अमरेश बिश्वाल
वरिष्ठ ओड़िआ साहित्यकार II
प्रतीची से प्राची पर्यंत (सर्वकालिक श्रेष्ठ सोनेट संग्रह अंग्रेजी एवं ओड़िआ भाषा से हिंदी में अनूदित पुस्तक) की समीक्षा करते हुए इसके शीर्षक का भावार्थ स्पष्ट करना नितांत आवश्यक है।
प्रतीची अर्थात ‘पश्चिम’ एवं प्राची अर्थात ‘पूर्व’ , कहने का तात्पर्य यह है कि पश्चिमी साहित्यिक काव्य विधा सोनेट को पूर्व अर्थात भारतवर्ष में किस प्रकार उपस्थापित किया गया है व कैसे इस पुस्तक में एक साहित्यिक विधा की यात्रा का आरंभ प्रतीची से हुआ एवं उसने प्राची पर्यंत विस्तार लिया ?
पुस्तक प्रतीची से प्राची पर्यंत का प्रकाशन श्रेष्ठ विश्व साहित्य-अनुवादक, वरिष्ठ ओड़िया साहित्यकार व संस्थापक श्री सत्य पट्टनायक जी के द्वारा ब्लैक ईगल प्रकाशन, डब्लिन, यू एस ए ‘के माध्यम से किया गया है।
पुस्तक का आवरण अपूर्व एवं अत्यंत प्रशंसा योग्य है । बैंगनी रंग में से उद्भासित सूर्य का बिंब एवं मंद बहते पानी में स्वर्णिम प्रतिबिंब, यही दर्शाता है, कि कैसे प्रतीची का सूर्य पूर्व दिशा को आलोकित करता है, अस्तमित सूर्य रश्मि भी प्रभावित करती है पूर्वाचल को। इस पुस्तक में स्वयं की प्रतिष्ठा एवं प्रधानता लिये 126 श्रेष्ठ सोनेट विश्वभर के पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किये गये हैं ।
हिंदी साहित्य जगत एवं विश्व के साहित्य धर्मी पाठकों के लिए यह सर्व प्रथम अनूदित सोनेट संकलन है, जिसे अति श्रद्धा सहित कवि विनीत मोहन औदिच्य जी एवं कवयित्री अनिमा दास जी ने पुस्तक में लिपिबद्ध महान सोनेटकारों को समर्पित किया है।
॥ भाग -1 प्रतीची ॥
इस पुस्तक का प्रथम भाग प्रतीची लिखा गया है मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत महाविद्यालय में कार्यरत अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापक तथा वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार, उत्कृष्टतम ग़ज़लकार श्री विनीत मोहन औदिच्य के द्वारा जिसमें उन्होने सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी अंग्रेजी साहित्यकारों के अत्यंत सुंदर, सर्वोत्तम सोनेट्स को हिंदी में अनूदित किया है। सोनेट एक संक्षिप्त लयबद्ध काव्यिक विधा है जो सर्वप्रथम इटली में पेट्रार्क के द्वारा विकसित की गयी थी। कालांतर में इंग्लैंड में इस विधा की सरंचना में परिवर्तन कर महान साहित्यकार विलियम शेक्सपियर द्वारा सहज प्रचलन में लाया गया एवं ये यात्रा इक्कीसवीं शताब्दी में भी निरंतर चलती रही है।
पुस्तक का द्वितीय भाग प्राची ओड़िसा की श्रीमती अनिमा दास जी के द्वारा लिखा गया है जो कि एक शिक्षिका एवं हिंदी साहित्यकार हैं ।इन्होंने ओड़िशा के महान सोनेटकारों को एवं उनके श्रेष्ठतम एवं सुंदरतम सोनेट्स का हिंदी में अनुवाद किया है।
प्रतीची-भाग-1 में पृष्ठबद्ध सभी सोनेट्स एक से बढ़कर एक सुंदर संरचनाओं में आबद्ध हैं। जिसमें स्पेंसर, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्ड्सवर्थ, कीट्स,ऐलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग , अलेक्ज़ेंडर स्मिथ, दांतें गैब्रियल रोसेट्टी व रॉबर्ट फ्रॉस्ट आदि प्रतिष्ठित, सुनाम धन्य 46 कवि गणों के 67 सोनेट्स सम्मिलित किये गये हैं ।
कवि विनीत मोहन जी ने प्रत्येक सोनेट के मूल भाव के सूक्ष्म से सूक्ष्मतम शिराओं की उपस्थापना की है। लेखकीय गुणवत्ता सहित श्रेष्ठ अनुवादन कला से प्रभावित इन जीवंत रचनाओं की हिंदी साहित्य सागर में उर्मि बन लहराने की जो प्रबल इच्छा थी, उस आत्मिक ध्वनि ने ही कवि श्री विनीत जी को प्रेरित किया है एवं वह एकांत भाव से समर्पित इन रचनाओं को युगों पर्यंत जीवित रखने समर्थ हो सके हैं।
जैसे कि प्रतीची का प्रथम सोनेट एक दिन मैंने लिखा उसका नाम (वान डे आई रोट हर नेम ), जिसके मूल रचयिता एडमंड स्पेंसर हैं एवं जिसे अनूदित करते हुए कवि विनीत जी की शिल्प कला की पारदर्शिता भी दृष्टिबद्ध होती है।
मैं इस सोनेट का द्वितीय छंद प्रेषित कर रहा हूँ..
