कहानी

जहां खुशियां, वहीं दिवाली

तसवीर - गूगल से साभार

अश्रुत पूर्वा विशेष II

साल भर के इंतजार के बाद लीजिए दिवाली आ गई। आपके मन में उजाला भरने। संघर्ष भरे आपके रास्तों पर उम्मीदों का दीप झिलमिलाने। अमावस्या की इस रात अपने घरों को जगमग करने में आप कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। मगर अबकी दिवाली कुछ अलग होगी। बिना आतिशबाजी के कैसी होगी दिवाली?

आंखें बंद कर कल्पना कर रहा हूं। सुखद दृश्य मेरे सामने है। आंगन-बरामदे में लड़कियां रंगोली बना रही हैं। रसोई से पकवानों की खुशबू उड़ रही है। नए परिधानों में सजीं स्त्रियां आवभगत में जुटी हैं। नए कपड़े पहने बच्चे सबसे ज्यादा उत्साहित हैं। वे खील-बताशे, मेवे-मिठाइयां और मिट्टी के ढेर सारे खिलौने लेकर घर लौटे हैं अभी-अभी। मगर उनके हाथों में पटाखे नहीं हैं।

…सांझ की दुलहन दीपमाला से अपनी मांग सजाने के लिए बेकरार हो उठी है। धरती रोशनी से नहा चुकी है। उसके अनुपम सौंदर्य को देख देवदूत आसमान से उतर रहे हैं। वे धरती पर दीयों की असंख्य कतार में खुद को पाकर स्वर्ग का दैदीप्यमान ऐश्वर्य भी भूूल गए हैं। रंगोली बना रहीं बालाओं को देख कर कर उनके साथ आईं अप्सराएं भी मुग्ध हैं। खील-बताशों से सामाजिक सद्भाव में मिठास घोल रहे नरों पर देवता फूल बरसा रहे हैं। प्रकृति का नया रूप रचने के लिए देवियां आशीष दे रही हैं नारियों को। कैसा अलौकिक दृश्य है! क्या इस दीपावली पर आप धरती को स्वर्ग से भी सुंदर नहीं बना सकते?

आपकी तरह मैं भी निकला हूं आज खरीदारी करने। देख रहा हूं कि सड़क किनारे पटरी पर इस बार भी रश्मि मिट्टी के खिलौने और दीयों को सजा रही है। हर साल इसी तरह वह अपनी अकेली मां की मदद करती है। उसकी दुकान पर साल भर मिट्टी के बर्तन और त्योहारों से जुड़ी चीजें बिकती हैं। रश्मि की मां से एक दिन मैंने पूछा कि साल भर यही काम क्यों। तो जवाब मिला- मानुष ये तन माटी का, मिट्टी में मिल जाना है।

हर साल न्यूजरूम में काम करते हुए मेरे पास ऐसी कई तस्वीरें आती हैं, जिसमें चाक पर मिट्टी के सुंदर दीये बनाते कुम्हार के सधे हुए हाथ दिखते हैं। ध्यान से देखता हूं तो लगता है कि सृष्टि का रचयिता भी हम मिट्टी के पुतलों को इसी तरह रचता होगा। और खुश होता होगा। तभी तो ये तन मिट्टी का, मिट्टी में मिल जाना है…। 

चलिए आज पुरानी दिल्ली जाकर त्योहार की कुछ खरीदारी करते हैं आपके साथ। दिल्ली के फ्यूजन को देखना हो, तो त्योहारों पर वहां जरूर जाइए। व्यंजनों के चटपटेपन से लेकर परंपरा की सोंधी महक मन को प्रफुल्लित कर देती है। वहीं आाधुनिक गहनों-घड़ियों के शोरूम और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट व खिलौने की दुकानें अपनी चकाचौंध से हमें जीवन में आई आधुनिकता का अहसास कराती हैं। तो चलिए चलते हैं मेट्रो से।

