मनस्वी अपर्णा II
एक प्रेरक कथा हम सदा से सुनते आए हैं कि आंधी जब भी आती है तो तने हुए पेड़ उखड़ जाया करते हैं और कोमल तिनके बचे रह जाते हैं, एक खास परिस्थिति तक तो ये तर्क वाजिब जान पड़ता है कि विपरीत परिस्थितियां आंधी की तरह होती हैं इनमें अहंकार में तने व्यक्ति जड़ से समाप्त हो जाते हैं और विनीत व्यक्ति अपनी जगह टिके रहते हैं, मैं इससे आगे की बात करती हूं, कि तने हुए पेड़ उखड़ गए झुके हुए तिनके बच गए… फिर किसी एक दिन जलजला आया, भयंकर, विद्रूप और उसमें कौन बचा? कोई नहीं…न तिनका, न पेड़,न धरती, न पहाड़ कुछ नहीं। उस वक्त कोई सलाह, कोई सीख, कोई प्रेरणा, कोई सहारा काम नहीं आया। मनुष्य के जीवन में विपत्तियां ठीक इसी तरह आती है, जब कोई सलाह, कोई प्रेरणा, कोई, सीख काम नहीं आती,और सहारे तो खैर कोई बचते ही नहीं।
हम मनुष्य स्वभाव से विश्वासी प्रवृति के होते हैं, लेकिन बड़ी से बड़ी भूल यदि हम कोई करते हैं तो वो ये है कि हम खुद के इतर किसी भी अन्य पर खु़द से ज्यादा विश्वास करते हैं…। सब ऐसा करते हैं। ऐसा नहीं कहूंगी, पर कुछ सरल लोग ऐसा करते हैं, और ये सरलता उन्हें सहज ही रसातल को ले जाती है, मैंने अपने जीवन में कई ऐसे लोग देखें हैं जो उनसे कहा गया, उसी को सच मान लेते हैं, अक्षरश: सत्य। वे अक्सर उन धूर्त लोगों का शिकार बनते हैं। विषय यह नहीं है कि हमको अतिविश्वासी या अविश्वासी होना चाहिए या नहीं।
- हमको सबसे अधिक विश्वास खुद पर होना चाहिए। हमारे अतिरिक्त और कोई नहीं होता जो मुसीबत में हमारे साथ खड़ा होता है, हम चाहें या न चाहें, लेकिन हमको ही अपने पर आई विपत्ति झेलनी पड़ती है। और ऐसे समय में यदि हम ही अपना आत्मविश्वास कम कर देंगे तो मुसीबत दुगुनी हो जाएगी।
विषय ये है कि हमको सबसे अधिक विश्वास खुद पर होना चाहिए। हमारे अतिरिक्तऔर कोई नहीं होता जो मुसीबत में हमारे साथ खड़ा होता है, हम चाहें या न चाहें, लेकिन हमको ही अपने पर आई विपत्ति झेलनी पड़ती है। और ऐसे समय में यदि हम ही अपना आत्मविश्वास कम कर देंगे तो मुसीबत दुगुनी हो जाएगी।
मैं अक्सर कहती हूं कि जब भी हम पर मुसीबतें आती हैं तो पूरी एक साथ समूह में आती हैं, क्योंकि डरती हैं कि अगर एक-एक करके आई तो हम उन्हें हरा देंगे, उनसे पार पा लेंगे। और ऐसा होता है जब हम मुश्किलों में घिरते जाते हैं तो ये सिलसिला बढ़ता ही जाता है और यही वो वक्त होता है जब हमारा खुद से यकीन उठने लगता है और हिम्मत जवाब देने लगती है।
तो मुद्दे की बात यह है कि पराए सहारे ढूंढने के बजाय हम खुद को अपने सबसे मजबूत सहारे के तौर पर तैयार करें, किसी और की हिम्मत और मदद की बजाय अपनी हिम्मत जुटाएं। यों भी जब बुरा वक्त आता है तो साथी, सहारे और रहनुमा सभी दूर हो जाते हैं। मुसीबतें हमको तनहा कर ही देती है, लेकिन इस तनहाई का अफसोस करने की बजाय अपनी हिम्मत पर भरोसा कीजिए वो भरोसा जो आपको किसी और पर था जिसके टूटने का आपको दिली अफसोस होता है, वही भरोसा आप अपने आप पर रखिए, अपना साथ खुद दीजिए और अपने रहनुमा भी खुद ही बनिए, ये मुमकिन है कि थोड़ा ज्यादा वक्त लग जाए, लेकिन आप यकीनी तौर पर बुरे हालात और उलझनों से निकल आएंगे।