सचिन अरोरा ll
कक्षा- 4 A
बचपन कल्पनाओं की दुनिया होती है। उसी कल्पनाओं के अनुसार बच्चे को भविष्य में क्या बनना है उसकी सोच और उसपर कार्य से जुड़े रहते हैं। ऐसे ही मोहक कल्पनाएं ‘केंद्रीय विद्यालय पंजाब लाइंस मेरठ कैंट’ द्वारा वर्ष 1986-87 में प्रकाशित स्कूल पत्रिका से मिली हैं । उन रचनाओं को अश्रुत पूर्वा की वेबसाइट पर प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है ।
बिल्ली
बिल्ली बैठी पूछ रही है,
मैं आऊं – मैं आऊं ।
दादी गुर्रा कर बोली,
आ तो मजा चखाऊं ।
ठक – ठक ठक – ठक,
डन्डा लेकर उसे डराती ।
लेकिन आँख बचा कर,
बिल्ली रोज दूध पी जाती।
मच्छर जी
झुंड बनाकर चक्कर जी,
लगा रहे हैं मच्छर जी ।
भिनभिन-भिन राग सुनाते ।
करते जीना दुश्कर जी
झुंड बनाकर चक्कर जी,
लगा रहे हैं मच्छर जी ।
कूड़े करकट को घर मानें,
अंधकार में मस्ती छानें ।
खून चूसकर पेट फुलाए
हो गया मुश्किल उड़ना जी
झुंड बनाकर चक्कर जी,
लगा रहे हैं मच्छर जी ।
सुई चुभाकर चुनमुन जी को,
सता रहे हैं मिस्टर जी ।
झुंड बनाकर चक्कर जी,
लगा रहे हैं मच्छर जी ।
साभार : केन्द्रीय विद्यालय पंजाब लाइंस मेरठ कैंट पत्रिका,वर्ष 1986-87
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