अभिप्रेरक (मोटिवेशनल) जीवन कौशल

जीवन एक पहेली, जो कभी हल होती नहीं

तस्वीर : गूगल से साभार

मनस्वी अपर्णा II

मैं अक्सर देखती हूं कि लोग बड़े मनोयोग से अपना पूरा जीवन इस तरह से नियोजित कर रहे होते हैं कि उन्हें किसी भी तरह का कोई जोखिम अपने जीवन में न उठाना पड़े। लोग अपने धन, ऊर्जा और जीवन का अधिकांश हिस्सा अपने आप को शॉक प्रूफ बनाने में खर्च करते हैं। हम पैसा बचाते हैं ताकि आड़े वक्त में काम आए। बीमा करवाते हैं ताकि हमे दुर्घटना की स्थिति में कवर मिल सके। हम अपना करिअर, जीवन साथी, नौकरी, घर, कर्मचारी, वाहन यहां तक कि भोजन भी बड़ी सावधानी से चुनते हैं, इस चुनाव में हमारी इच्छा और पसंद को उतनी प्राथमिकता नहीं होती है जितनी प्राथमिकता हम संभावित जोखिम के न होने को देते हैं।

हमारा अंतिम उद्देश्य होता हैं जीवन को जोखिम और चुनौतियों से बचाए रखना। ऊपर से देखने में यह व्यवहार अच्छा और सही ही जान पड़ेगा, लेकिन भीतर पड़ताल करेंगे तो एक नए तथ्य से आप रुबरू होंगे। मैं यह कतई नहीं कहना चाहती हूं कि सुनियोजित ढंग से जीवन जीना गलत या बुरी बात है, लेकिन फिर भी सोच कर देखिए कि कितनी भी प्री प्लानिंग और तैयारी की बावजूद क्या हम कभी भी ये दावा कर सकते हैं कि हमारे सामने कभी किसी तरह की कोई जोखिम नहीं आएगी। हमारे सामने कोई चुनौती नहीं आएगी।

हम यदि ऐसा सोचते हैं तो शायद गलत सोचते हैं। जीवन बिल्कुल अज्ञात है और हम चाहे जो भी कर लें अपने जीवन को कभी शॉक प्रूफ या रिस्क प्रूफ नही बना सकते। जैसे आप तमाम सुरक्षा एहतियात के साथ सड़क पर चल रहे हैं या गाड़ी चला रहे हैं, बिलकुल कायदे-कानून के हिसाब से लेकिन कोई दूसरी गाड़ी आपको या आपकी गाड़ी को टक्कर मार देती है या तो वो चालक अनाड़ी था या उसके ब्रेक फेल हुए या वो नशे में था, कारण कुछ भी हो सकता है लेकिन आपके सुरक्षा एहतियात आपकी कोई मदद नहीं कर सके।

  • जीवन जिसे हम कहते हैं सदा से बस अज्ञात और अनियंत्रित है और हमेशा ऐसा ही रहेगा… हम अधिकतम संभावनाओं के आधार पर एक मोटा माटी आकलन भर कर सकते हैं ज्यादा कुछ नहीं। ये बस एक ऐसी पहेली की तरह है जो हल होने के लिए बनी ही नहीं है। यही जीवन की खासियत है। हम कोशिश तो दिन रात करते हैं कि किसी न किसी तरह इस पहेली का हल निकाल लें लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि ऐसा हो नहीं सकता।

आपने पाई-पाई कर कुछ रुपए जमा किए थे ताकि वे जरूरत के वक्त काम आ सकें। एक दिन अचानक सरकार नोटबंदी की घोषणा कर देती है और आप अपने ही पैसे के लिए अकारण तरस जाते हैं। आपने बहुत अच्छी मेडिक्लेम पॉलिसी ले रखी है, अच्छा खासा प्रीमियम भी भरते हैं लेकिन पूरी दुनिया में कोरोना बीमारी फैलती है जो मेडिक्लेम में सूचीबद्ध नहीं है और बदकिस्मती से आप भी उस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। अब आपका मेडिक्लेम आपके किसी काम का नहीं… ये उदाहरण इसलिए दे रही हूं क्योंकि हम सब ने ये दौर देखे हैं तो मेरी बात को समझने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।

जीवन जिसे हम कहते हैं सदा से बस अज्ञात और अनियंत्रित है और हमेशा ऐसा ही रहेगा… हम अधिकतम संभावनाओं के आधार पर एक मोटा माटी आकलन भर कर सकते हैं ज्यादा कुछ नहीं। ये बस एक ऐसी पहेली की तरह है जो हल होने के लिए बनी ही नहीं है। यही जीवन की खासियत है। हम कोशिश तो दिन रात करते हैं कि किसी न किसी तरह इस पहेली का हल निकाल लें लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि ऐसा हो नहीं सकता। हम किसी न किसी तरह इस कोशिश में भी लगातार लगे रहते हैं कि इस अज्ञात को ज्ञात कर लें या अनियंत्रित को नियंत्रण में ले लें लेकिन ये भी हो नहीं पाता क्योंकि हो नहीं सकता। हम अपने पूरे ज्ञान-अनुभव और समझ के आधार पर जीवन के किसी एक सिरे को थामने, परिभाषित करने या नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं लेकिन तत्काल कोई और नई पहेली सामने आ खड़ी होती है। हमारे पसीने छूट जाते हैं। कोरोना महामारी इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। चिकित्सा अनुसंधान हृदयरोग, कैंसर, एचआइवी जैसी और भी कई बीमारियों को साधने में प्राण पण से लगा हुआ था कई जगह सफल भी हुआ लेकिन इस महामारी ने फिर एक ऐसी चुनौती प्रस्तुत कर दी कि हमारा पूरा ज्ञान, अनुसंधान और समझ धरे के धरे रह गए।

कुल मिला कर बात ये है कि जीवन को शॉक प्रूफ बनाने की अतिरिक्त चेष्टा और हमेशा बच बच कर चलने की आदत आपको जीवन से दूर और दूर करती जाती है और सब प्रयासों के बावजूद आप हम आपदा आने पर कुछ नहीं कर पाते। तो सब कुछ नियंत्रण में रखने की चेष्टा और आकांक्षा रखने की बजाय खुद को ढीला छोड़ देना सीखना होगा। साथ ही हमको मानना होगा कि हम हर तरह से सीमित हैं उस विराट की मर्जी के आगे हमारी कोई जगह ही नहीं है। तो नियंत्रण की आशा में तनाव लेने और खुद को जरूरत से ज्यादा बचा कर जीने की जगह खुल कर और खुद को जरा सा ढीला छोड़ कर जीने में समझदारी है।

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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