लिली मित्रा II
बहुत रात तक जाग कर कैनवास पर कुछ रंगता रहा,,,ब्रश के स्ट्रोक रवि की सोच को संचालित कर रहे थे। हाथों,पर ब्रश की पकड़ ,अधिक प्रभावी थी। आंखों की पुतलियां ब्रश के क्रियाकलाप अवाक् हो कर देखती थीं बस। माथे की पेशानी पर कई बल थे। शायद वे भी समझ नहीं पा रही थीं आज रवि के मन का कौन सा शान्त निष्क्रिय पड़ा ज्वालामुखी अचानक फट पड़ा था और जिसका लावा उसके मन के धरातल से बहता हुआ सीधा कैनवास पर बिखरता जा रहा था !
भोर के चार बज चुके थे । एक गहरी सांस लेकर रवि ने कलर प्लेट और ब्रश कैनवास बोर्ड के पास रखी टेबल पर रखा और सामने रखे काउच पर अपने शरीर को पटक दिया.. और कब रंगों की लहरों पर मन के तूफ़ान उड़ेलता ,नीद की आगोश में चला गया उसे पता ही ना चला।
निशा की यादें जब उसको बेचैन कर देतीं हैं, तड़प का सैलाब उसके पूरे जिस्म को तोड़ने लगता है तब अक्सर रवि अपने अंदर के तलातुम को कैनवास पर उतार देता है।
निशा.. रवि के बचपन का प्यार । नर्सरी से एक साथ पढ़ते, एक साथ खेलते, झगड़ते निशा और रवि कब एक दूसरे के करीब आ गए वे खुद भी नही जान पाए।
अक्सर निशा टिफ़िन में रवि के लिए माँ के हाथ का बना आम का खट्मिट्ठा मुरब्बा ज्यादा करके ले आती क्योंकि रवि को वो बहुत पसंद था.. और अपना टिफ़िन उसको पकड़ा कर उसको मज़े से खाते देखना उसको बहुत अच्छा लगता था।
रवि हमेशा घर जाकर दोस्तों के संग खेलने लग जाता और अपना होमवर्क करना भूल जाता। सुबह स्कूल आकर निशा की काॅपी से देखकर जल्दी-जल्दी गंदी हैंडराइटिंग में अपना काम पूरा करता। काम में गंदगी देखकर टीचर से मार भी खानी पड़ती।
स्केल रवि के हाथ में पड़ती और आँसू निशा के निकलते। पर अब तो ये रवि की आदत में शुमार हो चुका था। कभी-कभी तो वो लिखने का काम भी निशा पर छोड़ खुद अपनी ड्राइंग काॅपी में निशा का पोट्रेट बनाने लग जाता,और जानबूझकर उटपटांग चेहरे बना कर निशा को चिढ़ाता ।
निशा छुट्टी के बाद रवि के हाथों को चूमते हुए अक्सर रो पड़ती और एक ही बात कहती-“तुम अपना काम कर क्यों नही लेते रवि ? इतनी लापरवाही अच्छी नही,कभी मैं नहीं आ पाई स्कूल तब तुम कैसे करोगे अपना काम?”
रवि बोलता-“तुम हो ना मेरे साथ ,और पता है नामी गिरामी लोगों की हैंडराइटिंग हमेशा खराब ही रही है। देखना एक दिन मैं भी कोई महान हस्ती बनूँगा..और सरला मैडम भी तब मेरी सफलता देखकर सोचेंगी -“हाय मैंने इस बेचारे को कितना मारा !” और जिस दिन तुम नहीं आओगी मैं भी छुट्टी कर लूंगा, स्कूल में पढ़ने कौन आता है? मै तो अपनी निशा के लिए आता हूं स्कूल।”
और बोल कर जोर से हँस पड़ता।
निशा भी सर पीट लेती-” उफ्फ़ मैं तुमसे हारी बाबा ,पर अपने लिए रवि के दिल में इतना अगाध प्रेम देखकर निशा मन ही मन खिलती कुमुदनी सी निखर उठती ।
ऐसे ही चुलबुला बचपन कब जवानी की दहलीज पर पहुंच गया और कब वह बचपन वाली चाहत के रंग और गहराते गए.. दोनो के दिल पर ना जाने कितने कैनवास प्यार की नई आकृतियां रचते गए।
आज 11 नवम्बर था निशा का जन्मदिन और रवि के जीवन का सबसे खूबसूरत दिन.. बचपन से रवि निशा को अपने हाथ से एक प्यारा सा कार्ड बनाकर देता था। जिस पर पहले क्रेयॉन की ड्राइंग होती थी पर अब वह ऑयल कलर से रंगे दिल के एहसासी रंगों में डूबे निशा के प्रति उसके गहरे जज़्बातों की अभिव्यक्ति होते। निशा ने भी बड़े जतन से अपने हर जन्मदिन पर रवि से मिले कार्डों को सम्भाल कर रखा था । उस को बड़ी उत्सुकता से इंतजार रहता था रवि के बनाए कार्डों का।
काॅलेज बंक कर दोनो ने साथ-साथ सारा दिन बिताया। ‘सी पी’ के ‘कैफे कॉफी डे’ में काॅफी पी, सेन्ट्रल पार्क में घंटों रवि निशा की गोद में सर रख उसकी नरम अंगुलियों की सहलाहट अपने बालों पर महसूस करता रहा ,तो कभी आस-पास के लोगों से नज़रे बचा कर निशा के रसीले होंठों पर अपने गरम लबों की तपिश रखता रहा।
शाम धीरे-धीरे उतरने लगी थी। निशा और रवि घर लौटने के लिए राजीव चौक के मेट्रो स्टेशन की ओर चल पड़े। पर ना जाने क्यों आज वे मेट्रो से ना जाकर ‘लो फ्लोर्ड बस’ पर चढ़ गए।
सारे दिन का साथ और मखमली एहसास अब तक उन दोनो को प्यार के रूपहले संसार से बाहर नहीं आने दे रहा था।
बस में भी युगल एक दूजे में सिमटा सिकुड़ा रहा। तभी एक स्टाॅप पर कुछ आवारा मनचलों की टोली चढ़ी। उनके चढ़ते ही बस के भीतर का शान्त माहौल जैसे हुड़दंगी और छिछोरे ठहाकों से विरक्त होने लगा।
वे निशा को बड़ी अजीब सी वहशी नज़रों से घूरते हुए भौडें कमेंट देने लगे-“अरे रानी! हमसे भी चिपक ले” इतने बुरे भी नही हम”।
ये सुनते ही रवि आग बबूला हो उठा और घूर कर उनकी तरफ़ देखा।
तभी दूसरा युवक बोला -“घूरता क्या है बे! खा जाएगा क्या? हिम्मत है तो आ!!
