धारावाहिक कहानी/नाटक

अरण्य लीला (धारावाहिक नाटक-भाग १)

चित्र: गूगल साभार

योगेश त्रिपाठी II

पात्र
पुजारी : किशोर वय का युवा
राजीव : 35-40 वर्षीय उद्यमी
मनो : राजीव की पत्नी
इनके अतिरिक्त सहयोगी पात्रों के रूप में चार महिला और दो पुरुष कलाकार ।

मंच पर अर्द्धप्रकाश । पूरी तरह प्राकृतिक वातावरण । वृक्षकुंज, वनलताएं आदि ।
पीपल का पुराना पेड़, जिसके चारों ओर चबूतरा बना है । स्थिर-सा दिखने वाला दृश्य
धीरे-धीरे सचल होता है । वनलताएं हिलने और गुनगुनाने लगती हैं ।

वनलताएं : हूं हूं… हूं हूं…. हूं हूं…. हूं हूं……………
त नि ध प…… हूं हूं……..
स नि ध म प…. हूं हूं…..

युवा पुजारी वनलताओं के मानवी रूपों के साथ श्लोक-पंक्तियों को गाते हुए
भावाभिनय करता है । एक दिव्य, पारलौकिक अनुभूति देने वाला दृश्य ।

पुजारी : यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे ।
जयेऽजये जयाधरे जयशीले जयप्रदे ।।
सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते ।
सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे ।।
सर्वशस्यालये सर्वशस्याढये सर्वशस्यदे ।
सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे ।।
मंगले मंगलाधरे मंगल्ये मंगलप्रदे ।
मंगलार्थे मंगलेशे मंगलं देहि मे भवे ।।
भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे ।
भूमिपाहंकाररूपे भूमि देहि च भूमिदे ।।

पति-पत्नी – राजीव और मनोरमा आते हैं । मनोरमा के हाथ में एक छोटा सा बैग है।
उनके आते ही वनलताएं सहम कर शांत हो जाती हैं ।
पुजारी पूजन-कार्य में संलग्न ।

