प्रो. विश्वम्भर शुक्ल II
जैसे इक पिंजरे की मैना,
चुप रहना, क्या बोले बैना,
पहरे में अटकी है जान!
ये है अपना हिन्दुस्तान!!
मुख पर पड़ा आवरण भारी,
घूँघट के भीतर से नारी,
ढूँढ़ रही अपनी पहचान।
ये है अपना हिन्दुस्तान!!
चूल्हा, चक्की, विथा पुरानी
गोबर, कंडा, चारा, पानी,
कब तक वही पुराण?
ये है अपना हिन्दुस्तान!!
अंतरिक्ष तक जाकर आई,
पड़ी न आहट अभी सुनाई
छप्पर, छानी बंद , मकान ।
ये है अपना हिन्दुस्तान !!
दिन ये कब बदलेंगे भाई?
कब जागेगी भारत माई?
कब होगा इनका सम्मान?
ये है अपना हिन्दुस्तान!!
पर्दा, घुँघटा, बंद कोठरी,
निश्छल मन में नहीं खोट,री!
जागो अब सन्नारि महान।
ये है अपना हिन्दुस्तान!!