बाल कविता बाल वाटिका

बच्चों ने उड़ाई पतंग

सांवर अग्रवाल II

देखो मकर संक्रांति आई,
सब के चेहरे पर खुशियां आई,
सोनू मोनू चहके-चहके हैं,
खिचड़ी की खुशबू से महके हैं।

खिचड़ी बनी है गरम-गरम,
दादाजी के दांत नरम-नरम,
आसानी से होती हजम,
आज खिचड़ी खाने का है धरम।

तभी बबलू पिंकी दौड़ी आई,
हरी नीली पतंग ले आई,
छोटी सी मिनी भी बोली,
पतंग बनी सब की हमजोली।

चलो अब ऊपर आ जाओ,
धागे पर मांजा लगा आओ,
पापा भी पतंग उड़ाएंगे,
मम्मी से पेच लगाएंगे।

लहरा रही पतंगें अंबर में,
मुन्ने की पतंग फंसी भंवर में,
गुड्डी ने लगाया पेच,
बबलू ने पतंग को लिया खेंच।

कट्टम कटाई-कट्टम कटाई,
चारों तरफ खुशियां लहराई,
बच्चों ने उड़ाई पतंग,
जीवन हुआ रंग-बिरंग।

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