मनस्वी अपर्णा II
टेस्ला के मालिक और जाने-माने उद्यमी एलन मस्क ने एक साक्षात्कार में जीवन के विषय में कुछ कहा है। उसका सार कुछ यों है कि जीवन सिर्फ समस्याओं को सुलझाने के लिए नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा बड़े उद्देश्यों के लिए है।
एलन मस्क की बात अक्षरशः सत्य है। अगर हम आप अपने जीवन को गौर से देखें, तो पाएंगे कि हमारे वक्त का अधिकांश हिस्सा किसी न किसी समस्या को सुलझाने या उनमें उलझ जाने में बीत जाता है। दिन प्रति दिन हमारा जीवन इतना जटिल होता जा रहा है कि बिना किसी समस्या के दैनंदिन जीवन की कल्पना ही मुश्किल हो गई है। हालांकि हमारी पूरी जद्दोजहद बस इसी लिए होती है कि हम अपने जीवन को कितना सरल और सुगम बना लें। मनुष्यता विज्ञान की मदद से लगातार इस दिशा में प्रयासरत है।
रोज कोई एक नया आविष्कार हमारे सामने होता है जो हमारे जीवन को सुगम बनाने की दिशा में एक नया आयाम खोलता है, लेकिन उसी के साथ एक नई तरह की चुनौती भी हमारे सामने आ खड़ी होती है। हमने सुख-सुविधाओं के जितने भी साधन जुटाए हैं। उनको मैनेज करना उतना ही मशक्कत भरा काम होता है। और ये मेंटेनेंस सदा ही मुंह बाए खड़ा रहता है। हम कभी इलेक्ट्रिशियन, तो कभी प्लंबर तो कभी आरओ सर्विस तो कभी कार की तकनीकी उलझनों में उलझे रहते हैं।
- घर से बाहर निकलते ही भीड़, ट्रैफिक और शोर से हमारा सामना होता है। उससे भिड़ कर निकले तो नौकरी में टाइमिंग, परफॉमेंस और दफ्तर कीराजनीति अपना शिकंजा कसने को तैयार बैठी हैं। घर आकर नींद नहीं आने की मुसीबत, बच्चों के स्कूल की चिंता, परिवार की जिम्मेदारियां तैयार बैठे हैं। अमूमन इसी जद्दोजहद में हर इंसान की कीमती जिंदगी बर्बाद हो रही है।
घर से बाहर निकलते ही लोगों की भीड़, ट्रैफिक और शोर से हमारा सामना होता है। उससे भिड़ कर निकले तो नौकरी में टाइमिंग, परफॉमेंस और दफ्तर कीराजनीति अपना शिकंजा कसने को तैयार बैठी मिलती है। घर आकर नींद नहीं आने की मुसीबत, बच्चों के स्कूल की चिंता, परिवार की जिम्मेदारियां अलग से घेर लेती हैं। अमूमन इसी जद्दोजहद में हर इंसान की कीमती जिंदगी बर्बाद हो रही है।
लोगों के पास खुद के लिए सोचने का, खुद की साज-संभाल का या खुद को बेहतर बनाने के लिए वक्त नहीं है। ये भागती-दौड़ती जिंदगी रुकने का नाम ही नहीं लेती और आखिरकार ये होता है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी हमारे हाथ खाली रह जाते हैं। और बहुमूल्य जीवन इसी मूर्खता की भेंट चढ़ जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि हम क्या करें कि जीवन को अर्थपूर्ण ढंग से जी सकें। क्योंकि ये तो संभव नहीं है कि ये रोजी-रोटी और बाकी के काम बंद कर दिए जाएं। नहीं! जीना है तो ये प्राथमिक जरूरतों के काम हमें करने ही पड़ेंगे, लेकिन हम अपनी एक सीमा रेखा जरूर तय कर सकते हैं। किसी भी समस्या में पड़ने का एक निश्चित स्तर तय कर सकते हैं।
किस बात को कितना महत्व देना है और किस बात बात में कितना इन्वॉल्व होना है। हम इसका दायरा तय कर सकते हैं। क्योंकि हम प्रयास भी निश्चित सीमा तक ही कर सकते हैं जो कि हमारे हाथ में होते हैं। उसके बाद तो हमको संबंधित व्यक्ति या परिस्थिति पर निर्भर होना ही होगा क्योंकि अब बात उनके कार्यक्षेत्र की है, तो अपनी सीमा में अपने प्रयास कीजिए और बेहतर होगा कि समस्याओं को सुलझाने का स्मार्ट तरीका खोजिए ताकि आपकी ऊर्जा और समय की बचत हो सके ताकि आप किसी सकारात्मक और सार्थक दिशा में लग सके जिससे आप वो काम कर सकें, जिसके लिए ये जीवन मिला है।
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