काव्य कौमुदी गीत/ गद्यगीत/अन्य

हिन्दी

विनीत मोहन ‘औदिच्य’ II

विधा – गीतिका 
पदांत – “हिंदी”
समांत – ई 
छंद – विधाता 
मात्रा भार – 1222 1222 1222 1222

मनोहर भारती के भाल पर मोहक सजी हिंदी ।
सदा बहती रहे पावन धरा पर जान्हवी हिंदी ।। 

यहाँ हर प्रान्त में भाषा, विविध ये रूप दिखलाये , 
सभी को मोह लेती है, मधुरता से भरी हिंदी । 

बिहारी, सूर तुलसी, जायसी, रसखान, मीरा की , 
कहो ना कौन इठलाये, न पढ़, इनकी लिखी हिंदी ? 

निराला, पंत, नीरज, भारती, दिनकर, महादेवी, 
हुई जो स्नेह की वर्षा, निखर कर जी उठी हिंदी ।

हजारी, शुक्ल, मुंशी प्रेम, राघव, रेणु, यायावर, 
संवारा हर किसी ने, मान से फूली, खिली हिंदी ।

कहाँ तक मैं बखानू, गीत में गाकर तेरी महिमा ? 
हृदय की धड़कनों में उष्णता पाकर बसी हिंदी ।

यही है स्वप्न आँखों में, यही इक कामना हृद की , 
बनेगी राष्ट्र की भाषा सुहानी सी कभी हिंदी । 

About the author

विनीतमोहन औदिच्य

श्री विनीत मोहन औदिच्य - १० फरवरी, १९६१ को उत्तरप्रदेश के करहल में जन्मे आप , संप्रति उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। एक सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार और सिद्धहस्त हिन्दी कवि के रूप में उनकी प्रतिभवान लेखनी हिंदी की विभिन्न साहित्यिक विधाओं में मानव जीवन के हर एक पहलू को स्पर्श करती है। उनके प्रकाशित 5 एकल संग्रहों व 9 साझा संग्रहों में 'खुशबु ए सुख़न', 'काव्य प्रवाह', 'कारवां ए ग़ज़ल', 'भाव स्रोतस्विनी' एवं 'अंदाज़ ए सुख़न' सम्मलित हैं। अंग्रेजी के सोनेट कवियों को हिंदी में अनूदित करने की उनकी अभिरुचि को 'प्रतीची से प्राची पर्यंत' में एवं नोबेल सम्मान विजेता पाब्लो नेरुदा के हंड्रेड लव सोनेट्स का हिंदी अनुवाद 'ओ, प्रिया! में पूर्णता प्राप्त हुई है।

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