डॉ. ए.के. अरुण II
धार्मिक विषय मान कर उपवास की उपेक्षा करता रहा विज्ञान अब उसमें रोगमुक्ति और दीघार्यु-प्राप्ति की चमत्कारिक क्षमताएं देखने लगा है। लगभग सभी धर्मों में किसी न किसी बहाने उपवास रखने की परंपरा है। इस्लाम हो या हिंदू धर्म किसी न किसी बहाने इन सभी में उपवास एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है। विडंबना तो यह है कि कथित आधुनिक वैज्ञानिक ही नहीं, अपने आधुनिक जीवन-दर्शन पर गर्व करने वाले प्राय: हम सभी लोग, व्रतों-उपवासों को पुरातनपंथी या अंधविश्वासी प्रथाएं होने का फतवा दे बैठते हैं।
रूस के साइबेरिया में उपवास द्वारा उपचार
रूस के अंतहीन विस्तारों वाले साइबेरिया में दस लाख की जनसंख्या वाला बुर्यातिया एक स्वायत्तशासी गणतंत्र है। सन 1995 से वहां उपवास द्वारा बीमारियां ठीक करने का एक प्रसिद्ध अस्पताल विभिन्न बीमारियों के हजारों रोगियों का इलाज कर चुका है। अस्पताल गोर्याचिंस्क नाम के जिस सुरम्य शहर में है, वह बुर्यातिया की राजधानी उलान-ऊदे से करीब 250 किलोमीटर दूर मीठे पानी की संसार की सबसे बड़ी झील बाइकाल के पूर्वी तट पर बसा है।
बाइकाल झील किसी समुद्र जैसे विस्तारों वाली 31,722 वर्ग किलोमीटर लंबी-चौड़ी और 1,642 मीटर तक गहरी एक ऐसी विशाल झील है, जिसमें संचित पानी विश्व के करीब 23 फीसद मीठे जल के बराबर है। उपवास द्वारा उपचार करने वाला गोर्याचिंस्क का अस्पताल बाइकाल झील से केवल 100 मीटर की दूरी पर बना है। रूस में दूर-दूर से आए ऐसे लोगों का, जो आधुनिक महंगी चिकित्सा पद्धति से निराश हो चुके हैं, वहां सरकारी खर्चे पर इलाज किया जाता है। उपवास, बौद्ध धर्मियों के बहुमत वाले बुर्यातिया की स्वास्थ्य नीति का अभिन्न अंग है। वहां के स्वास्थ्य मंत्री स्वयं भी उपवास-प्रेमी हैं।
गोर्याचिंस्क में उपवास की जिस उपचार विधि का प्रयोग किया जाता है, उसे सोवियत संघ वाले दिनों के कम्युनिस्ट शासनकाल में, चार दशकों के दौरान, हजारों लोगों पर आजमा कर विकसित किया गया था। तब तथाकथित शीतयुद्ध का जमाना था। सोवियत नेतृत्व वाले पूर्वी यूरोप के देशों और अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के बीच उस समय घृणा, अविश्वास और तनातनी-भरे प्रचार-युद्ध की एक दीवार-सी हुआ करती थी। एक-दूसरे पर लक्षित परमाणु अस्त्रों को तैनात करने की होड़ लगी हुई थी। इस कारण उपवास के द्वारा रोग-उपचार की इस रूसी विधि का रूस से बाहर किसी को पता नहीं चल पाया। न ही उससे संबंधित अध्ययनों का अन्य भाषाओं में कोई अनुवाद सामने आया।
मास्को से शुरू होती है उपवास की कहानी
