ग़ज़ल/हज़ल

मनस्वी अपर्णा की ताजा गज़लें

फोटो : गूगल से साभार

मनस्वी अपर्णा II

 १२१२  ११२२  १२१२  ११२/२२
ये सिलसिला भी कहां बार बार होता है
किसी-किसी पे ही तो ऐतबार होता है //१//

बड़े नसीब से मिलता है कोई ऐसा जो
तुम्हारे इश्क़  में तुमपे निसार होता है //२//

उलझ गई है नज़र मिलके तेरी नज़रों से
हसीन हादसा ये बार बार होता है //३//

क़रीब पाते हैं हम दूरियों में तुझको और
तेरा नज़दीकियों में इंतज़ार होता है //४//

छुपाएं कैसे इसे कैसे खुश नज़र आएं
उदास चेहरा ही तो इश्तेहार होता है //५//

फिसल ही जाती है कोशिश तमाम करके भी
किसे यूं जिंदगी पे इख़ितयार होता है //६//

सवाले वस्ल पे क्या दें जवाब इसका तो
जी दिल के मिलने पे दारोमदार होता है //७//

               //२//
१२१२ ११२२ १२१२ ११२/२२
तेरे भरोसे पे दुन्या भुलाए बैठे हैं
ज़माने भर की उम्मीदें लगाएं बैठे हैं //१//

जहां पे चीखना लाजिम हो ऐसी हालत में
अजीब लोग हैं चुप्पी लगाएं बैठे हैं //२//

तुम्हारे साथ कभी दो क़दम चलेंगे हम  
बड़े दिनों से ये हसरत छुपाएं बैठे हैं //३//

सभी का हाल तुम्हारे ही हाल जैसा है
ये सारे लोग भी ख़ुद को सताएं बैठे हैं //४//

बड़ी अजीब कशिश है तुम्हारी महफ़िल में
हमीं नहीं है सभी सर झुकाए बैठे हैं //५//

ये तेरी राह गुज़र तो नहीं हैं फिर भी हम
न जाने किसलिए पलकें बिछाएं बैठे हैं //६//

मनस्वी अपर्णा

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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