आज प्लेटफार्म पर थोड़ी भीड़ है। मगर पिछले साल जैसी नहीं है। … हुडा सिटी सेंटर की मेट्रो आने की घोषणा हो रही है। लीजिए आठ कोच वाली मेट्रो इठलाती हुई चली आ रही है। त्योहार पर उमंग आखिर इसे भी क्यों न हो। कोरोना काल में और भी साफ-सुथरी मेट्रो के आखिरी कोच में कदम रख रहा हूं। आज एक भी सीट खाली नहीं है। लिहाजा हमेशा की तरह गेट के किनारे खड़ा हो गया हूं।

मेट्रो चल पड़ी है। अगला स्टेशन माडल टाउन है। मैं कुछ सोचूं इससे पहले ही इसकी उद्घोषणा हो रही है। … अपने पिता के साथ दो बच्चे कोच में अभी सवार हुए हैं। ये भी खरीदारी करने निकले हैं मेरी तरह। मां ने बच्चों को फेहरिस्त पकड़ा दी है। वे पढ़ रहे हैं-मेवे-मिठाई, खील बताशे, दीये-मोमबत्तियां और इसके साथ ही मसाले व घी न जाने क्या क्या। सूची पूरी हो गई तो पहला सवाल यही- पापा पटाखे? बच्चों के इस मासूम सवाल पर पापा मुस्कुराए-इस बार हैप्पी दिवाली पर नो क्रैकर्स। मगर बच्चों के चेहरे पर जिद है-नहीं… हम तो लेकर रहेंगे। पापा उन्हें समझा रहे हैं- बेटे, इस बार पटाखे बिकेंगे ही नहीं। क्या हम कुछ डिफरेंट दिवाली नहीं मना सकते इस बार…?   

बच्चे सहमत नहीं। पापा भी हार मानने वाले नहीं- सबसे बड़ी अदालत का फैसला है बेटे। इस बार पटाखे बेचने पर पाबंदी है। बच्चे मान नहीं रहे। … उधर उद्घोषणा हो रही है- अगला स्टेशन कश्मीरी गेट। स्टेशन पर कोच से कुछ लोग उतरे हैं, तो कुछ लोग सवार भी हुए हैं। दोनों बच्चे मेरे पास आकर खड़े हो गए हैं। मैंने मुस्कुराते हुए कहा- चलो आज बाजार में पटाखे ढूंढते हैं। मैं भी जा रहा हूं सदर बाजार। चलोगे हमारे साथ? मेरे इस प्रस्ताव पर उनके पिता के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान खिल गई है। 

मैंने बच्चों के कंधे पर हाथ धरते हुए कहा-चांदनी चौक आने वाला है। वहीं उतर जाते हैं। मेरी बात से बच्चों में उत्सुकता बढ़ गई है। … उद्घोषणा हो रही है-अगला स्टेशन चांदनी चौक। हम लोग कोच से बाहर निकल रहे हैं। दोनों बच्चे और उनके पिता साथ चल रहे हैं। स्टेशन के बाहर बैटरी रिक्शा वाला आवाज लगा रहा है- सदर बाजार…सदर बाजार…। 

हम चारों बैटरी रिक्शा पर सवार हो गए हैं। चल पड़ा है रिक्शा। … बायीं तरफ खारी बावली है। सूखे मेवे और मसालों का बाजार आ गया है। रिक्शा रुकवा कर पापा खरीदारी कर रहे हैं। बच्चों का मन नहीं है वहां जाने का। वे मेरे सामने बैठे है, इस इंतजार में कि मैं कुछ कहूं। …उनके पापा ने खरीदारी कर ली है। वे   रिक्शे पर आकर बैठ गए हैं।  

