बाल कविता बाल वाटिका

लहरा के तिरंगे को नव आस जगानी है

सांवर अग्रवाल II

आजादी आई है
कितनी ये सुहानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

सन सैंतालीस प्यारी
आजादी मिली न्यारी
था जोश चढ़ा नभ पर
सब और खुशी भारी

सत्ता अंग्रेजी अब
हो गई पुरानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है

अब दूर हुआ सब गम
हम है न किसी से कम
भारत का मान बढ़ा
जनता को जगाएं हम

दिवाली मना कर
अंधियारी हटानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

शिक्षा को बढ़ाएंगे
सोयों को जगाएंगे
छोड़ ऊंच-नीच सारी
जन जन को हंसाएंगे

जग के गुरु फिर से बनें
एक अलख जगानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

सीमा पर वीरों ने
साहस दिखलाया है
उनकी शहादत को
नमन हमारा है

हम नमन करे उनको
क्या गजब जवानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

About the author

सांवर अग्रवाल

सांवर अग्रवाल कपड़े के कारोबारी हैं। असम के तिनसुकिया में वे रहते हैं। दो दिसंबर 1965 को जन्मे अग्रवाल स्वभाव से मृदुल और कर्म से रचनात्मक हैं। बातों बातों में अपनी तुकबंदियों से वे पाठकों और श्रोताओं को चकित कर देते हैं। वे लंबे समय से बाल कविताएं रच रहे हैं। सांवर अग्रवाल बाल कवि के रूप में चर्चित हैं।

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