मनस्वी अर्पणा II
ऐसा व्यक्ति ढूंढना ज़रा कठिन होगा जिसके पास किसी न किसी के लिए कोई न कोई शिकायत नहीं है या फिर उसके मन में बीती घटनाओं के लिए, बीते समय के लिए अफसोस नहीं है। हम में से ज्यादातर लोग जीवन का बहुत सा समय शिकायत करने और अफ़सोस जताने में जाया करते हैं, हालांकि ये बात भी जरा मुश्किल ही है कि हम बिल्कुल ही शिकायतों या अफसोस की भावना से मुक्त हो जाएं, जब तक हम सहजीवन में जी रहे होते हैं तब तक ये दोनों ही भाव सहज रूप से महसूस भी होते हैं और अभिव्यक्त भी किए जाते हैं, यह और बात है कि इन दोनों ही भावों का कोई सकारात्मक परिणाम हमको कभी नहीं मिलता। क्योंकि अपने मूल में ये दोनों ही भावनाएं बहुत हद तक नकारात्मक हैं। मज़े की बात ये है कि शिकायतें हमको अक्सर हमारे करीबी लोगों से ही होती है और अफसोस भी अपने ही अतीत और उसके निर्णयों पर होता हैं, यदि कभी हम यह सोचें कि आख़िर किसी के नाम से रोना रोकर या बीती हुई जिंदगी पर अफसोस जता कर हमको हासिल क्या हो रहा है, तो ख़ुद ही जान जाएंगे कि सिवाय शून्य के हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों हमें किसी से शिकायत होती है और क्यों बीती हुई जिंदगी पर अफसोस होता है? जवाब आसान है- खुद से और दूसरों से हमारी उम्मीदें। हम खुद को सदा एक सकारात्मक छवि में देखते हैं। इसलिए ख़ुद से किसी गलती की या अनुचित व्यवहार की उम्मीद हमको नहीं होती, लेकिन यह जीवन है। कभी भी सटीक और सधा हुआ नहीं होता, हो भी नहीं सकता। ऐसे में गलतियां भी होंगी और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार भी जो कि कालांतर में गलत लग सकता है, ऐसे ही दूसरों से भी हम अपने मुताबिक उम्मीदें लगाए रहते हैं कि फलां फलां व्यक्ति को ऐसा व्यवहार और ऐसा आचरण करना चाहिए। तो ये उम्मीदें हमेशा शिकायतें पैदा करती हैं।
कोई कितना भी अपना हो उसकी अपनी जिंदगी है अपने भाव हैं, इच्छाएं अनिच्छाएं हैं, जीवन को देखने का अपना एक दृष्टिकोण है। वो लगातार अपने व्यवहार और आचरण से बता रहा है कि उसका क्या सोच है और वह क्या करना चाहता है। ऐसे में उसके प्रति शिकायती रवैया अपना कर हम सिवाय दुख और पश्चाताप को आमंत्रित करने के कुछ नहीं करते, हम किसी को सुझाव दे सकते हैं। मानना न मानना उसकी अपनी रुचि का विषय है,अब अगर हम ये आग्रह लेकर बैठ जाएं कि हमारे सुझाव के हिसाब से ही अगला अपना जीवन जिए तो ये ज्यादती होगी, और फिर ऐसा न करने पर शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाएं, इससे आपसी संबंधों में दूरियां बढ़ने और खटास आने के सिवाय कुछ नहीं होता। फिर आप खुद सोचिए क्या आपको अपना जीवन अपने तरीके से जीना पसंद है या फिर किसी और के नियंत्रण में…। जब आप नियंत्रित होना नहीं चाहते तो करना क्यों चाहते हैं? किसी के भी नाम से रोना रोते रहना सिवाय मूर्खता के कुछ नहीं है, ये बस ऐसा है जैसे कि हम अज्ञात को अपनी मर्जी से नियंत्रित करना चाहते हैं जो असंभव है।
- कोई कितना भी अपना हो उसकी अपनी जिंदगी है अपने भाव हैं, इच्छाएं अनिच्छाएं हैं, जीवन को देखने का अपना एक दृष्टिकोण है। वो लगातार अपने व्यवहार और आचरण से बता रहा है कि उसका क्या सोच है और वह क्या करना चाहता है। ऐसे में उसके प्रति शिकायती रवैया अपना कर हम सिवाय दुख और पश्चाताप को आमंत्रित करने के कुछ नहीं करते, हम किसी को सुझाव दे सकते हैं। मानना न मानना उसकी अपनी रुचि का विषय है,अब अगर हम ये आग्रह लेकर बैठ जाएं कि हमारे सुझाव के हिसाब से ही अगला अपना जीवन जिए तो ये ज्यादती होगी, और फिर ऐसा न करने पर शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाएं, इससे आपसी संबंधों में दूरियां बढ़ने और खटास आने के सिवाय कुछ नहीं होता।
दूसरी बात आती हैं अफसोस की। बीते समय, निर्णयों और घटनाओं पर आप कितना भी अफसोस कर लें उसमें रत्ती भर भी बदलाव नहीं होगा, दरअसल हमको अफसोस होता ही इसलिए है कि क्योंकि हमको ये लगता है कि जो भी हुआ वह हमारी अपनी आत्म छवि के विपरीत था,अपनी नजर में हम अपनी भूूमिका को ज़्यादा सकारात्मक और सशक्त देखते हैं, ज़्यादा अच्छा और सकारात्मक मानते हैं। इसीलिए हमको ये अपनी आत्मच्छवि पर आघात की तरह लगता है जिसकी परिणति अफसोस में होती है। हम खुद एक ‘एरर लेस’ व्यक्ति मानते हैं, इसलिए बार-बार अचरज में पड़ते हैं कि हमसे ऐसी गलती हो ही कैसे गई? यह सोच ही गलत है। हम आप सब बहुत ही सामान्य बुद्धि के साधारण लोग हैं। जिस वक्त हम पर जो भी भावना हावी होती हैं हम उसके अनुसार निर्णय लेते हैं इनमें से कुछ सही तो कुछ गलत साबित होते हैं और गलत पर अफसोस होता है। इसे यूं सोच कर देखिए कि जब सब हमने ही किया है तो कैसा अफसोस? कोई और तो आया नहीं था हमारे बदले… हमारे निर्णय नितांत हमारे अपने थे और रहेगें, जब हम इस तरह की सोच को अपनी विचारधारा में जगह देने लगते है तों अफसोस और ग्लानि के भाव कम होते जाते हैं और धीरे धीरे खत्म भी हो सकते हैं।
आपका जीवन आपकी अपनी जिम्मेदारी है। इसे किसी पर टालना दुख का कारण बनता है, इसी तरह दूसरे का जीवन भी उसका अपना जीवन है उसमें जरूरत से ज़्यादा हस्तक्षेप और फिर नाफरमानी पर शिकायतों का पिटारा एक अच्छे माहौल और शांत जीवन को तहस-नहस कर सकते है। इनसे बचना जितने जल्दी सीखेंगे आगे आने वाला समय उतने जल्दी बेहतर और सार्थक होगा।
Leave a Comment