केदारनाथ सिंह II
आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना
आना
जैसे हाथों में
आता है जांगर
जैसे धमनियों में
आता है रक्त
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आंच
आना
आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए कांटे।
दिनों को
और वादों की धज्जियां उड़ाते हुए