कविता

नफ़रत-“प्यार’ शब्द से

ज्योति खरे II

सुबह
मां की पीठ पर बने
कत्थई निशान पर
मलहम लगाती है
पूरे घर में बिखरी
टूटी चूड़ियों को
झाड़ू से
समेटती है
दिनभर घर के काम-काज निपटाकर
शाम को
पढ़ती है
मैं इस लड़की से
बहुत प्यार करता हूँ
औऱ वह
“प्यार” शब्द से ही
नफरत करती है
क्योंकि उसकी मां
अपने पति से
प्यार करती हैं—-

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ashrutpurva

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