कथा आयाम कहानी

फरवरी की मोहब्बत

देवेश भारतवासी II

बसंत का आगमन हो चुका था। मौसम बदलने लगा था। बुजुर्ग अपनी-अपनी छतों पर बैठने लगे थे। हल्की और गुलाबी धूप सबको एक सुखद अनुभव दे रही थी। यह फरवरी का महीना था।

पूरी दुनिया ने जब कैलेंडर का पन्ना जनवरी से फरवरी की ओर पलट दिया ठीक उसी वक़्त मुंडेरा गांव के लोगों ने अपने आलस को त्याग कर पन्ना पलटा। अगर कोई अंतर्राष्ट्रीय संस्थान इस विषय पर शोध करे कि दुनिया का सबसे आलसी गांव कौन सा है तो उसमें मुंडेरा गांव को शीर्ष स्थान प्राप्त होगा। इस गांव के लोगों ने खूब मेहनत की  तब जाकर यह गांव दुनिया का सबसे आलसी गांव बना। गांव में एक सरकारी स्कूल है। उसमें गांव के ही बांके बिहारी यादव अध्यापक हैं। बांके बिहारी भक्ति में सदैव लीन रहते हैं। परिणामस्वरूप वह कभी विद्यालय में पढ़ाने नहीं जाते हैं। उनकी पूरे गांव में चर्चा है। गांव के लोग भी उनकी भक्ति का सम्मान करते हुए अपने-अपने बच्चों को गाय-भैंस चराने भेज देते हैं। बच्चे भैंस चराने तो जाते लेकिन मवेशियों को खेत में छोड़ कर नदी के पुल पर सो जाते। मवेशी खेतों में खूब मस्ती से घास चरते। उन्हें खेतों में जो नजर आता, सब चर जाते। चरते-चरते जब मवेशी थक जाते तो खुद-ब-खुद अपने तबेलों की ओर निकल पड़ते। घर जाते वक़्त जानवर नाना प्रकार की आवाज निकाल कर अपने साथ आये बच्चों को नींद से जगाते। बच्चे उठते और मवेशियों के ऊपर बैठ कर घर की ओर निकल पड़ते।

गांव के युवा भी कहीं बाहर नहीं जाते। वो सुबह उठते। खेतों में जाते। वहां भी इन्हें कम से कम डेढ़-दो घंटे तो लग ही जाते। वापस आते वक़्त माधव काका के घर के सामने लगे नीम के पेड़ से दातुन तोड़ते। पूरी ईमानदारी और कर्मठता से आधे घंटे तक दांतों की सफाई करते। बाकी पूरे दिन स्कूल में बैठ कर ताश खेलते। रात होते ही ये लड़के गांव के बुजुर्गों के साथ बैठते। गांव के सभी बुजुर्गों में पारस बाबा का सबसे अधिक दबदबा था। गांव में पारस बाबा जितना किसी ने भी नहीं पढ़ा था। वे अपने जमाने के आठ पास थे। गांव के एक और बुजुर्ग काफी चर्चित थे। उनका नाम था, ज्ञानी तिवारी।

ज्ञानी जी के परिवार में बस उनका बीस साल का लड़का था। उसका नाम अमरजीत था। ज्ञानी बाबा उसे प्यार से जुमाई बुलाते थे। जुमाई को गांव में रहना पसंद नहीं था। बार-बार वह ज्ञानी बाबा से जिद करता कि मुझे दिल्ली जाने दो। हर बार ज्ञानी बाबा उसे गांव और मिट्टी का महत्व बता कर गांव में ही रोक लेते। उनका मानना था कि गांव के अलावा कहीं भी शुद्ध पानी नहीं मिलता। वो कहते थे कि बाहर देश में पैसा तो खूब है लेकिन बाहर जाने से व्यक्ति का उम्र ही कम हो जाता है। जुमाई मेरा एकलौता लड़का है। इसे मैं बाहर नहीं जाने दूंगा। बेटे के सपने बापकी जिद के आगे बिखर जाते।

