कविता काव्य कौमुदी

स्त्री!

डॉ. मंजुला चौधरी II

स्त्री!
तुम अपने आस-पास पसरे वर्जनाओं के जाल में क्यों उलझती हो,
जबकि हमेशा टूटती हैं वर्जनायें वो चाहे यौन की हों या मौन की धूप में जब एक बूंद टपकती है।
तन पर, तो तुम चिहुँक उठती हो

निरंतर टूटना जारी है
चिलचिलाती
उसकी तरावट में पसीजती हो,
या रिसता है वजूद?
नहीं! नहीं!
अब तुम लापरवाही से कंधे उचकाकर चल मत देना,
क्योंकि तुम्हें पता है कि,पसीजता है मन
और रिसता है ह्रदय…
तुम आज भी हर रिश्ते को अपनी जिन्दगी,
और निभाना ज़िद मान बैठती हो….

स्त्री!
किसी भी रिश्ते के ज़द में जाने से पहले उसकी छुअन को कहाँ महसूस करती हो?
दिल पर या देह पर?
तुम जानती हो टेढ़े-मेढ़े /सीधे रास्तों में फर्क करना लेकिन
इन सबके बावजूद भी रपटीली पगडण्डी पकड़
चल पड़ती हो जिंदगी जीने या बिताने?
क्या पता?

स्त्री!
रात के अँधेरे में तुम इस विश्वास को जीती हो कि-सुबह का सूरज अलग होगा…
रोशनी से चौधियायें चेहरे पर भी
तुम सूरज की भी हरकतों पर नज़र रखती हो
सूकून होगा की कैसे वो कंक्रीट के फैले जंजाल के बीच झांकने की जगह ढूंढ लेता है
जबकि तुम जानती हो की
सूरज को अय्यारी आती है…
क्योंकि वो दरारों के बीच से भी निकलना जानता है।

स्त्री!
तुम्हें एहसास है मूल्यहीनता का…
दरारों के बीच ऊभ-चुभ हुए सूरज का
जो अपनी साँसों को संभालता है सीने पर हाथ रख आश्वस्त होता है
कि- कहीं कोई नश्तर चुभा तो नहीं!
तुम टटोलती हो घायल सूरज के अंतर्मन को
उसकी बौखलाहट को कैसे वो अन्दर हीं अन्दर तिलमिलाता है,
खून छलछलाए मुँह को लिए है।
इधर-उधर भागता है

स्त्री!
तुम खून हो या पानी उसे अपने आँचल से
पोंछने को तैयार रहती हो,
कोई परवाह नहीं की कड़वा है या मीठा
अपनी आँखों को बंद किये सप्तपदी के मन्त्रों को आत्मसात करते हुए,
वामांगी होने के अर्थ को जीती हो
जबकि अन्दर ही अन्दर छींजती,
उमड़ती और रह-रहकर बरसती हो.
खारे पानी के अदृश्य तालाब में डूबते,उतराते
दुहराती हो- “अति आर्ता भविष्यामि सुखदुःखानुगामिनी

स्त्री!
क्यूँ हमेशा आस में जीती हो छोड़ो!
खुद को खंगालना और निचोड़ना बंद करो बची-खुची रोटी में टुकड़े करना,
अपने हिस्से का पानी कहीं और बाँटना इतना मत निचोड़ो की जिंदगी

रेगिस्तान बन जाए…
बस्स थोड़ी सी नमी अपने लिए बचाए रखना
जब जी चाहे उसमें भींगना

About the author

डॉ. मंजुला चौधरी

डॉ. मंजुला चौधरी। जन्मभूमि और कर्मभूमि काशी(वाराणसी)है। स्कूल की शिक्षा वसंत कन्या इंटर कॉलेज और स्नातक(हिंदी ऑनर्स)की शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज.. वसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा वाराणसी से हुई है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से स्नातकोत्तर और "हिंदी की असंगत नाटक परंपरा और मुद्राराक्षस के नाटक" विषय पर शोध कार्य किया है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से संबद्ध कॉलेज में 10वर्षों तक असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत रहीं । पारिवारिक कारणों से स्वेच्छा से अध्यापन कार्य को छोड़कर घर गृहस्थी संभाल रहीं हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और सोशल मीडिया, विभिन्न साहित्यिक ग्रुप पर कविताएं ,लेख और कहानी समय समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। विशेषकर कविता लिखना अत्यंत प्रिय है।

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