स्पेंसर –
*Vain man,’ said she, ‘that dost in vain assay,
A mortal thing so to immortalize;
For I myself shall like to this decay,
And eke my name be wiped out likewise.’*
अनुवाद –
“उसने कहा तू व्यर्थ ही करता रहता अथक प्रयास
जो नश्वर है उसे अमर किया जा सकता नहीं
मैं स्वयं चाहूँ क्षरित होना छोड़कर जग की उजास
लिख कर मिटाया गया मेरा नाम उभर सकता नहीं “
सोनेट के इस अंश में कवि ने पार्थिव वस्तुओं की नश्वरता को परिभाषित करते हुए अपनी प्रेमिका की अंतर्निहित सुंदरता को अमरत्व प्रदान किया है, बाह्य सुंदरता को अनिश्चित कहा है एवं प्रेम की गहराई को आध्यात्मिक रूप देते हुए, चिर स्मरणीय बना दिया है । इस काव्यधारा ने वस्तुवाद को अध्यात्मवाद में परिवर्तित करते हुए प्रेम एवं प्रेमिका के प्रति ईश्वरीयबोध को भी प्रतिपादित किया है। कवि विनीत मोहन जी ने इस सोनेट के सूक्ष्म भाव को अति सुंदर शब्दों में पाठकों के समक्ष आलोकित किया है।
गहन दृष्टि से अवलोकन करते हुए शेक्सपियर के सोनेट (द एक्सपेंस ऑफ़ स्पिरिट) आत्मा का विस्तार पर मैं स्थिर हो गया। वैसे तो शेक्सपियर के पाँच प्रभावी सोनेट का अनुवाद किया है कवि विनीत मोहन जी ने किंतु मृत्यु पर इस रचना ने बहुत ही प्रभावित किया मुझे, जिसके तृतीय छंद पर मैं प्रकाश डालूंगा…
Mad in pursuit and in possession so;
Had, having, and in quest to have, extreme;
A bliss in proof, and proved, a very woe;
Before, a joy proposed; behind, a dream
अनुवाद –
अनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्त
पाकर, पाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमा
प्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूति, लाती व्यथा हो कर प्रदत्त
पूर्व में संभावित आनंद, समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा। “
शेक्सपियर के इस सोनेट के निहित अर्थ को परिभाषित करते हुए इस पद्यांश में कवि ने मनुष्य की काम-वासना को एक उन्मत्त चिंताधारा माना है , जिसमें देह की तृप्ति को अनंत तृष्णा एवं असमाप्त स्वप्न सम माना है। समाज को यह संदेश देते हुए कवि ने दैहिक तृषा को अस्थायी एवं नरक का क्षणिक आनंद कहा, परंतु आत्मा के विस्तार में परमात्मा की तृषा को स्थान देते हुए स्वर्गीय आंनद को महत्व दिया है। कवि विनीत मोहन जी ने अति निश्चल भाव एवं उत्कृष्ट शैली से उच्च स्तरीय भावनाओं को अभिव्यक्त किया है।
इस माधुर्यपूर्ण यात्रा में चलते हुए मेरी मन सरिता ने स्पर्श किया जॉन मिल्टन के सोनेट कितनी शीघ्र समय (how soon hath time ) को । स्पर्श करते ही मैंने चुन लिया इसके प्रथम छंद को,
How soon hath Time, the subtle thief of youth,
Stol’n on his wing my three-and-twentieth year!