एक रात जुमाई को नींद नहीं आ रही थी। वो करवटें बदलता रहा। उसका मन बेचैन हो रहा था। वह गांव के लोगों के रहन-सहन से तंग आ चुका था। उसने अपनी मौसी के लड़के से दिल्ली के बारे में सुन रखा था। वह दिल्ली जाना चाहता था। उसके मन में घर से भागने का विचार आया। वह एकबारगी सहम गया। उसे याद आ गया कि कैसे मां के देहांत के बाद उसके पिता ने उसे मेहनत से पाला। वह अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। लेकिन वह बाहर जाकर अपने घर की हालत को भी सुधारना चाहता था। दिन भर बिना कुछ किए पड़े रहना उसे रास नहीं आ रहा था। लगभग आधी रात इन्हीं सब ख्यालों में गुजर गई। जैसे-जैसे रात बीतती, वैसे-वैसे उसकी हिम्मत बढ़ती जाती। वह कुछ ही देर में बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। दबे पांव एक झोले में दो जोड़ी कपड़ा और ज्ञानी बाबा के कुर्ते में रखे चालीस रुपए लेकर वह घर से भाग गया।

अगले दिन मुंडेरा गांव में हड़कंप मच गया। गांव में ऐसी घटना पहली बार हुई थी। गांव के सभी लोग ज्ञानी बाबा को समझा रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जुमाई गया तो गया कहां। कुछ लोगों ने कहा कि किसी रिश्तेदार के यहां गया होगा। शाम तक आ जाएगा। शाम बीत जाने के बाद लोगों ने सोचा कि शायद रात में आए। रात भी बीत गई। गांव के युवा भी बचैन थे। विनोद का कहना था कि भाई मुझे तो लगता है कोई भूत-प्रेत उसे ले गया। कुछ ही घंटों में यह बात पूरे मुंडेरा गांव में फैल गई।

अगले दिन ज्ञानी बाबा इलाके के सबसे मशहूर ओझा को बुला लाए। वह घंटों तंत्र-मंत्र करता रहा। बदले में दो देसी मुर्गे मांगे। ज्ञानी बाबा ने उम्मीद भरी निगाहों से बांके बिहारी जी की ओर देखा। बांके जी बोले, अरे महंगू ओझा, ज्ञानी बाबा गरीब आदमी हैं। कहां से दो मुर्गा देंगे। एक की मांग करो। महंगू तनिक गुस्सा हुआ, लेकिन एक मुर्गे में उसने बता दिया कि जुमाई पश्चिम की ओर गया है। और वह सही सलामत है। कुछ महीनों बाद वापस आ जाएगा। उस गांव से दिल्ली पूरब की ओर था। परन्तु महंगू की बातें पूरे गांव के मन में एक विश्वास की भावना भर दी। लोग वापस से अपने-अपने काम में जुट गए।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। हफ़्तों। महीनों। साल। ज्ञानी बाबा को अकेलापन सताने लगा। एक रोज जब सुबह के दस बजने के बाद भी किसी ने ज्ञानी को नहीं देखा तो लोग उनके घर पर गए। देखा वहां ज्ञानी चौकी पर लेटे हुए हैं। ज्ञानी की आंखें बंद थीं। सांसें भी रुक चुकी थीं। ज्ञानी मुंडेरा गांव के साथ-साथ इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे। पूरा गांव गमगीन   था।

ज्ञानी के गुजर जाने के तीन साल बाद गांव में अचानक शोर मच गया। पता चला कि जुमाई वापस आ गया है। मोटर कार से आया है। पूरा गांव यह खबर सुन कर स्कूल की ओर भागा। जुमाई स्कार्पियो के सामने जींस और बुशर्ट पहने खड़ा था। उसने चश्मा लगा रखा था। पूरा गांव जुमाई से नाराज था। लेकिन उसके इस रूप को देख कर सब हैरान थे। बांके बिहारी बोले, का हो जुमाई। लौट आए शहर से। जुमाई ने झुक कर उन्हें प्रणाम किया और पूरे गांव के लोगों की ओर देखते हुए बोला कि माट साब गांव में रहने से गुजारा कैसे होगा। जुमाई भीड़ में अपने पिता को तलाश रहा था। वह अपने घर की ओर आगे बढ़ा। दुआर पर दो गायें बंधी हुई थीं। उसने बाहर से आवाज लगाई, बाउजी। तब तक माधव बाबा बोले, का बेटा अब सुध लेने आए हो अपने बाप की। वह अब नहीं रहे। तुमको अगोरते-अगोरते मर गए।

