आलेख कथा आयाम

हम सब के दिलों में हैं गांधी

संजय स्वतंत्र II

दो अक्तूबर का दिन महात्मा के पुण्य स्मरण में बीता। तीस जनवरी मार्ग पर 154वीं जयंती पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में गायिका विद्या शाह को सुनते हुए समझ में आया कि गांधीजी हम सबके दिलों में क्यों जिंदा हैं। वे आज भी क्यों करोड़ों हृदयों में धड़कते हैं। विद्या जी ने जब नरसी मेहता का रचा ‘वैष्णवजन तो तैणे कहिए जे पीर पराई जाने रे…’ गाना शुरू किया तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भाव-विभोर हो उठे। वहां सभी अतिथियों से लेकर मुझ जैसे अंतिम पंक्ति के नागरिकों तक का एक पल के लिए गहरी अनुभूति के साथ जुड़ाव कायम हो गया।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति एकदम सामने। शांत मुद्रा। हौले-हौले दोनों हाथों से थपकियां लगाते हुए। …जे पीर पराई का मर्म महसूस करते हुए। अब समझ में आता है कि महात्मा गांधी को यह भजन क्यों प्रिय था। जब विद्या जी ने बापू के एक और प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम…’ को गाना शुरू किया तो लगा कि भक्ति भाव की लहरें आसमान छू रही हैं। हम सभी मंत्रमुग्ध सुनते रहे।
फिर तो स्वर लहरियों में सभी आगंतुक यानी क्या खास और क्या आम, सब डूबते-उतराते रहे। विद्या शाह ने ‘कहत कबीर सुनो भाई साधो’, ‘मन लागा मेरा’ और ‘ऊधो कर्मन की गति न्यारी’ को एकदम लय में गाकर मोह लिया। इससे पहले सर्वधर्म प्रार्थना सभा में देश् के सभी धर्म गुरुओं को सुनते हुए एक ऐसी तस्वीर आंखों के आगे उभरी जिससे महसूस हुआ कि गांधी जी ऐसा ही समरस भारत चाहते थे, जहां सब लोग मिल जुल कर सुख-शांति से रहें। बच्चे सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ें। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटेनियो गुतारेस का विशेष संदेश सुनते हुए हमने जाना कि महात्मा का दुनिया के कितने देश सम्मान करते हैं। उनके विचारों की आज भी कितनी प्रासंगिकता है।
दिल्ली में कई जगहों से आए और कई दिनों से तैयारी करने वाले साढ़े तीन सौ बच्चों ने भी अपनी प्रस्तुति से मन मोह लिया। एक गीत ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा…’ इसे गाकर बच्चों ने एक नया उमंग भर दिया। अरसे बाद यह गीत सुना हमने। ये बच्चे ही तो हैं जो नया भारत बनाएंगे। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने इनको सुना और उनका हौसला बढ़ाया। यह बहुत गर्व की बात है कि हमारे राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों ही सादगी और विनम्रता के प्रतीक हैं। इन्हें पास से देखा और महसूस भी किया।
नागरिकों और अतिथियों ने जब दोनों को विदा किया तो राष्ट्रपति ने सबके प्रति स्नेह जताया। उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ हमेशा की तरह दोनों हाथ जोड़े मुस्कुराते हुए दिखे। अंतिम छोर पर इस अंतिम जन को देख कर भी उन्होंने हाथ हिलाया। अभिवादन स्वीकार किया। देखते ही देखते उनकी गाड़ी आगे बढ़ गई। लौटते समय महसूस हो रहा था कि गांधी जी के विचारों में आज भी इतनी शक्ति है कि सभी जन एकजुट होते हैं। चाहे वो खास हो आम। जब तक अंतिम जन तक सच्चाई, विनम्रता और इंसानियत कायम रहेगी, गांधी जीवित रहेंगे। हमारे दिलों में धड़कते रहेंगे।  

About the author

संजय स्वतंत्र

बिहार के बाढ़ जिले में जन्मे और बालपन से दिल्ली में पले-बढ़े संजय स्वतंत्र ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से पढ़ाई की है। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद एमफिल को अधबीच में छोड़ वे इंडियन एक्सप्रेस समूह में शामिल हुए। समूह के प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक जनसत्ता में प्रशिक्षु के तौर पर नौकरी शुरू की। करीब तीन दशक से हिंदी पत्रकारिता करते हुए हुए उन्होंने मीडिया को बाजार बनते और देश तथा दिल्ली की राजनीति एवं समाज को बदलते हुए देखा है। खबरों से सरोकार रखने वाले संजय अपने लेखन में सामाजिक संवेदना को बचाने और स्त्री चेतना को स्वर देने के लिए जाने जाते हैं। उनकी चर्चित द लास्ट कोच शृंखला जिंदगी का कैनवास हैं। इसके माध्यम से वे न केवल आम आदमी की जिंदगी को टटोलते हैं बल्कि मानवीय संबंधों में आ रहे बदलावों को अपनी कहानियों में बखूबी प्रस्तुत करते हैं। संजय की रचनाएं देश के सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

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