विनीत मोहन ‘औदिच्य’ II
विधा – गीतिका
पदांत – “हिंदी”
समांत – ई
छंद – विधाता
मात्रा भार – 1222 1222 1222 1222
मनोहर भारती के भाल पर मोहक सजी हिंदी ।
सदा बहती रहे पावन धरा पर जान्हवी हिंदी ।।
यहाँ हर प्रान्त में भाषा, विविध ये रूप दिखलाये ,
सभी को मोह लेती है, मधुरता से भरी हिंदी ।
बिहारी, सूर तुलसी, जायसी, रसखान, मीरा की ,
कहो ना कौन इठलाये, न पढ़, इनकी लिखी हिंदी ?
निराला, पंत, नीरज, भारती, दिनकर, महादेवी,
हुई जो स्नेह की वर्षा, निखर कर जी उठी हिंदी ।
हजारी, शुक्ल, मुंशी प्रेम, राघव, रेणु, यायावर,
संवारा हर किसी ने, मान से फूली, खिली हिंदी ।
कहाँ तक मैं बखानू, गीत में गाकर तेरी महिमा ?
हृदय की धड़कनों में उष्णता पाकर बसी हिंदी ।
यही है स्वप्न आँखों में, यही इक कामना हृद की ,
बनेगी राष्ट्र की भाषा सुहानी सी कभी हिंदी ।