My hasting days fly on with full career,
But my late spring no bud or blossom shew’th.*
अनुवाद –
कितनी शीघ्र युवावस्था को सूक्ष्म चोर ये समय चुराता
उड़ा ले गया सुदूर मेरे तेइस वर्ष अपने पंख धर
मेरे अवसरों से भरपूर भागते दिवस शीघ्र उड़ कर
किंतु न कोई कली या पुष्प मेरा विलंबित बसंत दिखाता। “
इन पंक्तियों से ये प्रतीत होता है कि कवि युवावस्था को अति व्यथित मन से, पीड़ाप्रद शब्दों से वर्णन करते हुए स्मरण करता है। समय को सूक्ष्म रूप में चोर कह कर यह व्यक्त किया है कि कैसे 23 वर्ष का कैशोर्य पंख लगा कर अति शीघ्र जीवन सीमाओं को लांघ कर उड़ गया एवं उनकी कई सार्थक इच्छाएँ अपूर्ण रह गयीं। वास्तवमें कवि विनीत मोहन जी के द्वारा चयनित रचनाएँ अत्यंत भावपूर्ण एवं यथार्थवाद पर ही आधारित हैं एवं उन्होंने अति कोमलता सहित पाश्चात्य चिंतन प्रवाह को हिंदी भाषा साहित्य में उचित स्थान दिया है।
विश्व प्रसिद्ध प्रकृति कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी रचनाओं में सदा प्रकृति को गुरु माना है अर्थात प्रकृति हमें सहज सरल जीवन की कई मूल्यवान शिक्षा देती है । उनके सोनेट (द वर्ल्ड इज़ टू मच विथ अस ) विश्व से अत्यधिक है हमारी आसक्ति
के प्रथम छंद में,
वर्ड्सवर्थ-
‘The world is too much with us; late and soon,
Getting and spending, we lay waste our powers;—
Little we see in Nature that is ours;
We have given our hearts away, a sordid boon!’
अनुवाद –
‘देरी या शीघ्रता से इस संसार में हैं हम घोर लिप्त
नष्ट करते रहे हैं शक्ति खोने -पाने के सोपानों में
प्रकृति को करते रहे अनदेखा अवांछित वरदानों में
हमने कर लिया स्वयं को घिनौनी वासनाओं से तृप्त।’
कवि ने प्रकृति के प्रति स्वार्थी मनुष्य के क्रूर आचरण के संदर्भ में कहा है, अपनी असीमित महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु प्रकृति के प्रति हो रहे अत्याचर का घोर विरोध करते हुए इन पंक्तियों में अपनी भावनाओं को सार्थक अर्थ दिया गया है, एवं इसी भाव को अनूदित करते हुए कवि विनीत मोहन जी ने बहुत सुंदर शैली में अभिव्यक्त किया है।
जॉन कीट्स विश्व के अति प्रसिद्ध रोमैन्टिक कवि थे जो (व्हाई डिड आई लाफ़ टुनाइट ) आज रात मैं क्यूँ हँसा में हृदय एवं मस्तिष्क के वार्तालाप में निमग्न रहते हुए मृत्यु का अविष्कार करते हैं,जीवन एवं मृत्यु के मध्य एक बिंदु सी दूरी को कुछ मुहूर्त्त जीने की आप्राण चेष्टा करते हैं। मानवीय पीड़ा से मुक्त हो कर शाश्वत स्वर्ग की कल्पना इस रचना को अत्यंत भिन्न एक उच्च स्तर देती है। कवि श्री विनीत मोहन जी ने इस चिंतन एवं दार्शनिक तत्त्व को अति सुंदर प्रयास के साथ कलमबद्ध किया है जो कि एक पाठक की सोच-प्रक्रिया को और गतिमान बनाये रखती है।
स्वच्छंदतावादी काल की शीर्षस्थ कवियत्री ऐलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग द्वारा रचित सोनेट (सोनेट्स ऑफ़ पुर्तगीज़ ) पुर्तगीज़ से सोनेट में सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ अपनी प्रभावी व्यक्तित्व की अमिट छाप देखने को मिलती है। इस सोनेट का प्रथम छंद हमें ये संदेश देता है कि प्रेम की गहराई को कवि ने आत्मा से संबद्ध किया है, मनुष्य के जीवन भर के संघर्ष के साथ अपने विशुद्ध प्रेम की कल्पना करते हुए प्रेम की आत्मिक एवं आध्यात्मिक स्तर को सुंदर भाव में प्रतिपादित किया है
