सांत्वना श्रीकांत II
मैं शंखनाद से
निकली गूंज हूं,
रहूंगी देर तक कानों में।
तुम्हारे शब्दों का स्वर हूं,
अर्थ बन कर रहूंगी
ब्रह्मांड में सदा।
प्रस्फुटित होती हुई
चिनगारी हूं मैं,
जलूंगी देर तक।
दमन के खिलाफ
चीत्कार हूं
चुभूंगी देर तक।
सांत्वना श्रीकांत II
मैं शंखनाद से
निकली गूंज हूं,
रहूंगी देर तक कानों में।
तुम्हारे शब्दों का स्वर हूं,
अर्थ बन कर रहूंगी
ब्रह्मांड में सदा।
प्रस्फुटित होती हुई
चिनगारी हूं मैं,
जलूंगी देर तक।
दमन के खिलाफ
चीत्कार हूं
चुभूंगी देर तक।
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