 तसवीर – गूगल से साभार
  • अब हम पटरी पर लगे बाजार में आ गए हैं। खील-बताशे की मीठी महक खींच रही है। मिट्टी के दीये पूूरी सादगी के साथ अपनी मसूमियत जता रहे हैं। वहीं रंग-बिरंगे दीये के नखरे संभाले नहीं संभल रहे। वहीं मिट्टी के खिलौनों के बीच गणेशजी मुस्कुरा रहे हैं। मैं कुछ कहं इससे पहले ही वे टोक बैठे- आ गए मुझे फिर घर ले जाने। मैंने मन ही मन कहा, प्रभुु आप गए ही कहां थे मुझे छोड़ कर। मेरे सभी विघ्न को टालने के लिए आप तो सदा मेरे साथ रहते हैं।
  • गणेशजी की मुस्कान से मैं मंत्रमुग्ध हूं। बगल में बैठी लक्ष्मी जी इस भक्त संवाद को सुन रही हैं। मैंने उनके आगे हाथ जोड़ दिए हैं- मां आपको भी चलना है मेरे साथ। विघ्न विनायक ने हामी भर दी है। यूं तो आप हरदम साथ हैं, न जाने कितने रुपों में। मगर विधि-विधान के मुताबिक इस रूप में आपको पूजना चाहता हूं। मैंने कहा। हां, क्यों नहीं, जब गणेश चल रहे हैं, तो भक्त के घर मैं भी चलूंगी। साल भर मेहनत करते हो, तो अब शुभाशीष देने का वक्त आ गया है। यह महालक्षी का स्वर था।

हम खारी बावली से आगे बढ़ चुके हैं। अब हम पुल से गुजर रहे हैं। नीचे सदर   रेलवे स्टेशन है। पुल पार करते ही कुतुब रोड आ गया है। हम बैटरी रिक्शा से उतर रहे हैं। सामने ही तो है बाजार, बच्चों की उम्मीदों का। अनगिनत दुकानें, मगर पटाखे की एक भी नहीं। बच्चों के चेहरे पर निराशा देख रहा हूं। मैं उनका हौसला बढ़ा रहा हूं। पापा मुस्कुरा रहे हैं। मैं उनसे कहा- चलिए घर को जगमग करने के लिए एलईडी की लड़ियां खरीदते हैं। 

…थोड़ी दूर आगे बढ़ते ही बिजली की कई दुकानें हैं। थोक में लीजिए, तो कई चीजें यहां सस्ती मिल जाती हैं। बच्चों के पापा लाल-हरी-नीली लड़ियां खरीद रहे हैं। नीले रंग की लड़ियां मुझे भी भा गई है। मैंने एक बड़ा डिब्बा खरीद लिया है। बच्चे हैरानी से जगमगाती लड़ियों और और उनमें से निकल रही रंग-बिरंगी रोशनी को देख रहे हैं। पटाखों से उनका ध्यान हट गया है। सच ही है, आशा की कोई भी किरण हो, उम्मीदें जगाए रखती हैं।

खरीदारी के बाद अब हम लौट रहे हैं चांदनी चौक की ओर। घंटाघर पहुंचने पर बैटरी रिक्शा रुकवा लिया है बच्चों के पापा ने। यहां मिठाइयों की मशहूर दुकानें हैं। बच्चों का जी ललचा गया है। उनके पापा कह रहे हैं, ह्यचलिए न आप भी। मैंने कहा, ठीक है, चलिए। मोतीचूर का लड्डू खरीदने का मेरा इरादा है। अपने विघ्न विनायक गणेश जी को यह बहुत पसंद है। उधर, बच्चों ने काजू की बर्फी की फरमाइश की है। पापा को कोई एतराज नहीं। उन्होंने एक किलो बर्फी का आर्डर दे दिया है। मिठाई की दुकान से बाहर आ गया हूं। मैंने मोतीचूर का लड्डू खरीद लिया है। 