इस खोज की कहानी मास्को में मानसिक रोगों के उपचार के अस्पताल ‘कोजाकोव क्लीनिक’ से शुरू होती है। इस अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डॉ. यूरी निकोलायेव का सामना एक दिन अवसादग्रस्त एक ऐसे रोगी से हुआ, जो कोई अनशन नहीं कर रहा था, बल्कि कुछ भी खाने से मना कर रहा था। डॉ. निकोलायेव ने भी जोर-जबरदस्ती करने के बदले उसे भूखा ही रहने दिया। उन्होंने पाया कि पांच दिनों के उपवास के बाद उस रोगी का अवसाद अपने आप घटने लगा था। उसकी आंखें भी अब खुली रहती थीं। दसवें दिन बिस्तर से उठ कर वह चलने-फिरने भी लगा, हालांकि अब भी मौन रहता था। 15 वें दिन उसने पहली बार अपने बिस्तर के पास रखे सेब का रस पिया और हवाखोरी के लिए कमरे से बाहर भी गया। धीरे-धीरे वह दूसरे लोगों से हिलने-मिलने और बातचीत भी करने लगा। अंतत: वह पूरी तरह स्वस्थ हो कर अपने घर चला गया।
डॉ. निकोलायेव के लिए इस अनोखे अनुभव का अर्थ था कि यह मनोरोगी स्वैच्छिक उपवास से ही ठीक हुआ था। यानी, उपवास द्वारा मनोरोग ठीक किए जा सकते हैं। उन्होंने इस दिशा में और आगे जाने का निश्चय किया। सफलता आशातीत रहीं। मरीजों की कतार लंबी होती गई। डॉ. निकोलायेव ने डिप्रेशन (मानसिक अवसाद) से लेकर शिजोफ्रेनिया (खंडित मनस्कता, मनोविदलता), फोबिया (दुर्भीति) या ओसीडी (आॅब्सेसिव कम्पल्सिव डिसआॅर्डर/ सनकपूर्ण शंका-विकार) जैसे रोगों के अनेक पीड़ितों का उपवास द्वारा सफल उपचार किया। वे उनसे 25 से 30 या कभी-कभी 40 दिनों तक उपवास करवाते थे।
उपवास का उपहास
समस्या यह थी कि उस समय के दूसरे डॉक्टर भूखा रख कर किसी बीमार को ठीक करने की डॉ. निकोलायेव की उपचारविधि के मर्म को समझ नहीं पा रहे थे। अत: उनका उपहासपूर्ण विरोध होने लगा। सामान्य ज्ञान भी यही कहता है कि भोजन नहीं मिलने पर शरीर दुर्बल होने लगता है। दुर्बल शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी घटती जाती है। अत: भोजन नहीं मिलने से हर बीमारी बढ़नी चाहिए, न की ठीक होनी चाहिए।
अपने आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए डॉ. यूरी निकोलायेव ने एक ऐसी व्यापक शोध-परियोजना शुरू की, जिसने रूसी चिकित्सा विज्ञान में एक नया अध्याय जोड़ दिया। उन्होंने सैकड़ों लोगों के उपचार से पहले, उपचार के दौरान और उसके बाद उनकी शारीरिक तथा जैव रासायनिक क्रियाओं को जानने के लिए हार्मोन-स्तर मापे, मस्तिष्क लेखी (एन्सिफैलोग्राम) द्वारा मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों को देखा-परखा और सारे आंकड़ों का अध्ययन-विश्लेषण किया। अध्ययनों ने उपवास के दौरान रोगियों के शरीर में हुए परिवर्तनों और उनके मानसिक स्वास्थ्य में आए सुधारों के बीच सीधा संबंध दिखाया।
उपवास का शारीरिक और मानसिक प्रभाव !
