स्वास्थ्य

कोरोना काल में सजग रहें मधुमेह के मरीज

फोटो : साभार गूगल

डॉ. एके अरुण II

भारत में 25 साल से कम आयु के चार में से एक व्यक्ति में मधुमेह के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। आम तौर पर ये लक्षण 40-50 की आयु में दिखाई देते हैं। मधुमेह रोगियों के लिए कोरोना सबसे बड़ी मुसीबत बन कर आया है। क्योंकि मधुमेह रोगी सबसे ज्यादा कोरोना के शिकार हो रहे हैं। हालांकि राहत की खबर यह है कि एक अध्ययन में दावा किया गया है कि एंटी आॅक्सीडेंट की मात्रा से प्रचुर हर्बल दवाएं ऐसे रोगियों को मधुमेह के साथ-साथ कोरोना से भी राहत प्रदान कर रही हैं।

तेहरान यूनिवर्सिर्टी आफ मेडिकल साइंसेस के अध्ययन का भारत के संदर्भ में भी बड़ा महत्व है क्योंकि देश में मधुमेह के उपचार में आयुर्वेद की दवाएं खासी प्रचलित हैं। सीएसआईआर ने बीजीआर-34 जैसी सफल दवाएं विकसित की हैं जिसे एमिल फार्मास्युटिकल द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है। इसमें एंटी आॅक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा है। एनबीआरआइ के पूर्व वैज्ञानिक एवं बीजीआर-34 की खोज करने वाले वैज्ञानिक डॉ. एकेएस रावत शोध के दावों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। वे कहते हैं कि बीजीआर-34 में दारुहरिद्रा, गिलोय, विजयसार, गुड़मार, मजीठ तथा मैथिका जैसे हर्ब मिलाए गए हैं जिनमें रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखने के साथ-साथ एंटी आक्सीडेंट की मात्रा भी बढ़ाते हैं।

अध्ययन के अनुसार जो लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं और कोरोना से भी संक्रमित हो रहे हैं, उनमें कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से हाईपरग्लेसिमिया की स्थिति पैदा हो रही है जिसमें खून में इंसुलिन की मात्रा एकदम से कम हो जाती है। दूसरे कोरोना की वजह से प्रतिरोधक कोशिकाओं की कार्यप्रणाली भी बिगड़ रही है। दोनों का नतीजा यह है कि बीमारी गंभीर हो रही है तथा मौत का कारण भी बन रही है।

  • तेहरान यूनिवर्सिर्टी आफ मेडिकल साइंसेस के अध्ययन के अनुसार जो लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं और कोरोना से भी संक्रमित हो रहे हैं, उनमें कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से हाईपरग्लेसिमिया की स्थिति पैदा हो रही है जिसमें खून में इंसुलिन की मात्रा एकदम से कम हो जाती है। दूसरे कोरोना की वजह से प्रतिरोधक कोशिकाओं की कार्यप्रणाली भी बिगड़ रही है। दोनों का नतीजा यह है कि बीमारी गंभीर हो रही है तथा मौत का कारण भी बन रही है।

फोटो : साभार गूगल

 तेहरान यूनिवर्सिर्टी के एंड्रोक्रोनालाजी डिपार्टमेंट ने अपने शोध में पाया कि एंटी आॅक्सीडेंट से प्रचुर दवाएं मधुमेह एवं कोरोना संक्रमित रोगियों में साइटोकिन्स को नियंत्रित कर रही हैं। जबकि अन्य उपचार करा रहे लोगों में साइटोकिन्स की अति सक्रियता देखी गई। दरअसल, साइटोकाइंस प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले प्रोटीन हैं। इनकी मौजूदगी शरीर की प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय और नियंत्रित रखती है। लेकिन कोविड-19 के संक्रमण में साइटोकाइंस अति सक्रिय हो जाते हैं जिसके चलते प्रतिरक्षा तंत्र काम नहीं कर पाता।

द लांसेट पत्रिका के एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग उम्रदराज हैं या जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह  जैसी बीमारियां हैं उनकी कोरोना से जान जाने का ज्यादा ख़तरा है। ये अध्ययन चीन में वुहान के दो अस्पतालों के 191 मरीज़ों पर किया गया था। इसमें शोधकर्ताओं ने उन लोगों पर अध्ययन किया जो या तो मर चुके थे या अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके थे। 135 मरीज़ जिनयिनतान हॉस्पिटल और 56 वुहान पल्मनरी हॉस्पिटल से थे।  इनमें से 137 डिस्चार्ज हो गए और 54 की मौत हो गई थी। कुल सैंपल में से 58 मरीजों को हाइपरटेंशन, 36 को डायबिटीज और 15 को दिल संबंधी बीमारियां थीं। इसी तरह 191 मरीजों की उम्र 18 से 87 साल तक थी। ज्यादातर मरीज पुरुष थे।

भारत में मधुमेह के मरीजों की संख्या बहुत है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के मुताबिक भारत में 2019 तक डायबिटीज के मरीजों की संख्या 7.7 करोड़ थी। कोरोना विषाणु से संक्रमित कई लोगों को डायबिटीज भी बताया जा रहा है। हालांकि ऐसे मरीजों का सही-सही आंकड़ा मौजूद नहीं है। जिन लोगों को टाइप एक और टाइप दो डायबिटीज है उनमें कोरोना के गंभीर लक्षण हो सकते हैं।

लेखक गांधी विचारों के अध्येता हैं। आप फूड न्यूट्रिशन एंड हेल्थ जर्नल के संपादक भी हैं।

About the author

AK Arun

डॉ. एके अरुण देश के प्रख्यात जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक और संपादक हैं। साथ ही परोपकारी चिकित्सक भी। वे स्वयंसेवी संगठन ‘हील’ के माध्यम से असहाय मरीजों का निशुल्क उपचार कर रहे हैं। डॉ. अरुण जटिल रोगों का कुशलता से उपचार करते हैं। पिछले 31 साल में उन्होंने हजारों मरीजों का उपचार किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। कोरोना काल में उन्होंने सैकड़ों मरीजों की जान बचाई है।
संप्रति- डॉ. अरुण दिल्ली होम्योपैथी बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं।

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