कविता

मैं एवं दीपावली (सोनेट)

अनिमा दास II

न लाँघ पाऊँ में सौमित्र की तृतीय रेखा…किंतु हूँ प्रतिज्ञाबद्ध
मैं दूँगी अग्नि परीक्षा…मैं जाह्नवी…हूँ आजन्म परंपराबद्ध
अतीत-वर्तमान -भविष्य : है केवल ग्रंथांकित करुण वंदन
निस्पंदन है वक्ष मेरा किंतु उर्वी आज नहीं देती मृदु आलिंगन।

कई वनछवियाँ होतीं भस्मित, होते हैं हत कई दशकंध दृप्त
तथापि पुनर्वार एक सीता होती समर्पित,अग्नि भी होती तृप्त
तमस्वी गुहाओं में गरजती है.. विनाश की एक उग्र प्रतिछाया
न आते रघुवीर…न मिटती काल कराल की… विकृत माया।

होगा तुम्हारा पुनरागमन…है पथ तुम्हारा… सदैव उज्ज्वलित
सहस्र दीपक. की लताएँ…मनमृदा से हुईं हैं…अद्य विकसित
कर परास्त तमस को… एक क्षुद्र किंतु अमृतमयी संचेतना दी
यह संदेश नहीं था निरर्थक…नहीं थी यह दुराशा अयोध्या की।

समग्र अयोध्या के दिगंत पर है वर्णित,द्युतिमय दिव्य दीपावली
दीर्घ तमिस्र का होगा अंत…समस्त सृष्टि गायेगी विरुदावली।

About the author

Anima Das

श्रीमती अनिमा दास- (१५ सितंबर, १९७३) का जन्म ओड़िसा के कटक जिले में हुआ , आप एक मिशनरी इंग्लिश मीडियम स्कूल में शिक्षिका हैं। आप एक अत्यंत प्रतिभा संपन्न हिंदी कवयित्री व सोनेटियर हैं। इनकी लेखनी सोनेट्स एवं छंदमुक्त कविताओं में प्राणों का संचार कर देती है। प्रकृति, सामाजिक समस्याओं के प्रति चिंता व विशेष रूप से मृत्यु एवं प्रेम के प्रति संवेदनशीलता आपके काव्य की विशिष्टता है। हिंदी में मुख्य कार्य के रूप में 'काव्य-पुष्पांजलि' व एकल सोनेट संग्रह 'शिशिर के शतदल' के अतिरिक्त 5 साझा संग्रह भी पृष्ठबद्ध हुये हैं। काव्य संग्रह 'प्रतीची से प्राची पर्यंत' में आपने सुविख्यात ओड़िआ सोनेट रचनाकारों को हिंदी में अनूदित भी किया है।

1 Comment

  • अति उत्तम सोनेट सृजन ।हार्दिक बधाई आपको अनिमा जी 💐💐

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