डॉ. निकोलायेव और 18 वर्षों तक उनके सहयोगी रहे डॉ. वालेरी गुर्बिच ने पाया कि ‘उपवास का न केवल शरीर के, बल्कि मन के विकारों को दूर करने पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विकारग्रस्त व्यक्ति का व्यक्तित्व तक बदलने लगता है। उन्हें कोई संदेह नहीं रह गया था कि अवसाद का दूर हो जाना, कई दिनों के उपवास के अनेक अनुकूल शारीरिक प्रभावों के साथ-साथ, एक बहुत ही उपयोगी मानसिक प्रभाव है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
डॉ. निकोलायेव ने अपने समय के सोवियत स्वास्थ्य मंत्रालय को जब इस बारे में सूचित किया, तो मंत्रालय को उनकी खोज पर विश्वास नहीं हुआ। मंत्रालय ने 1973 में कई डॉक्टरों की एक जांच समिति बनाई। इस समिति में सोवियत सेना के भी दो डॉक्टरों, अलेक्सेई कोकोसोव और वालेरी मक्सीमोव के नाम थे. डॉ. कोकोसोव फेफड़े से संबंधित श्वसन रोगों के विशेषज्ञ थे और डॉ. मक्सीमोव यकृत (लिवर) या अग्न्याशय (पैन्क्रीअस) जैसी अंत:स्रावी ग्रंथियों (एंडोक्राइन ग्लैंड्स) के विशेषज्ञ थे। जांच समिति ने उपवास की उपयोगिता मानी। दोनों ने ‘रोगोपचारी उपवास’ के बारे में तब तक कुछ नहीं सुना था। उनसे कहा गया कि उन्हें शरीर के पाचनतंत्र में पाये जाने वाले तरह-तरह के बैक्टीरियों से लेकर कोशिकाओं में होने वाली चयापचय क्रिया (मेटाबॉलिज्म) और रोगप्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) तक महत्वपूर्ण क्रियाओं तथा प्रणालियोंंंपर उपवास के प्रभावों का पता लगा कर डॉ. निकोलायेव के निष्कर्षो के साथ तुलना करते हुए अपना निर्णय बताना है। समिति ने कई हजार मरीजों पर उपवास के असर की जांच-परख की और पाया कि डॉ. निकोलायेव के बताए निष्कर्ष पूरी तरह सही थे।
समिति ने डॉ. निकोलायेव के निष्कर्षों की पुष्टि से आगे जाते हुए विभिन्न बीमारियों वाले उन लक्षणों और प्रति लक्षणों की एक सूची भी तैयार की, जो उपवास द्वारा उपचार के उपयुक्त या अनुपयुक्त समझे गए। इस सूची के अनुसार श्वसन तंत्र के रोगों, हृदय और रक्त संचार की बीमारियों, उदर और आंत्र (गैस्ट्रिक-इन्टेस्टाइनल) विकारों, अंत:स्रावी ग्रंथियों (एंडोक्राइन ग्लैंड्स) के रोगों, पाचन तंत्र वाले अवयवों की बीमारियों, जोड़ों और हड्डियों की बीमारियों तथा चर्मरोगों के प्रसंग में रोग उपचार उपवास की अनुशंसा की जा सकती है। समिति ने उपवास के अनुपयुक्त बीमारियों की सूची में कैंसर, तपेदिक (क्षय रोग/टीबी), मधुमेह टाइप-1(डायबिटीज),चिरकालिक यकृतशोथ(क्रॉनिक हेपेटाइटिस), आनुवंशिक घनास्रता (जेनेटिकल थ्रोम्बोसिस/रक्त वाहिका में रक्त का थक्का जम जाना), क्षुधा-अ•ााव (अनॉरेक्सी/दुबलेपन की लत) और थायराइड ग्लैंड की अतिसक्रियता को गिनाया।
वक्त का तकाजा है कि हम उपवास को गंभीर रोगों के उपचार में भी आजमाएं। उपवास शरीर के फायदे के लिए समय मांगता है और यह समय आपको न केवल रोगमुक्त कर सकता है वल्कि आपको दीघार्यु भी बना सकता है।
* लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं। आप फूड नुट्रिशन एंड हेल्थ जर्नल के संपादक भी हैं।
डॉ. निकोलायेव और 18 वर्षों तक उनके सहयोगी रहे डॉ. वालेरी गुर्बिच ने पाया कि ‘उपवास का न केवल शरीर के, बल्कि मन के विकारों को दूर करने पर भी अनुकूल असर पड़ता है। विकारग्रस्त व्यक्ति का व्यक्तित्व तक बदलने लगता है।