मनो : अरे ! यह तो बहुत अजीब जगह है !
राजीव : चुप रहो…. पहले पता तो करें । आसपास शायद कोई बस्ती हो ।
मनो : यह आदमी कौन है ?
राजीव : पुजारी लगता है….. पूछूं ?
मनो : (तनिक सोचकर) पूछो !
पुजारी उनकी ओर घूमता है ।
पुजारी : आ गए तुम लोग ?
राजीव को आश्चर्य होता है । पुजारी पुनः अपने काम में लग जाता है ।
राजीव : अं ! ….. हां । …. माफ करना, हम आपकी पूजा के बीच आ गए । दरअसल हम लोग
यहां से गुजर रहे थे…..
पुजारी हतप्रभ ।
पुजारी : गुजर रहे थे ?….. यहां आना नहीं था ?
राजीव और मनोरमा हैरान ।
राजीव : यहां ? यहां क्यों आना था ? दरअसल हम यहां से जा रहे थे कि अचानक हमारी कार
खराब हो गई ।
पुजारी एक टक उनकी ओर देखता है ।
यूं ही…. चलते-चलते ही । (पुजारी हल्के से मुस्कुराता है।)…… यकीन करिए, हम झूठ
नहीं बोल रहे हैं । चारों तरफ अंधेरा था । इधर थोड़ी रोशनी दिखाई दी तो आ गए,
लेकिन वो रोशनी किस चीज की थी ….
पुजारी : वो इस दिये की थी । आगे बोलो !
राजीव : न न… यह तो काफी कम है ! है न मनो ?
मनो : हां । ऐसा लग रहा था जैसे कहीं पेट्रोमैक्स जल रहा हो !
पुजारी : आगे बोलो क्या कहना चाहते हो ?
राजीव : हम लोग दरअसल प्राब्लम में हैं । शायद रुकना भी पड़े…. क्या हम यहां रात भर
ठहर सकते हैं ?
पक्षियों का विचित्र कलरव । पुजारी चौंक कर देखता है । मनोरमा, राजीव से सिमट
जाती है । पुजारी विचित्र ढंग से पेड़ों की ओर देखता है तो कलरव शांत होता है ।
पुजारी : यहां कोई होटल नहीं है बाबू, न ही कोई सराय है । हां पास में राजाओं की एक पुरानी
गढ़ी है, जो अब रहने लायक ही नहीं है । दूर कुछ किसानों के घर हैं, चाहो तो वहां
चले जाओ ।
मनो राजीव को ना करने का इशारा करती है ।
राजीव : नहीं । हम लोग यहीं पर रुकना चाहते हैं । अगर आपकी मंजूरी हो तो ।
पुजारी कोई उत्तर नहीं देता । चिड़ियों की चहचहाहट, जैसे आपस में मशवरा कर रही
हों । पुजारी ऊपर पेड़ों की तरफ देख कर जोरों से बोलता है ।
पुजारी : सोच लो… सोच लो… फिर हमको बताओ……
राजीव और मनो हैरान । वनलताएं हिलोर मारती हैं ।
वनलताएं : (सुर में) हूं… हूं…. हूं….. हूं……..
पुजारी : मतलब ? अरे साफ-साफ कहो न ? ….
वनलताएं : (सुर में) हूं… हूं….हूं…. हूं……
पुजारी : (पेड़ों से) अनुमति है ? ….. बाद में कुछ न कहना ! …. अनुमति है न ? (राजीव से)
तुम दोनों ….?
राजीव : हसबैंड-वाइफ…. पति-पत्नी हैं । मेरा नाम राजीव है, और इनका मनोरमा ।
पुजारी के चेहरे के भाव बदलते हैं ।
क्या हुआ पुजारी जी ?
पुजारी : कुछ नहीं…. राजीव अर्थात विष्णु । (पेड़ों से) राजीव यानी विष्णु ! मनोरमा, अर्थात
विष्णुप्रिया लक्ष्मी । (वनलताओं से ऊंचे स्वर में) मनोरमा अर्थात विष्णुप्रिया लक्ष्मी !
देख लो अच्छी तरह, तुम भी ! देख लिया ?
वनलताएं : (सुर में) हूं…. हूं….. हूं….. हूं…….
मनो : आप…. किससे बातें कर रहे हैं ?
पुजारी : इनसे । और कौन है यहां ? विचित्र लगा क्या ?
मनो : नहीं नहीं….
पुजारी : कुछ लोगों को लगता है विचित्र … वृक्षों से संवाद करना… पशुओं से संवाद करना….
राजीव : मैंने सुना है, कुछ लोग करते हैं… बातें… पशुओं से ।
पुजारी : पशु भी तो ! सुना नहीं कभी ? सबको सुनाई नहीं देता…. जो पशुओं की भाषा जानता
वही सुन सकता है । वैसे ही, जो वृक्षों की भाषा जानता है, वही समझ सकता है कि
उन्होंने क्या कहा !
मनो : तो इन्होंने अभी क्या कहा ?
पुजारी : (मुस्कुराकर) इन्होंने कहा – अनुमति है ।
राजीव : चलो अच्छा हुआ….. (पेड़ों से) धन्यवाद ।
मनो : अगर इनकी अनुमति न होती तो आप हमें नहीं ठहराते ?
पुजारी : कैसे ठहराता ? जगह तो इनकी है । इनकी मर्जी के बिना, यहां एक चिड़िया तक नहीं
आ सकती !
मनो : राजीव और मनोरमा हों तो भी ?
पुजारी : (विचित्रता के साथ) हां, तो भी ।