अब हम पटरी पर लगे बाजार में आ गए हैं। खील-बताशे की मीठी महक खींच रही है। मिट्टी के दीये पूूरी सादगी के साथ अपनी मसूमियत जता रहे हैं। वहीं रंग-बिरंगे दीये के नखरे संभाले नहीं संभल रहे। वहीं मिट्टी के खिलौनों के बीच गणेशजी मुस्कुरा रहे हैं। मैं कुछ कहं इससे पहले ही वे टोक बैठे- आ गए मुझे फिर घर ले जाने। मैंने मन ही मन कहा, प्रभुु आप गए ही कहां थे मुझे छोड़ कर। मेरे सभी विघ्न को टालने के लिए आप तो सदा मेरे साथ रहते हैं।

गणेशजी की मुस्कान से मैं मंत्रमुग्ध हूं। बगल में बैठी लक्ष्मी जी इस भक्त संवाद को सुन रही हैं। मैंने उनके आगे हाथ जोड़ दिए हैं- मां आपको भी चलना है मेरे साथ। विघ्न विनायक ने हामी भर दी है। यूं तो आप हरदम साथ हैं, न जाने कितने रुपों में। मगर विधि-विधान के मुताबिक इस रूप में आपको पूजना चाहता हूं। मैंने कहा। हां, क्यों नहीं, जब गणेश चल रहे हैं, तो भक्त के घर मैं भी चलूंगी। साल भर मेहनत करते हो, तो अब शुभाशीष देने का वक्त आ गया है। यह महालक्षी का स्वर था।  

मैं कुम्हार से मोलभाव नहीं करना चाहता। उसकी नजरों में ये माटी की मूरतें हैं, मेरी नजर में भगवान। मैंने विघ्न विनायक को बहुत संभाल कर अपने हाथों में ले लिया है। साथ में हैं सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का उजाला भरतीं मां लक्ष्मी। …. मां आप हमेशा साथ क्यों नहीं रहती, मैं मन ही मन उनसे कहता हूं। मेरे इस मासूम सवाल पर पर मां मुस्कुरा रही हैं। वे इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहतीं। 

मिट्टी के दीयों और अन्य चीजों की खरीदारी कर अब हम लौट रहे हैं। बच्चे खुश नहीं दिख रहे। क्योंकि पटाखे की एक भी दुकान नहीं मिली। पापा उन्हें समझा रहे हैं कि चलो इस बार दिवाली कुछ अलग अंदाज में मनाते हैं। बच्चे जिद किए बैठे हैं। उन्हें समझाते-बुझाते हम लोग फिर चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन आ गए हैं। प्लेटफार्म पर पहुंचे तो बच्चों की फिर वहीं जिद। 

मैं विघ्न विनायक से पूछ रहा हूं, प्रभुु, ये बच्चे मान क्यों नहीं रहे? उनका जवाब है- अभी नासमझ हैं न, इसलिए। मगर इनकी मुस्कुराहटों से ही जगमग होगा इनका घर। बच्चों को मालूम नहीं कि इनके लिए एक अनोखा उपहार रखा है घर पर। …वो क्या है प्रभुु? मैंने उनसे पूछा। विघ्न विनायक का जवाब है- ह्यई किंडल रीडर और एक एक-एक मोबाइल फोन। दोनों बच्चों के लिए अलग-अलग। ताकि ये दुनिया भर की किताबें पढ़ सकें। आॅनलाइन क्लास कर सकें। आतिश्बाजी पर हजारों रुपए खर्च करने से अच्छा है कि बच्चे ज्ञान अर्जित करें और स्वस्थ मनोरंजन भी करें। तुम्हें यकीन न हो, तो इनके पिता से पूछ लो।

