डॉ॰ सुमन सचदेवा II
कहा उसने
बहुत प्यार है तुमसे
मगर अपनी ज़रूरत,
फ़ुर्सत व इच्छा से ही
कर पाए इज़हार
कहा मुझसे कि
ख़ुश रहा करो
मगर
खुशियों की परिभाषा
उसने ही बनाई
इच्छा थी उसकी
सज संवर कर रहूं
मगर मेरे श्रृंगार के साधन
उसकी पसंद के थे
खाओ- पियो
ऐश करो कहकर
मेन्यू का चुनाव भी
सदा उसी का रहा
कहा उड़ो आसमान में
मगर आसमान की
हद, ऊंचाई व दिशा भी
उसी ने तय की
बोले कि मुस्कराहट
सुंदर लगती है
तुम्हारे चेहरे पर
और उसके लिए
मुस्कुराते, मुस्कुराते
मेरी उन्मुक्त हंसी
कहाँ खो गयी
पता ही न चला
कहने को उसने
बहुत कुछ दिया
मगर वो सब
जो मेरा था
वो क्या हुआ?
कहाँ खो गयी मैं?
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