जुमाई के पैरों तले मानो जमीन खिसक गई हो। वह बिलख-बिलख कर रोने लगा। उसे बच्चों की तरह रोता देख गांव के लोग भी भावुक हो गए। कई महिलाएं रोने लगीं। पूरे गांव का माहौल दोबारा तीन साल पीछे चला गया। ऐसा भान हो रहा था मानो ज्ञानी बाबा का आज ही देहांत हुआ हो।

 … पता चला कि जुमाई शुरू में दिल्ली चला गया था। वह वहां एक कंपनी में बोरा सिलने का काम करता था। मालिक से जान-पहचान हुई तो मालिक के घर का काम भी करने लगा। बाद में ड्राइवरी सीख ली। जिस गाड़ी से वह गांव आया है वह मालिक की ही गाड़ी है। मालिक अपने परिवार के साथ विदेश गए हैं तो वह गांव चला आया। उसकी तरक्की देख कर पूरा गांव गौरवान्वित महसूस कर रहा था। जुमाई एक दिन में ही गांव के लड़कों का रोल मॉडल बन चुका था। दिन भर गांव के साथ समय बिताने के बाद जुमाई वापस अपने घर पर आ गया। वह घर उसे अब डरावना लगने लगा था। उसे अपने पिता जी और मां दोनों की याद आ रही थी। वह घर के अंदर न सो कर बाहर दुआर पर सोने आ गया।

  • गांव के सभी लोगों से दुआ-सलाम करने के बाद वह बांके बिहारी के घर गया। बांके ने उसे घर के भीतर बैठाया। उसने बांके की ओर नजर झुका कर देखा और कहा कि चाचा मैं कई दिनों से आपसे कुछ कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। बांके बोले, कहो बेटा क्या बात है। रुपया पैसा का दिक्कत है क्या? जुमाई बोला, नहीं चाचा। भगवान की कृपा से कोई कमी तो नहीं है। बांके बोले, तो क्या बात है बेटा? जुमाई ने कहा कि चाचा मैं मधु से शादी करना चाहता हूं। बांके इतना सुनते ही उठ खड़े हुए और बोले कि बेटा तुम क्या कह रहे हो तुम्हें पता भी है? जुमाई ने कहा कि मैं पूरे होश में यह बात कह रहा हूं। 

उसकी नींद सुबह जल्दी टूट गई। उसने सामने देखा तो एक युवती सुबह-सुबह रस्सी कूद रही थी। उस समय पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। जुमाई के घर के ठीक सामने ही बांके बिहारी का घर था। उसी घर के दुआर पर वह लड़की व्यायाम कर रही थी। जुमाई को एक पल के लिए लगा कि यह शायद मधु हो। मधु, बांके बिहारी की छोटी लड़की। जुमाई बिस्तर को बिस्तर से उठता देख वह युवती झट से घर के भीतर चली गई। जुमाई लगातार बांके बिहारी के घर के किवाड़ की ओर निहारता रहा। वह युवती भी चुपके से जुमाई की ओर देखने की कोशिश करती है। नजर मिलते ही वह वापस घर की ओर चली जाती है। वह मधु ही थी। बांके बिहारी की सबसे छोटी बेटी। जुमाई मन ही मन सोचने लगा कि पांच साल पहले तक यह कितनी मोटी थी। अब यह कितनी दुबली-पतली हो गई है। जुमाई पूरे दिन तक इस ताक में था कि उसे मधु दिख जाए। लेकिन उसे मधु दिखी नहीं।