प्लेटफार्म पर बच्चे गुमसुम खड़े हैं। मैंने उनके पिता से पूछा, ह्यअब क्या करेंगे? ये तो मान ही नहीं रहे। क्या देंगे बच्चों को इस बार? मेरे इस सवाल पर वे सहज ही मुस्कुराए। सरप्राइज दूंगा इन्हें। पटाखों की जगह कोई और नई चीज? मैने सवाल किया। उनका जवाब है- हां,.. किंडल रीडर दूंगा इन्हें उपहार में। उनकी बात सुन कर अचरज में हूं। फिर भी इसमें क्या संदेह कि प्रभु को सब पता है। वे सर्वज्ञ हैं। विघ्न विनायक मुस्कुरा रहे हैं।

समयपुर बादली की मेट्रो आने की उद्घोषणा हो रही है। इस भीड़ में प्रभु को कैसे संभाल पाऊंगा? यूं ही मासूम सा सवाल उठा है मन में। विघ्न विनायक मुस्कुरा रहे हैं- तुम चिंता न करो। अभी मैं माटी के रूप में जरूर हूं, पर मुझे तुम्हारे घर तक जाना है। लक्ष्मीजी भी साथ हैं। जब धन और बुद्धि का संतुलित संयोग हो तो मनुष्य को चिंता नहीं करनी चाहिए। 

प्लेटफार्म पर मेट्रो आ गई है। मैं बेहद सावधानी से कोच में सवार में हो रहा हूं। एक कोने में मुझे जगह   मिल गई है। बच्चे भी अपने पिता के साथ पास ही खड़े हैं। वे अब भी खुश नहीं हैं, पर मुझे मालूम है कि जब वे घर पहुंचेंगे तो उन्हें उनका उपहार मिल जाएगा। उन्हें इस दिवाली पर पटाखे नहीं, पापा का प्यार मिलेगा किंडल और मोबाइल के रूप में।

मेट्रो चल रही है। स्टेशन पीछे छूटते जा रहे हैं। माडल टाउन आने वाला है। ये बच्चे अभी वहीं उतर जाएंगे। उधर, विघ्न विनायक ने पढ़ लिया है मेरे मन को। ह्यतुम ऐसी ही दिवाली चाहते हो न, जब धरती जगमगा उठे और आसमान खिलखिला उठे। देवता धरती पर उतरें, तो स्वर्ग का ऐश्वर्य भूूल जाएं। उन्होंने कहा। हां, प्रभु आपने तो दिल की बात जान ली, मैं यह कहता इससे पहले ही लक्ष्मी मइया ने टोक दिया- ह्यगणेश, ये सब तो ठीक है, मगर जहां खुशियां हैं, वहीं दिवाली है। हर पल, हर जगह।

…मेट्रो की उद्घोषणा हो रही है- अगला स्टेशन माडल टाउन। बच्चे अब जिद छोड़ चुके हैं। मुझे नमस्कार करते हुए उनके पिता कोच से उतर रहे हैं। अब अगले स्टेशन पर मुझे उतरना है। विघ्न विनायक मुझे आगाह कर रहे हैं- जरा संभल कर… माटी की मूरत हूं। कहीं यहीं न बिखर जाऊं। …न…न…मैंने आपको पकड़ रखा है प्रभु। आप मुझे छोड़ देंगे, तो मेरा क्या होगा। मैंने सजग होते हुए कहा। 

…लक्ष्मी मैया ने आश्वस्त करते हुए कहा, किसी को कुछ नहीं होगा। वे स्नेह बरसाते हुए हुए मुझसे कह रही हैं- अब हम सब उतरने वाले हैं। बाहर निकलोगे तो एक बच्चा तुम्हें अपनी मां के साथ खड़ा दिखाई देगा। वह दो दिन से भूूखा है। उसके बदन पर फटे कपड़े हैं। उसे तुम ये खील-बताशे और मिट्टी के खिलौने दे देना। तुम्हारी जेब में जितने भी रुपए हैं, सब उसकी मां को दे देना। बच्चे के लिए वह कपड़े खरीद लेगी। उनकी दिवाली मन जाएगी।  

मुझे असमंजस में देख विघ्न विनायक ने टोका-उधेड़बुन में क्यों हो? मैं तुम्हारा बुद्धि-विवेक हूं। कुछ नहीं सोचना है। बस उस बच्चे की दिवाली मननी चाहिए। क्या उसके चेहरे पर मुस्कान लाना नहीं चाहोगे?

