कविता काव्य कौमुदी

जब समय मिले

केदारनाथ सिंह II

आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना

आना
जैसे हाथों में
आता है जांगर
जैसे धमनियों में
आता है रक्त
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आंच
आना

आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए कांटे।

दिनों को
और वादों की धज्जियां उड़ाते हुए

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