राधिका त्रिपाठी II
देह का दुख हमेशा स्त्रियों के हिस्से ही आया। सदियों से ऐसा होता आया है। इसकी वजह यह कि स्त्रियों ने अपने अधिकारों के लिए कभी घर में ही आवाज नहीं उठाई। नतीजा दमन की शिकार इन महिलाओं को समाज में अपना स्थान बनाने के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है। कार्यस्थलों पर कामकाज से लेकर वेतन तक में भेदभाव दिखता है। नारी-पुरुष समानता की बात करने वाले भी इस भेदभाव को बढ़ाने में पीछे नहीं हटते।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और बदतर है। न उचित आहार और न स्वास्थ्य की सुविधा। उस पर से उसका शोषण। नतीजा कई महिलाएं तो कम उम्र में ही कुपोषित और बूढ़ी दिखने लगती हैं। तन से लेकर मन तक का हर तरह का दुख भोगते हुए एक दिन वे इस दुनिया से चली जाती हैं। देश में ही क्यों, दुनिया भर की करोड़ों स्त्रियों की यही गाथा है। वे बच्चे पैदा कर के और पुरुषों के भोग का साधन बन कर एक दिन गुमनाम मौत का शिकार हो जाती हैं। उनकी अथाह पीड़ा न तो किसी इतिहास में और न कहानियों की किताबों में मिलती है।
इस छोटी सी कहानी को ही लीजिए।
वह भाग जाना चाहती थी। उस घर से, उस पुरुष से दूर जो निकाह करउसे अपने साथ ले गया था रानी की तरह। पहली रात ही वह जब अपनी नजरें उठाई तो सामने अधेड़ उम्र के चचा जान को देख कर सोफिया सहम गई, लेकिन शख्स को न तो अपनी उम्र का कोई अहसास था और न कोई शर्म। क्योंकि वे तो बतौर निकाह करके उसे लाए थे।
सोफिया के पिता घर बनाने वाले मिस्त्री थे। अपनी बेटी को वो सब मिलता देख खुश थे। वे सपने में भी वह सब कभी पूरा नहीं कर सकते थे। इसलिए राजी खुशी निकाह के लिए तैयार हो गए थे। कुछ महीने बीतते ही सोफिया गर्भवती हो गई। इसमें न तो उसकी कोई मर्जी थी न ही औलाद की ख्वाहिश। वह पुतले की तरह दिन गिनने लगी और एक रात अचानक उसे पेट दर्द के साथ रक्तस्राव शुरू हो गया। चचा जान की बहन किसी दाई को बुला लाई। वह उसके गर्भाशय पर कोई दवा रखती जिससे रक्त स्राव बढ़ गया जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
… सोफिया का गुलाब सा चेहरा पीला पड़ता गया। सोलह साल की कमसिन लड़की बेरंगत हो गई। उस पर से परिवार वालों के जुल्म। उसने मायके जाने की इच्छा जताई तो ससुराल वाले एक हफ्ते के लिए मान गए। वह मायके आकर मां के साथ अस्पताल गई। दवा ली और ठीक होने लगी। फिर ससुराल से बुलावा आ गया चलने के लिए। सोफिया के माता पिता ने मना कर दिया और उनसे कहा कि कुछ दिन और रहने दीजिए भाई बहन के साथ।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और बदतर है। न उचित आहार और न स्वास्थ्य की सुविधा। नतीजा कई महिलाएं तो कम उम्र में ही कुपोषित और बूढ़ी दिखने लगती हैं। तन से लेकर मन तक का हर तरह का दुख भोगते हुए एक दिन वे इस दुनिया से चली जाती हैं।
छह माह गुजरने के बाद सोफिया के घर शकील का आना जाना शुरू हुआ। दोनों हमउम्र थे। इसलिए बात आगे बढ़ गई। चचा जान को छोड़ सोफिया ने शकील से निकाह कर लिया। अब दोनों एक दूसरे में खोए रहते। समय मानो पंख लगा कर उड़ रहा था। अचानक सोफिया को पता चला की शकील तो पहले से शादीशुदा है। यह जान कर ऐसा लगा मानो उसके पैरों से जमीन खींच ली हो किसी ने। वह जिसे बेइंतहा प्रेम करती थी उसी ने उसे धोखा दिया था। अब वह क्या करे?
चलती हुई ट्रेन के सामने आत्महत्या करने के लिए वह भागी। परंतु इस सब में उस नन्ही सी जान का क्या दोष जो उसके गर्भ में पल रहा था। वह लौट आई कथित पति की दैहिक पिपासा शांत करने। अब फर्क बस इतना था की उस बूढ़े चचा जान की जगह शकील था। लेकिन सोफिया वही थी। वह जब शकील से तलाक की बात करती, वह कभी प्रेम तो कभी बच्चे तो कभी हलाला का वास्ता दे कर उसे डराए रहता…।
सवाल है कि पुरुषों के ख़्वाबों में हमेशा कम उम्र की कुंवारी लड़की ही क्यों आती है। दरअसल, यह ख़्वाब सिर्फ उसका अपना नहीं बल्कि मां का भी दिखाया हुआ होता है। कभी तलाकशुदा, उम्रदराज स्त्री किसी पुरुष के ख़्वाब में क्यों नहीं आई। अपनी उम्र से जरा सी बड़ी स्त्री से लोग शादी करना नहीं चाहते। उसे आंटी, अम्मा, चाची जाने किन किन शब्दों से संबोधित करते हैं। जबकि पुरूषों के लिए यह बोला जाता है कि वह तो साठे पर पाठा होता। सारे अमानवीय व्यवहार सिर्फ स्त्रियों के हिस्से क्यों।
इस मामले में मां-भाभियां भी कहीं न कहीं इस व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। वे भी जिन अत्याचारों से गुजरती हैं, उसी को बढ़ावा देती हैं। न जाने कितनी और सोफिया धोखा-फरेब और बेमेल विवाह की शिकार होकर अर्धविक्षिप्त होने के कगार पर खड़ी होंगी। आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ स्त्रियां चेहरे को ढकने को अधिकार मनाती हैं, मांग पर लगने वाले सिंदूर को सब कुछ मानती है परंतु अपने साथ होने वाले अमनवीय व्यवहार के लिए प्रतिरोध में एक शब्द तक नहीं कहतीं। आज इस पर सोचना होगा कि देह का दुख सिर्फ स्त्रियों के हिस्से क्यों।