कवि विनीत मोहन जी ने इसी भाव का कोई रूपांतर किये बिना इस सोनेट को और अधिक मर्यादित एवं सौंदर्यपूर्ण बनाया है।
वैसे ही यदि आप रॉबर्ट फ्रॉस्ट के (इन्टु माई ओन )
स्वयं अपने में सोनेट को पढ़ेंगे, इसमें आत्म कथोपकथन की अनुभूति होगी एवं यह भी अनुभव होगा कि कवि प्रकृति प्रेमी होने के साथ साथ प्रत्येक प्राकृतिक वस्तु को अपनी कविता में रूपक का आधार मानता है । वर्तमान एवं भविष्य की, अपनी इच्छाओं की कभी घने वृक्ष तो कभी खुली मैदान के साथ तुलना करता है। प्रकृति के सानिध्य में दीर्घ वार्तालाप करते हुए उसे अपरिमित आश्वासना मिलता है ।
कवि विनीत मोहन जी ने अत्यंत सरल एवं सहज काव्यिक शब्दों में इस सोनेट का अनुवाद किया है।
पाश्चात्य परंपरा व संस्कृति, हमारे देश की चिन्ताधाराओं से नितांत भिन्न है। उनके साहित्य एवं कला में विशिष्ट भिन्नता एवं एक स्वाद भी है किंतु कवि श्री विनीत जी इस संकलन के समस्त सोनेट में वो पारदर्शिता रखने की प्रचेष्टा में पूर्ण रूप से सफल भी हुये हैं। उन्होंने पाश्चात्य विधा सोनेट एवं रचनाकारों के दार्शनिक तर्कों को, आध्यात्मिक चिंतन को एवं लेखनी की विविधता को अति कौशलपूर्वक एवं स्वयं की अंतर्ध्वनि से अभिसिंचित कर एक काव्यिक प्रवाह को पाठकों के समीप पंहुचाया है। इन अनूदित सोनेट्स में उनकी कठोर साधना एवं साहित्य प्रति समर्पण दृश्यमान होता है।
अनुवाद करना स्वयं में ही लेखन शिल्प का उच्च स्तरीय कार्य होता है, एवं कविता का अनुवाद करने में विशेष रूप में ये ध्यान देना होता है कि मूल भाव में कोई बाधाएँ न हो, कोई अवरोध न हो । कवि विनीत मोहन जी ने इस तथ्य को अत्यधिक महत्व दिया उनके अनुवाद में। व्यर्थ विवेचना में कोई यथार्थता नहीं होती। इस रसपूर्ण साहित्यिक अनुवाद का यदि ध्यान से आहरण किया जाए तो प्रत्येक पीढ़ी के पाठकों को अंग्रेजी एवं हिंदी साहित्य का एक विस्तार क्षेत्र मिलेगा जहाँ दीर्घ काल तक कवि विनीत मोहन जी के उच्च स्तरीय अनुवाद की रश्मियाँ चमकती हुई मिलेंगी।
उनकी एकल पुस्तक भाव-स्रोतस्विनी 2019 में स्वयं के रचे हुए सोनेट्स पृष्ठबद्ध हैं । रचनात्मकता एवं सकारत्मकता की एक सुदृढ़ दीप्तिमयी प्रतिभा के अधिकारी कवि श्री विनीत मोहन जी का हिंदी साहित्य क्षेत्र में ये अमूल्य अवदान प्रत्येक पीढ़ी के पाठकों को अवश्य आकृष्ट करेगा ।
कविवर श्री विनीत मोहन जी की अनन्य लेखनी को कोटिशः प्रणाम करते हुए उन्हें हिंदी साहित्य के अंतरिक्ष का दीप्तिमान नक्षत्र सा तेजोमय रहने की अनंत शुभकामनाएँ देता हूँ ।
॥ भाग 2- प्राची ॥
द्वितीय भाग प्राची के अनूदित सोनेट्स ओड़िसा की हिंदी कवयित्री श्रीमती अनिमा दास जी के द्वारा पृष्ठबद्ध किए गए हैं। उनकी मातृभाषा ओड़िआ है एवं ओड़िआ साहित्य का अध्ययन करने में उनकी अभिरूचि प्रारंभ से ही रही है। अंग्रेजी सोनेट का प्रवाह ओड़िशा की साहित्य सरिता में जब सम्मिलित हुआ, तो घनीभूत होते हुए साहित्याकाश पर एवं कवियों की लेखनी मयूर बन सोनेट गाने लगा, सभी शब्द पंक्तियाँ बने एवं पंक्तियाँ सुंदर से सुंदरतम सोनेटस में रूपांतरित हो गयीं। 120 वर्षों से वर्तमान पर्यंत लिखें गये सोनेट्स को, सोनेटकारों को एवं उनकी यात्रा को बहुत सुंदर एवं उपयोगी अभिज्ञता से कवयित्री अनिमा जी ने अभिव्यक्त किया है। जब भक्त कवि मधुसूदन राओ ने आध्यात्मिक,सामाजिक एवं समय विशेष की कविताओं में स्वयं का उत्सर्ग किया था , सोनेट भी समर्पण स्वीकार कर उनकी लेखनी में उतर गया।