पुजारी अंदर जाता है ।
मनो : मुझे तो डर लग रहा है …. तुम्हें नहीं लग रहा ?
राजीव : ……… नहीं ।
मनो : ….. नहीं ? …. इतनी कम उम्र का पुजारी पहली बार देखा… कुछ अजीब-सा लगता है
न ? कहां गया होगा वो ?
राजीव : ….. क्या मालूम ।
मनो : चलो, दिखने से तो खतरनाक नहीं लगता… लेकिन जगह बहुत अजीब है…..कहां फंस
गए…न जाने कैसी कार खरीदी तुमने भी ।
राजीव : अरे तो क्या मुझे पता था कि बिगड़ जाएगी ? .. नई गाड़ियों में ऐसी दिक्कत कभी
सुनी है तुमने ?… कि बीच रास्ते में अचानक बंद हो जाए ?
पुजारी हाथ में एक बिछौना लेकर आता है ।
पुजारी : क्या हो गया ? लड़ने क्यों लगे ?
राजीव : कुछ नहीं पुजारी जी । ये कार के लिए कोस रही है । अब मुझे क्या मालूम कि अंदर से
वह कैसी है ! (पुजारी बिछौना पकड़ाता है ।) अरे इसकी क्या जरूरत थी ?
मनो : आपकी उम्र क्या है पुजारी जी ?
पुजारी ऐसे प्रश्न से चौंक जाता है ।
पुजारी : मुझे याद नहीं ।
राजीव : अरे छोड़ो न, क्या पूछने लगी ?
मनो : आप क्या करते हैं ? मेरा मतलब है कि आप कौन हैं ? यहां पुजारी हैं ?
पुजारी नाराज हो जाता है ।
पुजारी : मैं……. अपना परिचय मैं किसी को नहीं बताता !
मनो : क्यों ?
राजीव : …….. अरे नहीं-नहीं, ये ऐसे ही पूछ रही है ।
पुजारी : तो ठीक है । मैं भी ऐसे ही बता देता हूं ।
मनो : हां हां……
पुजारी : नौकर हूं…… राजीव और मनोरमा का । ….. पुजारी ही हूं मैं ।
मनो : लेकिन यहां तो कोई मंदिर ही नहीं है ।
चिड़ियां चहचहा उठती हैं । राजीव, मनो डर कर ऊपर देखते हैं ।
राजीव : बाबा क्षमा करिएगा, थोड़ी-सी विचित्रता है इस जगह में ।
पुजारी : थोड़ी-सी ? बहुत है….. बहुत ! देखोगे अभी कुछ देर में ।
मनो : बाबा, हमें डर लग रहा है ।
पुजारी : किससे ?
राजीव : ……..दरअसल हम लोग कभी ऐसे माहौल में रहे नहीं न ! हमेशा रौशनी में रहे,
भीड़ में रहे ।
मनो : आप यहां अकेले रहते हैं ?
पुजारी : आदत की बात होती है । किसी को जंगल से… किसी को शहर से….. डर लगता है ।
मनो : शहर से ?
पुजारी : हां ।
मनो : तो क्या आप बहुत दिनों से हैं यहां पर ?
टिटहरी की आवाज दूर जाती हुई । दोनों चौंकते हैं । टिटहरी है । बड़ी तीखी आवाज
होती है इसकी । कभी नहीं सुनी ?
राजीव : ध्यान नहीं दिया । …….. काफी घने पेड़ हैं यहां पर ! पुजारी चौंक कर राजीव की ओर
देखता है, उसके बाद पेड़ों की तरफ ।
राजीव : क्या हुआ ?
पुजारी : …… तुम काम क्या करते हो ?
राजीव : बीमा एजेंट हूं ।
पुजारी : बीमा एजेंट ? बीमा का मतलब ?
राजीव : आप बीमा नहीं जानते ?
पुजारी : बिल्कुल नहीं ।
मनो : बता दो न !
राजीव : बीमा का मतलब है ….. नुकसान होने पर मुआवजे का मिलना । जिंदगी का भी होता
है और गाड़ी-मोटर, घरेलू सामान.. इन सबका भी ।
पुजारी : हूं…. समझ गया । पैसा मिलना चाहिए, जीते-जी भी, और मरने के बाद भी !
अच्छी व्यवस्था है ।
राजीव : मरने के बाद तो और भी जरूरी है….
पुजारी हाथ के इशारे से आगे बात करने से रोकता है । पूजा से संबधित कुछ करने
लगता है ।
राजीव : आप पूजा कर रहे हैं ?
पुजारी : नहीं…. एक अधूरा काम है जो करना चाहता हूं पूरा । लेकिन…. अपनी मर्जी से कभी
कुछ होता है क्या ….
मनो : कैसा काम ?
पुजारी तीक्ष्ण नजरों से देखता है ।
राजीव : सॉरी …. इट्स ओके…….
मनो : सुनो, बाकी सामान भी ले आएं ?
राजीव : (दबे स्वर में) क्या जरूरत है । कार में ही रहने दो ।
मनो : बाबा, कार तो सेफ है न वहां पर ?
पुजारी : न होगी तो ? ….क्या कर सकती हो ?
राजीव दबी हंसी हँसता है ।
मनो : मेरा मतलब था कि अगर ऐसा हो तो वहीं कार में ही रुके रहें हम लोग ?
पुजारी : हां, हो सकता है…. कार के अंदर ही तुम दोनों बैठे रहो… थोड़ा सा शीशा खोल के रखना
पड़ेगा …
राजीव : हां….
मनो : क्यों ?
