काव्य कौमुदी गीत/ गद्यगीत/अन्य

गुरु नानकदेव जी को समर्पित कुछ दोहे

फोटो- साभार गूगल

ताराचंद शर्मा ‘नादान’ II

नीति नियम ना जाणदा, माफ़ करीं हर भूल।
सतगुरु नानक देव दे, चरणां दी मैं धूल।।

प्रथम गुरू सिख धर्म दे, नानक जी महाराज।
मानवता दे हित किये, नित्य निरंतर काज।।

नानक मेरा साहिबा, नानक मेरा पीर।
रब दा पैगम्बर हरे, दीन दुखी दी पीर।।

भोली बहना नानकी, नानक जिस दा वीर।
रब ने उस दे नाम ते, धारा मनुख शरीर।।

मैं मूरख नादान हां, मैं माटी दा लेव।
मेरी भटकी नाव नूँ, पार करो गुरुदेव।।

दर दर भटका उम्रभर, देख लिया चहुँ ओर।
एक सिवा करतार के, मिला न दूजा ठौर।।

सब दे भीतर रब बसा, रब दा सब में वास।
रब से सब दी धड़कनें, रब से सब दी साँस।।

रब दरसन दी आस है, रब दरसन दी प्यास।
मेरी हर इक साँस हो, रब दी ही अरदास।।

प्रेम भाव दिल में रखो, भूलो सारे द्वेष।
सच्चे रब दे नाम से, कट जाएँगे क्लेश।।

क्रोध, लोभ, मद, मोह से, दुखिया ये संसार।
नानक नाम जहाज से, हो भवसागर पार।।

दीन दुखी दी पीर ते, रखो नेह दा हाथ।
ऊँचा होगा दोस्तो, मानवता का माथ।।

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ताराचंद शर्मा 'नादान'

ताराचंद शर्मा 'नादान'

निवासी - दिल्ली

प्रसिद्ध ग़ज़लकार एवं दोहाकार

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