प्राची भाग के प्रथम सोनेट पापी का त्रास में कवि मधुसूदन राओ ने पापी के पाप कर्मो को ईश्वर के सानिध्य में त्याग देने का जो संदेश दिया है वो विशिष्ट भाव है जो स्वस्थ समाज के लिए महत्वपूर्ण है। इस सोनेट के द्वितीय छंद में,
अनूदित –
*एक घोर विशाल चक्षु की दृष्टि है मेरी ओर देखती
मेरी चतुर्दिशाओं से मेरे लिए घोर त्रास उत्पन्न करती
दुर्ग का आयस द्वार हो अथवा पाषाण के प्राकार
गिरिगुहाएँ अथवा अंधकूप अथवा कोई कारागार*
कवि ने यह कहा है कि पापी स्वयं को कहीँ भी कितना भी सुरक्षित रखने का व्यर्थ प्रयास करे, उस ईश्वरीय प्रकाशमान दृष्टि से, कभी भी अदृष्ट नहीं रह सकता। इस अर्थ को हृदयंगम करने वाला व्यक्ति ईश्वरीय सत्ता का भी अनुभव कर पाएगा ।
पाठकों के मानस पटल पर सोनेट का जीवंत चित्रण करने जब कवियों की लेखनी द्रुतगति से लिख रही थी तभी स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर जी के सोनेट
व्यथा खद्योत की के सरल एवं मधुर भाव ने कई व्यथित हृदयों को स्पर्श किया। इस सोनेट के तृतीय छंद एवं शेष दो पंक्तियों ने समाज को, पीड़ित मनोविकार को सांत्वना दी एवं दैवीय अनुभूति का प्रेरणास्रोत बहने लगा।
अनूदित –
*निशिकांत है पाता दीप्तिमय प्रखर शक्ति तपन की
परंतु मेरी ज्योतिर्कणिकाएँ हैं मेरे स्वयं के जीवन की
हे विधाता ! न जानूँ मैं पर धन पर करना अभिमान
हे ईश्वर ! तुम ही कहो,कैसे बनूँ मैं चंद्रमा समान ?
न करो,हे मानवजाति ! क्षुद्र जीवों का इतना उपहास
स्वयं की जीवन ज्योति प्रज्जलित कर भरो उजास । *
कवयित्री अनिमा जी ने रचना के भाव पर विशेष ध्यान देते हुए, सोनेट की शिल्प को भी अक्षत रखा है । जीवन के संकीर्ण मार्गों पर गतिशील इच्छाओं को साकार करने अथवा क्रियाहीन करने की सकारात्मकता अति सरल एवं सुगम शैली में अनूदित की गई है । खद्योत अर्थात जुगनू। चंद्रमा सर्वदा आलोकित दीप्तिमय तपन से होता है एवं अपनी सुंदरता पर वो गर्व करता है , जैसे एक कुंठित मानव पराये धन पर अधिकार कर स्वयं को प्राधान्यता देता है । परंतु खद्योत स्वयं की क्षीण ज्योतिर्कण से ज्योतिर्मय होता है और स्वयं के गुण से गुणवान। मानवजाति को यह संदेश देते इस सोनेट के भाव को अनिमा जी ने बहुत सुंदरता से निभाया है।
प्राची भाग के सोनेट्स को पढ़ते हुए जब मेरा मन स्थिर हुआ तब पल्ली कवि नंदकिशोर जी के सोनेट
भाव कुसुम में मुझे जीवन एवं मृत्यु के मध्य बहती एक चेतना सागर की अनुभूति हुई । कवि ने मृत्यु उपरांत जीवन की संभावनाओं का अति सुंदर चित्रण किया है, नवीनता का स्वागत किया है, नश्वरता को स्वीकार करते हुए शाश्वत सत्ता को प्रमाणित किया है। मैं इस सोनेट के द्वितीय छंद पर प्रकाश डालता हूँ,
अनूदित –
*आते रहेंगे नित्य इस जगत में कई नूतन दिवस
प्राण में उभरते रहेंगे नित्य कई नूतन भाव रस
कई नूतन पुष्पों का जगत में नित्य होगा प्रस्फुटन
तमी में नित्य होगा कई नूतन प्रदीपों का प्रदीपन । *
