लेखक परिचय/ कवि परिचय

प्रेमचंद : एक याद कलम के सिपाही की

अश्रुत पूर्वा II

आज के दौर के लेखकों के लिए मुंशी प्रेमचंद मिसाल हैं जिन्होंने शोषण, वर्गवाद  व अन्याय के खिलाफ और मनुष्यता, ईमानदारी, परिवार तथा परंपरा को सहेजने के लिए जो कलम उठाई, वह अंतिम सांस तक चलती रही। उनकी सादगी और विनम्रता ऐसी कि दिल छू जाए। अब इतना बड़ा लेखक कौन होगा जो इतने साधारण कपड़े पहनता हो कि पहचानना मुश्किल हो जाए। जूते भी ऐसे कि अब फटे कि तब फटे। बस काम चल जाए।
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। जबकि वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की शुरुआती शिक्षा फारसी में हुई। उनके माता-पिता के संबंध में रामविलास शर्मा ने लिखा है -जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पंद्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहांत हो गया। वहीं मुंशी प्रेमचंद अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखते हैं कि पिताजी ने जीवन के अंतिम बरसों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया। मेरी शादी बिना सोचे समझे करा दिया।
इस बात की पुष्टि रामविलास शर्मा के इस कथन से होती है-सौतेली मां का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडे-पुरोहित का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन, यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था। इसीलिए उनके ये अनुभव एक जबर्दस्त सच्चाई लिए हुए उनके कथा-साहित्य में झलक उठे थे।
प्रेमचंद नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। उनकी पहली रचना के बारे में रामविलास शर्मा ने लिखा है-प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप हुई उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने पहली रचना नाम के अपने लेख में किया है। बता दें कि उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद है जो धारावाहिक रूप में छपा। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास हमखुर्मा व हमसवाब है जिसका हिंदी रूपांतर प्रेमा नाम से 1907 में में आया।  
अगले ही साल उनका पहला कहानी संग्रह सोजे-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियां जब्त कर लीं। इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसी कारण उन्हें नाम बदल कर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायण निगम ने रखा था। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ जमाना पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में छपी।
प्रेमचंद का कथा संसार इतना विराट है कि उसका मुकाबला करना आज किसी के लेखक के वश में नहीं। उनके लिखे की आलोचना करना आसान है, मगर उनके जैसा लिखना मुश्किल है। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास गोदान से विश्व साहित्य में हिंदी को जो प्रतिष्ठा दिलाई वह अविस्मरणीय है। लिखने पढ़ने का शौक उन्हें एक दिन उपन्यास सम्राट बना देगा, यह उन्होंने भी नहीं सोचा होगा।  
उनके 18 से अधिक उपन्यासों में से गोदान को वह ख्याति मिली जो आज तक किसी लेखक को नसीब नहीं हुई। यह कालजयी कृति है। इसके अलावा गबन, रंगभूमि, सेवा सदन, कर्मभूमि आदि खास तौर से लाखों पाठकों ने पढ़े। इसके अलावा प्रेमचंद ने तीन कहानियां लिखीं जो आठ भागों में मानसरोवर नाम से प्रकाशित हुई।  इनमें लगभग तीन सौ कहानियां संकलित हैं। प्रेमचंद की कई कहानियों का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। ईदगाह, कफन, बड़े घर की बेटी, नमक का दारोगा, मंत्र आदि यादगार कहानियां हैं।  
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का लंबी बीमारी के बाद आठ अक्तूबर 1936 को निधन हो गया। उनकी रचनशीलता को देखते हुए उन्हें सही मायने में कलम का सिपाही कहा जा सकता है। उनके जन्मदिन पर हमारा पुण्य स्मरण।

जन्मदिन पर पुण्य स्मरण: प्रेमचंद के कथा संसार का कोई लेखक नहीं कर सकता मुकाबला।

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