अश्रुत पूर्वा II
अंग्रेजों से आजादी हमें मिल गई थी। स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने की तैयारी हो रही थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू 15 अगस्त 1947 को लालकिले से देश को संबोधित करने वाले थे। हजारों नागरिकों की भीड़ ऐतिहासिक किले के सामने जमा हो रही थी। सबकी नजरें महात्मा गांधी को ढूंढ़ रही थीं। मगर वे कहीं नहीं दिखे। क्या कारण था कि बापू आजादी के जश्न में उपस्थित नहीं थे। दरअसल, वे उस समय कलकत्ते के बेलियाघाट इलाके के हैदरी मंजिल में थे। बापू वहां क्यों थे?
यह तथ्य है कि महात्मा गांधी ने न तो दिल्ली में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में और न ही देश के दूसरे हिस्से में मनाए जा रहे जश्न में हिस्सा लिया। क्या वजह थी इसकी। उस दौर का इतिहास खंगालें तो पता चलता है कि बापू उस दिन कलकत्ते में थे। दिन भर दो समुदायों को समझाने बुझाने और उन्हें शांत करने में लगे रहे। वे पंद्रह अगस्त से पहले ही यहां पहुंच गए थे। और एक दूसरे से लड़ने-मरने पर आतुर दो समुदायों में शांति कायम करने में जुट गए थे।
उसी दौरन बाबू नोआखली गए जहां दंगे हो रहे थे। बहुत जोर-जुल्म का माहौल था। हत्या और बलात्कार की घटनाएं जारी थीं। बेकसूर मारे जा रहे थे। लोगों की हिफाजत का वादा मिलने पर ही बापू वहां से लौटे। इसके बाद वे बंगाल के उस समय के प्रधानमंत्री सुहरावर्दी से मिले। मगर एक भ्रम पैदा होने पर गुस्साई भीड़ ने उस निवास स्थान पर हमला कर दिया, जहां सोहरावर्दी और गांधीजी ठहरे थे।
इसके बाद सुरहावर्दी ने 1946 में कलकत्ते में हुई हिंसक घटनाओं की जिम्मेदारी ली और उस पर अफसोस जताया। इससे गुस्साए लोग शांत हो गए। यह बहुत बड़ी बात है कि जब आधी रात के बाद अगली सुबह नए भारत का उदय हो रहा था। देश के नागरिक जश्न मनाने की तैयारी में जुटे थे। उस समय स्वतंत्रता संघर्ष का सबसे बड़ा योद्धा भारत के दूसरे भाग में शांति कायम करने में जुटा था।
पुस्तक ‘गांधी थ्रू वेस्टर्न आइज’ में लिखा गया है कि उस दिन गांधीजी ने जो किया वह उनके पूरे जीवन की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक था। आज के दौर में गांधीजी होते क्या करते? यह सवाल अक्सर किया जाता है। मगर हम सभी महसूस करते हैं कि देश को आज भी उसी गांधी की जरूरत है जो एक राह दिखा सकें।