निशा ने रवि को कस के पकड़ लिया और सहमते हुए बोली -” नही रवि इनके मुंह मत लगो.. जाने दो”।
तभी तीसरा युवक ने कटाक्ष करते हुए अपनी खींसे निपोड़ता बोला – “हिजड़ा साला”!
रवि ने तेजी से निशा का हाथ झटक कर अपनी सीट से उठा, और उस युवक के जबड़े को कस के दबोचता हुए पीछे ढकेल दिया।
देखते-देखते हाथापाई जोर पकड़ गई सहयात्रियों ने भी बीच बचाव करना शुरू किया.. । निशा घबराई हुई अपनी सीट से उठ रवि की तरफ़ बढ़ी .. इतने में झल्लाए हुए टोली के लड़के ने निशा की कमर पर हाथ फेरते हुए उसे पकड़ लिया.. असहज होती निशा ने एक झन्नाटेदार तमाचा उसके गाल पर रसीद दिया। वह युवक तिलमिला उठा और उसने बस के खुले दरवाजें से निशा को चलती बस से बाहर ढकेल दिया।
सब कुछ इतने अफ़रा-तफ़री में हुआ के कोई कुछ समझ ही ना पाया कि,,आखिर हो क्या गया???
बस के सभी यात्री चिल्ला उठे-“अरे बस रोको लड़की गिर गई”। आवारा लड़कों की पूरी टोली को यात्रियों ने तब तक धर दबोचा था।
पर रवि बुरी तरह अपना मानसिक संतुलन खोता हुआ निशा का नाम ले चीख पड़ा।
बस के रूकते ही बदहवास सा पीछे की ओर निशा .. निशा! करता दौड़ पड़ा।
इतनी देर में वहाँ काफ़ी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। रवि उस भीड़ को चीरता हुआ निशा के पास पहुंचा।
चलती बस से गिरने के कारण उसके सिर पर चोट बहुत तेज़ लगी थी.. खून बहुत अधिक बह गया था। निशा बेहोश थी।
आस-पास एकत्र हुए लोगों में से एक अधेड़ सज्जन आगे आए और अपनी कार में अस्पताल ले जाने के लिए कहा। रवि ने निशा को गोद में उठा कर कार में लिटाया।
कार पास ही एक नर्सिंग होम पर रूकी और उसे एडमिट किया गया।
रवि ने काँपते गले से निशा के घर फोन कर उसके माता-पिता और भाई को हाॅस्पिटल बुला लिया। पूरे शरीर में कई जगह गहरी चोट और अधिक रक्त बह जाने के कारण डाॅक्टर निशा की जान नहीं बचा सके।
रवि निशा के मृत शरीर के पास एक पत्थर की मूरत बना बैठा रहा। निशा को दिया उसके बर्थ डे कार्ड पर अब केवल लाल रंग से रंग चुका था जो धीरे-धीरे सूख कर काला पड़ रहा था।
इस घटना को आज 20 बरस बीत चुके थे । और आज तारीख 11 नवम्बर थी। कैनवास पर रवि ने निशा के लिए बर्थडे कार्ड एक बार फिर बनाया था।
क्योंकि निशा को रवि का दिया बर्थ डे कार्ड बहुत प्रिय था।
आज भी हर साल रवि 11 नवम्बर को कार्ड ज़रूर बनाता है.. पर निशा नही होती उसे देखने के लिए।
बेहतरीन प्रेम कहानी। फ्लैशबैक से शुरू हुई ये कहानी अपने रोमांचक और मार्मिक अंत तक का सफ़र बहुत ही रोचक और रोमांटिक तरीक़े से तय करती है। भाषा , शिल्प और भावबोध के लिहाज़ से कहानी के सभी अपेक्षित मापदंडों को पूरा करती ये कहानी पठनीय भी है और असाधारण भी।