पुजारी : दम न घुटे इसलिए । बाहर से कोई…. आ तो न पाएगा… हां, शीशा तोड़ सकता है… बड़े
भारी पत्थर से… टूट जाता है न ? (राजीव हां में सिर हिलाता है।) अगर मैं बचाने दौड़ा
तो भी पांच मिनट तो लगेंगे ही । है न ?……… और पांच मिनट में तो सब खत्म हो
जाएगा….
राजीव : बाबा, ठीक है… हम यहीं रुकेंगे….इतना खतरा है तो…
पुजारी : जरूरी नहीं है । हो सकता है कुछ भी न हो ।
मनो : नहीं-नहीं….. हम यहीं ठहरेंगे ।
राजीव : हां, यहीं ठीक रहेगा ।
पुजारी : मैं आता हूं ।
राजीव : जी ।
मनोरमा : मैंने कौन-सी स्टुपिड बात की, कि हंस पड़े ?
वनलताएं सतर्क हो जाती हैं ।
राजीव : कब ?
मनो : मेरा दिमाग न खराब करो ।
राजीव : मुझे लगा कि बाबा नाराज न हो जाए भई ।
मनो : (चिढ़ाती है) बाबा नाराज न हो जाए भई ! हुंह ….. मैं पूछती हूं कि आखिर तुमने वहां
कार रोकी ही क्यों ?
राजीव : अरे भई मैंने कार रोकी नहीं थी ।
मनो : तो क्या अपने से रुक गई ?
राजीव : शायद ।
मनो : क्या शायद ? कभी कार अपने से रुकती है ?
राजीव : देखो, हुआ यह कि ….
मनो : हुआ क्या वो मैं नहीं जानती । अपनी गलती छुपाने की कोशिश न करो…
कार रोकी क्यों ?
राजीव : मैंने जानबूझकर नहीं रोकी…। न जाने क्यों ….अचानक मन में आया कि….
कार रोक दूं । लेकिन जब रोक दिया तब खयाल आया कि क्यों रोका ।
फिर दोबारा स्टार्ट ही नहीं हुई ।
वनलताएं हंसती हैं । राजीव मनोरमा चौंकते हैं ।
पता नहीं क्या है यहां पर ? … जब कि डीजल भरा हुआ है, फिर भी कार रुक गई ।
ठहरो, कंपनी को मेसेज करता हूं, गाड़ी को पिकअप कर ले ।
मोबाईल में मेसेज करता है ।
मनो : अरे वो लोग भी सुबह से पहले क्या आएंगे ! वैसे, हम लोग हैं कहां इस वक्त ?
राजीव : डेढ़ सौ किलोमीटर पहले, प्रयागराज से ।
मनो : उफ ! वो भी जंगली एरिया ।
राजीव : अभी तो जंगली एरिया इसके आगे है ।
मनो : सुनो, रीवा लौट चलो ! वहीं किसी होटल में रुक लेंगे ।
राजीव : बाईस किलोमीटर आ चुके हैं मैडम ! और अब क्या पैदल लौट चलें ?
मनो : ओह ! आसपास कोई गांव भी नहीं…. अरे ढूंढ़ते तो कोई न कोई घर मिल जाता……. फंस
गए इस पागल के चक्कर में ! सुनो, किसी लोकल मेकेनिक को ही बुलाओ ।
राजीव : उसका फोन नंबर थोड़ी है मेरे पास ? कमाल करती हो ! और अगर मिल भी जाए तो
छूने न दूं । नई कार है, खराब नहीं करानी है मुझे ।
मनो : है ही बड़ी अच्छी ! ये भी न जाने कहां चला गया ? सुनो, आदमी तो ठीक हैं न ?
राजीव : मेरा कोई क्लाइंट नहीं है, कि मैं जानूं कि कैसा आदमी है ! ठीक ही होगा ।
मनो : पता नहीं अजीब-सा है !
राजीव : अरे यार जंगल में मैं भी रहूं न तो ऐसा ही हो जाऊंगा ।
मनो : पूजा-पाठ के नाम पर बहुत लोग चोर-लुटेरे भी होते हैं ।
राजीव : थोड़ा धीरे बोलो !
मनो : क्या हुआ ?
राजीव : (पेड़ों की ओर इशारा करता है।) कहीं सुन न लें !
मनो : कौन ?
राजीव : (छुपाने की गरज़ से गा कर बोलता है ।) जो बोल सकते हैं वो सुन भी सकते हैं !
और दूसरे को बता भी सकते हैं !
मनो : तुम्हें गाना सूझ रहा है ?
वनलताएं : (गा कर) जो बोल सकते हैं वो सुन भी सकते हैं !
और दूसरे को…. बता भी सकते हैं !
दोनों सहम जाते हैं ।
मनो : तुमने कुछ सुना न ?
राजीव : तो क्या तुमने भी सुना ?
मनो : देखो, यह बहुत ही बुरी जगह है । चलो यहां से निकल चलो । किसी पेड़ के नीचे बैठे
रहेंगे पर यहां नहीं ।
राजीव : अरे रुको तो, पुजारी जी हैं न यहां पर ।
मनो : अरे सबसे ज्यादा डर तो उन्हीं से है ! चोरों का सरदार लगता है ! पता नहीं कहां चला
गया ? मुझे तो लगता है कि….
राजीव : क्या ?
मनो : अपने साथियों को सूचना देने गया होगा ।
राजीव : अरे चुप्प रहो……
मनो : कह रही थी कि अगले महीने चलें पर नहीं, तुम्हें ही जल्दी पड़ी थी…..
राजीव : देखो, मुझे नहीं मालूम था कि कार खराब हो जाएगी…