यह सत्य है कि मृत्यु के पश्चात् एक नूतन जीवन का आगमन होता है, प्राण में प्रति क्षण नूतन भाव रस का भी संचरण होता है, प्रत्येक निशा में नूतन दीप प्रज्ज्वलित होता है किंतु, गत जीवन का प्रत्यागमन नहीं होता है , जल वर्तिका जैसे पुनः जल नहीं सकती है । इस नूतनत्व को स्वीकार करना ही जीवन का नियम है। कवयित्री अनिमा जी के अनुवादन में भी वही भाव, प्रांजल है।
उत्कलमणि गोपबंधु दास के सोनेट अल्प वर्षा के पश्चात् नराज के दृश्य में, नराज जो कि एक स्थान है कटक, ओड़िसा में, जहाँ महानदी बहती कल कल नाद करती है एवं उस पर बनाया गया पुल, जहाँ से आप नराज का सौंदर्य दर्शन कर सकते हैं। कवयित्री अनिमा जी ने इस भाव को अति सौंदर्यपूर्ण शैली में परिभाषित किया है।
ओड़िआ एवं हिंदी भाषा की कवयित्री कुंतला कुमारी साबत के सोनेट प्रभात में नवजीवन की सुंदरता को आश्लेषण में लेते हुए जब मैं कवि वैकुंठनाथ जी के सोनेट उपहास मृदा का पढ़ने लगा तो कवयित्री अनिमा जी की अनुवादन में वो सूक्ष्मता परिलक्षित हुई जो इस सोनेट के मूल भाव की आत्मा है । दर्शन तत्त्व का भास इस सोनेट में आप अवश्य अनुभव कर पाएँगे।
प्रभात सोनेट का प्रथम छंद –
*मृदु मंद बहता पवन, तरु पल्लव भी होते कंपित
मंद मंद झरता शिशिर करे, श्वेत मुक्ता को निंदित
मंद गति से हुआ उदीयमान नभ पर अमल रवि
पूर्व में जैसे सिंदूरी पट है अथवा रम्य सुवर्ण छवि ।*
प्रभात का वर्णन करते हुए वास्तव में कवयित्री कल्पना के तिलस्मी अनुभव में डूब जाती है, तभी तो उपमाएँ सौंदर्यमयी हैं । मूल कवयित्री की शुद्ध साहित्यिक अल्पना को अनुवादिका ने भी द्विगुणित किया है।
वैसे ही, कवि वैकुण्ठ नाथ के सोनेट उपहास मृदा का – का तृतीय छंद देखें :-
*कर उत्सर्ग प्राण, दे हृदय और अद्भुत कला कौशल
की थी कल्पना खिलाने की मरुथल में ऐश्वर्य कमल
हुई समाप्त क्षणभर में चिंताग्रस्त परिकल्पनाएँ समस्त
उस पार किसी पुकार से सहसा, हुआ मन गह्वर त्रस्त। *
इस छंद में, कवि ने जीवन की क्षणभंगुरता को विस्तारित करते हुए कहा है कि कैसे अकस्मात अंत की घोषणा करती हुई मृत्यु आ जाती है एवं समस्त चिंता -चिंताएं इस मृदा पर निर्जीव रह जातीं हैं । कवयित्री अनिमा जी ने इस भाव को, इस सत्य को उपयुक्त शब्दों के वस्त्र दे कर सुंदर शैली में उपस्थापित किया है।
पद्मश्री मायाधर मानसिंह जी को ओड़िशा के काव्यिक अंतरिक्ष का चिर-दीप्त नक्षत्र कहा जाता है। कवयित्री अनिमा जी ने अपनी लेखनी के स्पर्श से उनके सोनेट्स के मूल भाव को सौंदर्य प्रदान किया है।
डॉ. मायाधर मानसिंह के प्रेम,प्रणय एवं प्रतीक्षा पर लिखें सोनेटस में से श्रृंगार रस में लिखे प्रतीक्षा सोनेट में अलंकारिक शब्द, उपमाएँ, एवं विशुद्ध साहित्य के साथ- साथ भाव का प्रवाह भी पाठकों के मन को आह्लादित करते हुए बहा ले जाएगा।
प्रथम छंद में,
*अंतिम यह ज्योत्स्ना स्नात निशा, लिये तप्त हृदय
मैं विदग्ध कवि, तुम्हारा सुंदर पथ रहा हूँ निहारता
मेरी चित्त-सांत्वना के लिए रच रहा संगीत वलय
हो कर तंद्राहीन, रात्रि भर व्यथा अनुभव मैं करता । *
