संजय स्वतंत्र II
मैं आऊंगा –
अधूरे ख्वाबों को
पूरा करने और
तुम्हारे चेहरे को
बना दूंगा ब्रह्मांड।
मन की थाल में
समेट लूंगा कोई
टूटता हुआ तारा
तुम्हारी कोई कामना
पूरी करने के लिए।
मैं आऊंगा-
मन की मुंडेर पर
बैठूंगा साथ-साथ
गुमसुम तुम्हारी निगाहों में
पलटूंगा अतीत के पन्ने
गढूंगा एक नया भविष्य।
मैं आऊंगा-
उलझनों को सुलझाने
और तुम्हारी लटों में
छुपमछुपाई खेल रहे
चांदी जैसे बालों से
वीणा के तार बनाऊंगा
रचूंगा तुम्हारे लिए
नव जीवन/ नव संगीत।
मैं फैल जाऊंगा
तुम्हारे हृदय में
चंदन वृक्ष की तरह,
बेदम होती तुम्हारी सांसों में
नित नया प्राण भरूंगा,
सुवासित करूंगा तुम्हें।
मैं आऊंगा-
और तुम्हारी पलकों पर
बैठ जाऊंगा,
सोख लूंगा तुम्हारे आंसू।
बांध कर एक दिन
ले जाऊंगा तुम्हारी
सारी उदास रातें।
लिख कर छोड़ जाऊंगा
तुम्हारे लिए कविताएं।
मैं आऊंगा-
किसी न किसी दिन
तुम्हारी रिक्तता में
पूर्णता भरने और
जीवन-मरण के चक्र से
मुक्त कर दूंगा।
मैं आऊंगा-
किसी मंदिर की सीढ़ियों पर
फिर मिलूंगा तुमसे,
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह
बिखर जाऊंगा
पूजा की थाल में
या फिर तुम्हारे आंगन
तुलसी बन उग जाऊंगा,
खुद में मुझको भर लेना।
मैं आऊंगा-
वहां तक
जिसे लांघने की
इजाजत तुमने दी है।
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