अगले दिन वह जल्दी उठ गया। साढ़े तीन बजे थे। बांके बिहारी के दुआर की ओर देखने पर उसे कुछ भी नजर नहीं आया। कुछ ही देर में मधु वहां रस्सी कूदती हुई नजर आई। जुमाई उसे निहारने लगा। वह उसे इतनी सावधानी से देख रहा था कि उसे पता ही न चल सके। शायद मधु यह देख सकती थी कि जुमाई उसे देख रहा है लेकिन वह उधर ध्यान नहीं दे रही थी। अचानक जुमाई उठा और मधु की ओर हाथ बढ़ाया। मधु असहज हो गई। वह घर के भीतर जाना चाहती थी लेकिन जुमाई को अपने पास आते देख वह रुक गई। जुमाई बांके बिहारी के दुआर पर चला गया। मधु तनिक डरी हुई थी। लेकिन जुमाई को मालूम था कि इस गांव में इतनी जल्दी कोई नहीं उठने वाला है। उसने मधु की ओर देखते हुए कहा-तुम मधु ही हो न।  

मधु धीरे से बोली, शहर जाकर गांव के लोगों को भी भूल गए क्या? जुमाई ने कहा, नहीं मधु, लेकिन तुम इतनी बदल कैसे गई। मैं जब गया था तब तो तुम ऐसी नहीं थी। मोटी थी। इतनी दुबली-पतली कैसे हो गई?  मधु ने हिचकिचाहट भरे लहजे में कहा कि जुमाई मेरी शादी नहीं हो पा रही थी। जो कोई आता वह मुझे देख कर शादी के लिए मना कर देता। सब कोई कहता कि लड़की बहुत मोटी है और कद बहुत छोटा है। इसलिए मैंने सोचा कि अब मैं दुबली हो जाउंगी। जुमाई ने हंसते हुए कहा कि चलो शादी के बहाने ही सही कम से कम दुबली तो हुई। मधु भी हंसने लगी। जुमाई ने मधु के सिंदूर को देखते हुए पूछा कि क्या करते हैं पति तुम्हारे? मधु का मुस्कुराता हुआ चेहरा अचानक भाव शून्य हो गया। मधु कुछ देर ठहर कर बोली, वह मुझे छोड़ दिए हैं। दूसरी शादी कर ली उन्होंने। मैं अब यही रहती हूं। जुमाई उदास हो गया। मधु बिना कुछ बोले घर के भीतर चली आई। जुमाई अपने खाट पर जाकर लेट गया। वह विचारों में खो गया।

लगभग पंद्रह दिन गांव में रहने के बाद वह वापस शहर जाने के लिए तैयार होने लगा। जुमाई ने पूरे गांव का दिल जीत लिया था। वह गांव के कई लड़कों को शहर में काम कैसे मिलेगा यह बता चुका था। गांव के बुजुर्गों के लिए अगली बार शहर से सूती कपड़े लाने का वादा कर चुका था। कुछ लोगों ने जुमाई को गांव में ही रुकने को कहा लेकिन जुमाई ने कहा कि अब मालिक के विदेश से लौटने का समय आ गया है। मैं ही उनका मेन ड्राइवर हूं। मैं नहीं जाऊंगा तब सब काम गड़बड़ा जाएगा। छुट्टी मिलेगी तो मैं आता-जाता रहूंगा।