प्रतीक्षारत प्रेमी की व्यथा जब कविता बन निस्सृत होती है तो हृदय झरने से तरंगें भाव के शब्दों एवं पंक्तियों में मृदुलता लाती हैं । कवि हृदय तप्त है, दग्ध है, दृग, तंद्राहीन है एवं सुंदर पथ पर प्रेयसी का आगमन ही काम्य है। कवयित्री अनिमा जी ने इस सुंदरतम अनुभूति को वास्तव में अपनी लेखन कला से और अधिक प्रभावी ढ़ंग से चित्रित किया है।
कवि गुरुप्रसाद महांति जी के सोनेट चंपापुष्प में आधुनिकवाद का प्रयोग है, कवियत्री ने इस महान काव्य को अपनी सक्षम कलम से सार्थकता दे कर गौरवान्वित किया है। इस सोनेट में वासना को चम्पकपुष्प का रूपक दिया गया है, जिसकी सुगंध से तपस्वी साधू भी दिगभ्रांत, पथ भ्रमित होते हैं एवं स्वयं का विनाश कर बैठते हैं ।
इसका तृतीय छंद देखें,
अनूदित –
*चंपई सुगंध में होता जो तीव्र असीम अकल्पनीय इंद्रजाल
जलता है वह्नि रक्त में, वक्ष में, श्वास में भी अग्नि कराल
वक्ष और श्वास में अग्नि, देह देह में होती विद्युत की चमक *
इस कामवासना रूपी चंपा पुष्प की सुगंध में कवि ने ऐन्द्रजालिक प्रभाव का वर्णन किया है जिससे शरीर एवं चेतना की जड़ता परिलक्षित होती है, जो अग्नि सम बौद्धिक चिंताधारा को भस्म करता है । कवयित्री अनिमा जी ने इस प्रसिद्ध कविता को हिंदी भाषा का स्पर्श दे कर इसके मौलिक भाव को सयत्न प्रतिपादित किया है।
पद्मभूषण कवि रमाकांत रथ ने नूतन प्रयोग से सोनेट के भाव प्रवाह में जहाँ नूतनत्व दिया सोनेट लालटेन में वहाँ सोनेट सम्राट कवि गिरिजा कुमार बालियारसिंह जी की लेखनी ने अनुप्रास की अनंतता को त्वरित किया है। कवि गिरिजा जी के सोनेट में निहित गुणवत्ता का अनायास विश्लेषण कर पाना दुष्कर है, तथापि कवियत्री अनिमा जी ने इनके सोनेट को अनूदित कर राष्ट्र दरबार में इस सोनेट तपस्वी का परिचय दिया है । उनके अनूदित भारत वर्ष सोनेट संग्रह के एक सोनेट स्वर्ग का संहार में भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता, क्रूर अमानवीयता से पीड़ित भारत की संस्कृति, सौंदर्य, मर्यादा एवं स्वर्गीय वैशिष्ट्य को अति मार्मिक स्पर्श दिया गया है। वैसे ही इस सोनेट को अनूदित करते हुए कवयित्री अनिमा जी ने सोनेट की आत्मा को जीवित रखा है। इस सोनेट का तृतीय छंद एवं शेष दो पंक्तियाँ देखें,
अनूदित –
*अंत में शंखिनी शर्वरी से आविष्ट शत शृंग का शिखर
गहन अरण्य में झंझानिल। मुरझाई है चंद्र की चमक
तिरोहिता तपस्विनी – तृष्णा के तमस्विनी तीर पर
त्रस्त तुम्हारे तपोलोक में तिरष्कृत तारा का तिलक।
हे शून्य भारतवर्ष ! हे दिग्भ्रांत दिगंत के द्वार !
नारकीय नाराच से संभवतः हो रहा स्वर्ग का संहार ।।*
कवि गिरिजा जी की स्वर्ग सम भारतवर्ष के प्रति संवेदनशीलता प्रत्यक्ष है इस सोनेट में इसे अनुवादिका ने अखंड रहने दिया है । अनुप्रास का उत्कृष्टतम प्रयोग एवं संस्कृत निष्ठ साहित्य का एक ज्वलंत उदाहरण हैं कवि सम्राट गिरिजा जी । देश का सौभाग्य का सूर्य क्लांत एवं अस्त हो रहा है , तपस्विनी संस्कृति तमस्विनी में अदृश्य हो रही है , संस्कार तिरस्कृत हो रहें हैं । वास्तव में स्वर्ण भारत का इतिहास आधुनिक काल में अशुद्ध हो रहा है जिसके कारण कवि मन विचलित है। भाषा एवं साहित्य को सर्वोच्च स्तर पर उद्भासित करने का ही कवि धर्म इस सोनेट में परिलक्षित हो रहा है । ओड़िआ साहित्य का हिंदी अनुवाद करते हुए भी कवयित्री ने इस सोनेट के विशिष्ट शिल्प को भी अक्षत रखा है।