अगला स्टेशन आजादपुर है- उद्घोषणा हो रही है। … हम बाहर निकल रहे हैं। स्टेशन के बाहर देखा कि अपनी मां की अंगुली थामे एक कृषकाय बालक आते-जाते यात्रियों को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है। मैंने उसकी मां के आंचल में खील-बताशे और मिट्टी व चीनी के खिलौने रख दिए हैं। वह हैरान है। लक्ष्मी मैया इशारा कर रही हैं, लड्डू तो विघ्न विनायक के हैं और तुम इन्हें दोगे नहीं, मगर रुपए तो दो इसे… दिवाली मनाने के लिए। मैंने जेब में रखे सभी रुपए बच्चे की मां को दे दिए हैं। वह अवाक है। उसकी आंखों में आंसू है। यह उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा है। मगर मैं जानता हंू। ये सब कुछ मैंने नहीं दिए।  

मैं स्टेशन के गेट के बाहर खड़ा हूं। अब सिर्फ विघ्न विनायक और महालक्ष्मी मेरे साथ हैं। मैं जेब टटोल रहा हूं। शायद पांच रुपए का सिक्का किसी कोने में पड़ा मिल जाए। मां लक्ष्मी ने टोका-जेब में क्या ढूंढ रहे हो? देखो तो तुम्हारी जेब में कितनी खुशियां हैं। अब विघ्न विनायक भी चुप नहीं रहे- देखी तुमने उस बच्चे की खुशी? दिवाली की जगमग तो इसी मुस्कान में है। जब भी किसी को मुस्कुराने की वजह दोगे, तो समझना हम दोनों वहीं विराजमान हैं। हां प्रभु … मैं खुश हूं आज। विराजिए मेरे पास हमेशा के लिए। मां लक्ष्मी मुस्कुरा रही हैं। कह रही हैं- गणेश तो हरदम साथ हैं। मैं भी रहूंगी पास। बस हर उदास चेहरे पर इसी तरह मुस्कान लाते रहना। 

…मैं पैदल चल पड़ा हूं। तभी बैटरी रिक्शा मेरे सामने आकर रुका है। मैंने कहा-अरे तुम? हां सर बैठिए न। उधर ही जा रही हूं। ये वही है जो मुझे कभी-कभी मेट्रो स्टेशन तक पहुंचा देती है। …वाह प्रभु आप मुझे पैदल भी चलने नहीं देंगे। अपने भक्त की इतनी चिंता। विघ्न विनायक मुस्कुरा रहे हैं। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि आप घर चलिए, भूख लगी होगी आपको। मगर वे कह रहे हैं कि यहीं खिलाओ भक्त।  

…मैं डिब्बे से लड्डू निकालता हूं तो विघ्नहर्ता इशारा कर रहे हैं,मुझे नहीं, पहले इस बच्ची को खिलाओ जो यह वाहन लेकर आई है, हमें ले जाने के लिए। …मैं उसे लड्डू दे रहा हूं खाने के लिए। वह कह रही है- आप खाइए न। मेरा जवाब है- दिवाली की मिठाई है, खाओ। उसने जैसे ही मिठाई खाई, लगा खुद विघ्न विनायक लड्डू का भोग लगा रहे हैं। महालक्ष्मी मुस्कुरा रही हैं युवती के चेहरे पर। खुशियों की मिठास छलक रही है। दिवाली यूं मनती है… सच में। जहां खुशियां, वहीं दिवाली है।

(संजय स्वतंत्र की द लास्ट कोच शृंखला से साभार) 

 

About the author

ashrutpurva

Leave a Comment

error: Content is protected !!