लेखक परिचय/ कवि परिचय

राष्ट्रकवि दिनकर जी की कलम या कि तलवार

अश्रुत पूर्वा II

कलम या कि तलवार

दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार
मन में ऊंचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार

अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊंचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली

पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे

एक भेद है और वहां निर्भय होते नर-नारी,
कलम उगलती आग, जहां अक्षर बनते चिंगारी

जहां मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,
बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले

जहां पालते लोग लहू में हालाहल की धार,
क्या चिंता यदि वहां हाथ में नहीं हुई तलवार

कलम आज उनकी जय बोल

जला अस्थियां बारी-बारी
छिटकाई जिनने चिंगारी,
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए,
किसी दिन मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रहीं लू लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा?
साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

रोटी और स्वाधीनता

आज़ादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहां जगाएगा?
मरभूखे! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा?
आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आज़ादी की खैर नहीं।

हो रहे खड़े आज़ादी को हर ओर दगा देने वाले,
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेने वाले।
इनके जादू का ज़ोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है?
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़ कर मनुष्य रह सकता है?

झेलेगा यह बलिदान? भूख की घनी चोट सह पाएगा?
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा?
है बड़ी बात आज़ादी का पाना ही नहीं, जगाना भी,
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।

पिछवे दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि खामोशी से गुजर गई। कहीं न कोई आयोजन हुआ और न कोई काव्य पाठ। स्वतंत्रता पूर्व ‘दिनकर’ को एक विद्रोही कवि के रूप में जाना जाता था। उन्हें ‘जनकवि’ और ‘राष्ट्रकवि’ दोनों कहा गया। देश के क्रांतिकारी आंदोलन को दिनकर ने अपनी कविता से स्वर दिया। वे छायावादी कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल शृंगार रस की भावनाओं की भिव्यक्ति भी है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक रचनाओं में मिलता है।

About the author

ashrutpurva

Leave a Comment

error: Content is protected !!