सोनेट प्रथा को, सोनेट शिल्प को चरितार्थ करते हुए कवि सत्य पट्टनायक जी एवं कवयित्री वीणा पंडा जी ने भी इस सोनेट गंगा में अपनी लेखनी का उत्सर्ग किया है। कवि सत्य पट्टनायक जी के जीवन सोनेट को अनूदित करते हुए अनुवादिका ने प्रेम एवं प्रतीक्षा को सार्थक रूप से प्रतिपादित किया है। इस सोनेट के प्रथम छंद को देखें,
अनूदित –
*पुकारता जीवन लिये हाथों में ऋतु फाल्गुनी
मायामहल में है विषादी व्याकुल राजकुमुदिनी
ढूंढ़ती हो तुम मृदु सानिध्य, धुएँ का कोमल स्पर्श
जीवन रखा है तुम्हारे लिए, अनंत चैती -मधुवर्ष ।*
जीवन सोनेट के इस छंद में जीवन जहाँ मनोरम है फाल्गुनी सा, चैत का मधुवर्ष सा है, वहाँ विषादयुक्त एवं व्याकुल प्रेयसी को मायामहल में बंदिनी राजकुमारी सा मानते हैं एवं उन्मुक्त जीवन काआश्वासन दे रहें हैं । इस सोनेट की शेष दो पंक्तियों में प्रेयसी को दुःख से मुक्त हो कर स्वछंद खगिनी सी उड़ जाने को कह रहें हैं । इस सोनेट का गूढ़ अर्थ देखें तो आत्मा को दुःख, माया, मोह से मुक्त हो कर जीवन की यथार्थता को ग्रहण करते हुए उर्ध्व गमन करने कह रहे कवि सत्य जी की लेखनी अत्यंत प्रभावी है। कवयित्री अनिमा जी ने इस भाव को अनुवाद में सार्थक भी किया है।
कवयित्री वीणा पंडा जी के सोनेट चंद्र वाटिका में जीवन एवं मृत्यु की प्रतिद्वंदिता में साक्षी बन इस सोनेट की मौलिकता की ऋतु में समर्पित हुई है अनुवादिका। इस सोनेट का प्रथम छंद की उपमाएँ अत्यंत निगूढ़ है।
अनूदित –
*प्रकाश जहाँ तमस संग अनिच्छा से होता संधित
आकाश जहाँ पृथ्वी संग गा रहा युगलबंदी
जीवन संग मृत्यु जहाँ प्रति क्षाण बनता प्रतिद्वंदी
चतुर्दशी का चंद्रमा वहाँ होता अंबुदों द्वारा सम्मोहित। *
कितना सुंदर वर्णन है इस छंद में जीवन एवं मृत्यु के मध्य प्रतिद्वंदिता का ? मूल रचयिता ने यदि अपने सृजनशीलता की पराकाष्ठा को अचल रखा है, तो अनुवादिका ने भी इस सृजन को उत्कृष्ट भाव एवं शब्दों से अलंकृत किया है।
प्राची के ओड़िआ साहित्य में वो अनुभूति है जिसे अनुवादिका अनिमा दास जी ने अपनी पारदर्शी लेखनी से यथार्थता प्रदान की है। ओड़िआ साहित्य की उत्कृष्टता एवं विशदता को, ओड़िआ कविओं एवं ओड़िआ भाषा की मधुरता को अपनी लेखनी में सर्वोच्च स्थान दिया है तथा हिंदी साहित्य को भी गौरवान्वित किया है। कवियत्री अनिमा दास जी की एकल पुस्तक काव्यपुष्पांजलि (2019) में स्वयं की रचित 26 सोनेट्स पृष्ठबद्ध भी हैं।
इस सोनेट संकलन के समस्त सोनेट में अपनी- अपनी मौलिक भावधारा है, अनूदित करते समय अनुवादक श्री विनीत मोहन जी एवं अनुवादिका अनिमा दास जी ने भी अपनी – अपनी लेखन शिल्प एवं विशिष्टता को अक्षुण्ण रखा है । कई दिवंगत सोनेटकारों को यदि यह पुस्तक एक मर्मस्पर्शी श्रद्धांजलि है तो, वर्तमान के सोनेटकारों को सौहार्दपूर्ण उपहार भी । यह पुस्तक, उच्च स्तरीय साहित्य का मानक होने का साथ, हिंदी साहित्य क्षेत्र के लिए सर्वप्रथम श्रेष्ठ उपलब्धि भी है। राष्ट्रीय भाषा हिंदी के प्रति इस स्वर्गीय आत्मीयता का सर्वदा परिवर्धन होता रहे इसी मंगल कामना के साथ कवि श्री विनीत मोहन औदिच्य जी एवं कवयित्री श्रीमती अनिमा दास जी को मेरी अनंत शुभकामनाएँ सहित साधुवाद।
कृति की शानदार समीक्षा हेतु आदरणीय अमरेश विस्वाल जी को हार्दिक साधुवाद एवं आभार ।