काव्य कौमुदी गीत/ गद्यगीत/अन्य

दिव्य मंजुल मेरा हिन्दुस्तान

डाॅ. फ़िरोज़ II

यहाँ तीज पर्व दीपावली,
गणगौर ओणम होली है।
हैं विविध धर्म, अनेक कर्म,
जन जन में मीठी बोली है।।
जो अनेकता में एकता का पुण्य ईशनिधान है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

गंगा यमुना सिन्धु सतलज,
व्यास कावेरी है अचलज।
देकर यहाँ अमृत सदा
रखती मनुज का ध्यान है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

काशी काञ्ची मथुरा माया,
जीव है यहाँ मुक्ति पाया।
होता सदा चञ्चलमना
मुदितात्म वो इंसान है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

नाग नग नारी दिवाकर,
धेनु पादप दिक् निशाकर।
स्रोतस्विनी नित लोकमन से
पाते जहां सम्मान हैं,
हर जहाँ से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।

बन्धुता का भाव जग में,
नेह का अंकुर रग में।
उत्पन्न करता जो सदा मङ्गल ललित वो महान् है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

रामकृष्ण विवेक गौतम,
बुध्द नानक हैं नरोत्तम।
पावन किया जिस देश को गौरव है वो अभिमान है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

नगराज है जिसका वदन,
सागर से संस्पर्शित चरन।
जो मलयगिरि की सुगन्ध का करता अहर्निश पान है,
हर जहां से दिव्य मञ्जुल मेरा हिन्दुस्तान है।।

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ashrutpurva

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