गांव के सभी लोगों से दुआ-सलाम करने के बाद वह बांके बिहारी के घर गया। बांके ने उसे अपने घर   के भीतर बैठाया। उसने बांके की ओर नजर झुका कर देखा और कहा कि चाचा मैं कई दिनों से आपसे कुछ कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। बांके बोले, कहो बेटा क्या बात है। रुपया पैसा का दिक्कत है क्या? जुमाई बोला, नहीं चाचा। भगवान की कृपा से कोई कमी तो नहीं है। बांके बोले, तो क्या बात है बेटा? जुमाई ने कहा कि चाचा मैं मधु से शादी करना चाहता हूं। बांके इतना सुनते ही उठ खड़े हुए और बोले कि बेटा तुम क्या कह रहे हो तुम्हें पता भी है? जुमाई ने कहा कि मैं पूरे होश में यह बात कह रहा हूँ। मधु एक तलाकशुदा लड़की है। उसकी उम्र अभी बहुत कम है। उसका आगे का जीवन क्या अकेले ही बीत जाएगा। बांके बोले, बेटा मैं तो खुद चाहता हूँ कि उसकी शादी हो लेकिन वह कहती है कि अब शादी नहीं करूंगी। और बेटा ऊपर से तुम मेरे जाति के भी नहीं हो। पूरे गांव में बदनामी हो जाएगी। जुमाई बोला कि कोई बदनामी नहीं होगी। मैं शहर में रहता हूं। अच्छा पैसा कमाता हूं। मधु साथ रही तो वह भी कुछ काम करेगी। यहां रख कर उसका जीवन क्यों बर्बाद करना चाहते हैं आप। बांके ने अपने आंसू पोछते हुए कहा, वह अगर तैयार हो जाए बेटा तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। जुमाई ने झट से कहा कि वह तैयार है।

तभी कमरे से मधु एक झोले में दो जोड़ी कपड़े लेकर बांके के नजदीक आ गई। बांके ने पहली बार अपनी बेटी के अंदर इतनी हिम्मत देखी। उन्हें बेहद खुशी हुई। वह मधु की ओर देख कर बोले, … तो तुम चाहती हो ऐसा? मधु ने अपनी मां की ओर देखते हुए कहा….सिर्फ मैं ही नहीं मेरे साथ-साथ मां और गांव की सभी औरतें ऐसा चाहती हैं। बांके समझ गए कि जुमाई ने पहले ही मधु की मां से बात कर ली है। बांके ने स्नेह से जुमाई को गले से लगा लिया। वो रोते हुए बोले, बेटा बड़ा अहसान कर रहे हो तुम मुझ पर। मेरी बेटी बहुत उदास रहती थी। इसके पति ने जबसे इसे छोड़ा, तब से हम सब दिन-रात रोते हैं। छोड़ी हुई लड़की से कोई रिश्ता करना भी नहीं चाह रहा था। तुम्हारा यह अहसान हम कभी नहीं भूूलेंगे। जुमाई ने कहा कि यह कोई अहसान नहीं है। मधु की उम्र ही अभी क्या है?  मुझे मधु में कोई खामी नहीं नजर आती। मैं सौभाग्यशाली हूं जो मुझे मधु जैसी पत्नी मिली। मैं भी तो अकेला ही हूं इस दुनिया में। मधु जैसी जीवनसाथी अगर मिल जाए तो जीवन स्वर्ग हो जाए।

पूरे गांव में खुशी की लहर उमड़ पड़ी। …रास्ते में जुमाई ने मधु की ओर देखते हुए पूछा कि जानती हो मेरे मन में तुमसे शादी करने का ख्याल क्यों आया? मधु कुछ नहीं बोली। जुमाई ने कहा, क्योंकि मुझे तुम्हारी जरूरत है। और तुम्हें मेरी। हम दोनों मिल कर एक दूसरे का दुख कम करेंगे। …मधु की आंखों में आंसू आ गए। गाड़ी शहर की ओर निकल पड़ी।

About the author

देवेश भारतवासी

युवा लेखक देवेश भारतवासी मूल रूप से कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं। स्कूल तक की पढ़ाई गोरखपुर से और स्नातक स्तर की पढ़ाई नेशनल पीजी कॉलेज (लखनऊ विश्वविद्यालय) से हुई है। वर्तमान में देवेश भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी ) से हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन कर रहे हैं। वे पढ़ाई के साथ-साथ समाचारपत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखते हैं। तमाम डिजिटल मंचों के लिए कंटेंट भी तैयार करते हैं। किताबों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध और समसामयिक विषयों पर लिखना उन्हें पसंद है। कभी-कभार कविता लिख लेते हैं। मंचों पर काव्य पाठ भी कर लेते हैं।

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