोड़ी दूर बस गई थी कि नंदिनी ने देखा बस में एक परिचित व्यक्ति चढ़ा है। नंदिनी सीट से उठ कर तुरंत उसके पास जा खड़ी हुई और उस ऐसे बातें करने लगी जैसे कि कोई बहुत अपना हो। ऐसे थोड़ा वक्त गुजर गया। उस व्यक्ति को नंदिनी के घर से तीन स्टॉपेज पहले उतरना था। तभी नंदिनी के दिमाग में एक खयाल आया। जैसे ही वह व्यक्ति अपने स्टॉपेज पर उतरने लगा, नंदिनी उसके साथ साथ बस से उतर गई और तुरंत एक रिक्शे में बैठ गई। रिक्शा वाले ने कहा मैडम कहां जाना ह?ै नंदिनी बोली, तुम चलो मैं बताती हूं। रिक्शेवाले ने कहा, मैडम भाड़ा ज्यादा लगेगा। नंदिनी ने कहा तुम पहले चलो। रिक्शावाला नंदिनी की बात सुन तेजी से निकल पड़ा।

रास्ता सुनसान था। नंदिनी ने पीछे मुड़ देखा तो दिल धक से रह गया उसका। लड़के बस से उतर तेजी से उसके रिक्शे की बढ़ रहे थे। सन्नाटे में रिक्शे की आवाज ही आ रही थी। उसने रिक्शेवाले से बोला-सुनो इस गली से निकल लो।

कुछ दूर जाने के बाद पीछे मुड़ देखा तो लड़के नज़र नहीं आए। अपने घर के नीचे पहुंच नंदिनी ने रिक्शेवाले को पैसे दिए और भागती सी सीढि़यों से चढ़ अपने फ्लैट की घंटी बजाई। बेटी ने दरवाजा खोला। घड़ी में एक बज रहे थे। खुद को संभाल उसने सारी घटना बेटी को बताई। बेटी रोती हुई मां से लिपट गईी। बोली मां तुम्हें कुछ हो जाता, तो मै क्या करती।

वह रात नंदिनी के जीवन में ऐसा असर छोड़ गई कि अक्सर नंदिनी को सपने में यह दिखने लगा कि वह सुनसान सड़कों पर अकेली खड़ी है और लोग उसका पीछा कर रहे हैं। उसे घर जाने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। ऐसे सपने अक्सर उसे परेशान करने लगे। नंदिनी रात में उठ कर बैठ जाती। वह घटना नंदिनी के दिलों दिमाग पर गहरा असर छोड़ गई थी। उस दिन से उसे लोगो पर से विश्वास उठ सा गया था। एक अज़ीब सा डर उसके दिमाग मे घर सा कर गया था। वह आज तक अपने उस डर से बाहर निकल नहीं पाई।

About the author

नीता अनामिका

नीता अनामिका कोलकाता के साहित्यिक समाज में जाना मान नाम हैं। वे लेखिका हैं, कवयित्री हैं। समाज सेविका भी हैं। वे साहित्यिक संस्था 'शब्दाक्षर' की राष्ट्रीय महामंत्री हैं। नीता सामाजिक संस्था 'वाराही एक प्रयास' की संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे अक्सर सामाजिक समस्याओं पर कविताएं और कहानियां लिखती हैं। उनकी ज्यादातर रचनाएं साहित्यिक पत्रिकाओं और प्रतिष्ठित समाचारपत्रों और ई-पत्रिकाओं में छपती रही हैं।

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