अनिमा दास II
न लाँघ पाऊँ में सौमित्र की तृतीय रेखा…किंतु हूँ प्रतिज्ञाबद्ध
मैं दूँगी अग्नि परीक्षा…मैं जाह्नवी…हूँ आजन्म परंपराबद्ध
अतीत-वर्तमान -भविष्य : है केवल ग्रंथांकित करुण वंदन
निस्पंदन है वक्ष मेरा किंतु उर्वी आज नहीं देती मृदु आलिंगन।
कई वनछवियाँ होतीं भस्मित, होते हैं हत कई दशकंध दृप्त
तथापि पुनर्वार एक सीता होती समर्पित,अग्नि भी होती तृप्त
तमस्वी गुहाओं में गरजती है.. विनाश की एक उग्र प्रतिछाया
न आते रघुवीर…न मिटती काल कराल की… विकृत माया।
होगा तुम्हारा पुनरागमन…है पथ तुम्हारा… सदैव उज्ज्वलित
सहस्र दीपक. की लताएँ…मनमृदा से हुईं हैं…अद्य विकसित
कर परास्त तमस को… एक क्षुद्र किंतु अमृतमयी संचेतना दी
यह संदेश नहीं था निरर्थक…नहीं थी यह दुराशा अयोध्या की।
समग्र अयोध्या के दिगंत पर है वर्णित,द्युतिमय दिव्य दीपावली
दीर्घ तमिस्र का होगा अंत…समस्त सृष्टि गायेगी विरुदावली।
अति उत्तम सोनेट सृजन ।हार्दिक बधाई आपको अनिमा जी 💐💐