मनस्वी अपर्णा II
जीवन कई मामलों में बड़ा बेबूझ है और सबसे ज्यादा अबूझ कुछ है तो वह है मानवीय व्यवहार। हमको कई बार किसी विशेष परिस्थिति में अपने किसी व्यवहार या प्रतिक्रिया के बाबत समझ ही नहीं आता है कि आखिर हम ऐसा क्यों कर रहे हैं या ऐसा क्यों सोच रहे हैं… आपने महसूस किया होगा कि हम सब के साथ जीवन में कभी न कभी ऐसा जरूर होता है कि हम अकारण ही किसी से नाराज हो जाते हैं। उसके प्रति हमारे मन में दुर्भावना आ जाती है या गलत विचार आते हैं।
ऊपरी तौर पर हम भले ही अपनी भावनाओं को उजागर न कर रहे हों, लेकिन मन ही मन उससे कुढ़ते रहते हैं। भले ही सामने वाला कोई गलत बात या हरकत नहीं कर रहा हो, लेकिन हमको बुरा लगता है और किसी न किसी तरह हम उस व्यक्ति को नीचा दिखाना चाहने लगते हैं या उसको तंग करना चाहने लगते हैं। और ऐसा कर हमें एक अजीब सी शांति मिलती है।
दरअसल, जब भी कोई व्यक्ति जिससे हम मिलते हैं या बात करते हैं, यदि हमसे किन्हीं मामलों में बेहतर है तो वह व्यक्ति या उसके गुण हममें अहसास-ए-कमतरी जगा देते हैं। उसके पास मौजूद गुण, ज्ञान, दौलत रूप या प्रतिष्ठा हमारे भीतर के अभाव को चोट करती है। सामने वाले के पास जो भी है वो यदि हमारे पास नहीं है तो ये हमारी अभाव की स्थिति चोटिल होती है। हमको उसके सामने अपनी कमतरी का अहसास होता है और आम तौर पर इस अहसास से निजात पाने के लिए हम सामने वाले व्यक्ति को अकारण ही नीचा दिखाने या पीड़ित करने की कोशिश करने लगते हैं।
किसी बहुत खूबसूरत महिला या लड़की को लेकर कई अफवाहें फैलाई जाती हैं। किसी बुद्धिमान व्यक्ति को सनकी या झक्की की तरह प्रस्तुत किया जाता है। किसी भी अमीर व्यक्ति को दो नंबर का धंधा करने या हेर फेर का काम करने वाले का खिताब मिला हुआ होता है। किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को चापलूस होने का तमगा हासिल होता है। आपको क्या लगता है ये काम कौन करता है। दूसरे व्यक्ति को बिना ठीक से जाने ये स्वरचित उपाधियां कौन देता है… वही लोग जो ऐसे लोगों से मिल कर अपने भीतर किसी भी प्रकार के अभाव को बहुत बुरी तरह से महसूस करने लग जाते हैं और इसके चलते ईर्ष्या से पीड़ित हो जाते हैं।
ईर्ष्या एक ऐसा भाव है जो सिवाय बुरा करने के और कुछ नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति जो ईर्ष्या से भरा हो किसी भी रिश्ते के लिए बहुत बुरा होता है। किसी के गुण या क्षमता देखकर प्रभावित होना और उनको अपनाने की सकारात्मक कोशिश एक अलग बात है, लेकिन किसी के गुणों या क्षमताओं से चिढ़ कर उनके प्रति ईर्ष्या से भर कर दूसरे व्यक्ति की छवि या उसके मन को चोट पहुंचाना बिल्कुल अलग बात है। यह ठीक नहीं है। इससे आप कमतर ही साबित होते हैं।
चित्र : गूगल साभार
ईर्ष्या एक ऐसा भाव है जो सिवाय बुरा करने के और कुछ नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति जो ईर्ष्या से भरा हो किसी भी रिश्ते के लिए बहुत बुरा होता है। किसी के गुण या क्षमता देखकर प्रभावित होना और उनको अपनाने की सकारात्मक कोशिश एक अलग बात है, लेकिन किसी के गुणों या क्षमताओं से चिढ़ कर उनके प्रति ईर्ष्या से भर कर दूसरे व्यक्ति की छवि को या उसके मन को चोट पहुंचाना बिल्कुल अलग बात है। ये सब तब और बुरा हो जाता है जब कोई एक व्यक्ति अपने स्तर से नीचे उतर कर बस किसी न किसी बहाने दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाने, नीचा दिखाने या उसकी छवि को नष्ट करने के एक ही काम में लगा रहता है। वो भी बिना किसी अपराधबोध या ग्लानि के मानो ये सब करके उसे कोई विशेष खुशी या ताकत मिल रही हो। और ऐसा होता भी है लोग किसी के प्रति नकारात्मक बात से बड़ी जल्दी सहमत हो जाते हैं, बनिस्बत किसी सकारात्मक बात के…।
ऐसा सिर्फ इसलिए होता है कि हमारा दमित अहंकार यह मानने को राजी नहीं होता कि कोई बेहतर, गुणी, धनी या क्षमतावान हो सकता है। क्योंकि हम नहीं है ऐसे, तो दूसरा कैसे हो सकता है। और फिर भी वो है तो हम येन केन प्रकारेण उससे वो सब छीन कर रहेंगे ताकि हमारा और उसका स्तर समान हो सके।
बतौर मनुष्य ईर्ष्या सबसे बुरे गुणों में से एक है और ये पनपती ही इसलिए है क्यूंकि हम में खुद के आंतरिक और बाहरी स्वरूप के प्रति स्वीकार का भाव नही होता। हम खुद को पसंद नहीं करते अपनी छवि या अक्षमताओं से डरते हैं। किसी और की खींची लकीर को मिटा कर छोटा करने की बजाय अपनी लकीर को बड़ी करने की कोशिश होनी चाहिए और यदि ये संभव नहीं है तो खुद को हर कमी-बीसी के साथ स्वीकार करना आना चाहिए। ये स्वीकार का भाव आपको ईर्ष्या की दोधारी तलवार से बचाएगा और शांत और सार्थक जीवन की ओर उन्नत करेगा।
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