कविता काव्य कौमुदी

मां बताती रही हमेशा

अमनदीप ‘विम्मी’ II

जवान होने पर मां मुझ पर कड़ी नजर रखती थी
वो नहीं चाहती थी कि
मैं देखूं गुलाब, सूंघू उसे और फिर
किसी के ख़्याल में डूबी दबा कर रख दूं
पुस्तक के पन्नों के बीच कहीं,
बार-बार उस पृष्ठ को खोलूं, मुस्कुराऊं…।

वह बताती रही हमेशा
प्यार एक रंगीन चिड़िया/सपना है, पंखविहीन

वह अखबार में छपी खबरों को पढ़ती रही, पढ़ाती रही
डरती रही और डराती रही,
लड़कियों के बेचे जाने, बलात्कार किए जाने वाली
खबरों के पन्ने सबसे ऊपर की तरफ रख
खबरदार करती रही हमेशा…

गाहे-बगाहे उन खबरों की तफ़्तीश कर
लौट आती मेरी निगाहों के समक्ष
तैरते रहे खून में लिपटे वो छितराए से काले अक्षर…

बावजूद इसके देखती रही मैं सपने
महसूसती रही रंग-बिरंगे पंखों वाली
चिड़िया के पंखों के खूबसूरत रंग
दरकिनार कर उसके पंखों का कुतरा होना…।

मैंने हीर-रांझा, सोहनी महिवाल के
प्यार की कसमें खाई
अंजाम से इतर ढूंढती रही
कभी न मिल पाने वाली पल भर की खुशी
भूल गई नकली प्रतिष्ठा को ढोने वाली मूंछों के
परोसे हुए दाने स्नेह नहीं बंधन हैं…।

उन मूंछों की प्रतिष्ठा को बचाने के एवज में
ढोए अनगिनत दुख
न उड़ने पाने की कसक से उपजी बदहवासी को
छुपाने की कोशिश में उलझी मैं
अभी भी इस बात को लेकर जद्दोजहद में हूं
कि मैं कौन हूं और शिकारी कौन…?

About the author

Amandeep Gujral

अमनदीप गुजराल
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मी अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ की प्रारंभिक शिक्षा बालको (छत्तीसगढ़) के केंद्रीय विद्यालय में हुई। लिखने का क्रम आठवीं कक्षा से शुरू हुआ, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं साझा काव्य संकलनों से गुजरता हुआ संग्रह (ठहरना जरूरी है प्रेम में) के रुप में सामने आया है। वे कहानियां भी लिखती हैं। एमकॉम तक शिक्षा प्राप्त अमनदीप नवी-मुंबई में निवास करती हैं। लेखन उनके लिए उम्मीद की किरण है। श्रद्धा है, एक सतत प्रयास है।

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