मनो : ये आवाज कैसी ?
राजीव : सुनने की कोशिश करता है ।
राजीव : नदी है । रास्ते में पुल मिला था, याद नहीं ?
मनो : ओ हां….. चलो मौका है… चुपके से भाग चलें…
राजीव : लेकिन जाएंगे कहां ?
पुजारी आता है ।
राजीव : बाबा आ गए ।
पुजारी : हूं….. सारी व्यवस्था हो गई ।
मनो : कैसी व्यवस्था ?
पुजारी : आगे की ।
मनो : किसी से मिलने गए थे आप ?
पुजारी : मेरे बारे में ज्यादा जानने की कोशिश न करो । इसी में भलाई है, तुम्हारी ।
राजीव : सॉरी बाबा, ऐसी कोई बात नहीं है ।
पुजारी : हां अब बताओ, कहां जा रहे हो तुम लोग ?
दोनों डरते हैं । पुजारी दोनों की आंखों में देखता है । वनलताएं हंसती हैं ।
पुजारी : (ऊपर आंखें करके) शांत !
वनलताएं : हूं हूं…. हूं हूं…. हूं हूं………
वनलताएं चुप हो जाती हैं ।
पुजारी : (राजीव से) बताओ !
राजीव : हम लोग प्रयागराज जा रहे थे ।
पुजारी : सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग से क्यों नहीं गए ?
राजीव : वह रोड बहुत खराब है, ऐसा सुना है । …..बाबा, कोई मेकेनिक मिलेगा ?
पुजारी : नहीं ।
राजीव : छोटा-मोटा भी ?
पुजारी : कोई नहीं है ।
राजीव : ट्रैक्टर मेकेनिक ?
पुजारी : नहीं हैं ।
मनो : ओह ……बिल्कुल नई कार है । पता नहीं क्या हो गया इसको ?
पुजारी : गंगास्नान करने जा रहे हो ?
मनो : ….. जी हां । गंगास्नान करने ।
राजीव : नेटवर्क भी नहीं मिल रहा ! मिश्रा को फोन करना बहुत जरूरी है ।
पुजारी : उस कोने पर मिलेगा ।
राजीव : क्या ?
पुजारी : नेटवर्क ।
राजीव : जी ।
राजीव कोने में जाता है ।
पुजारी : आ कहां से रहे हो तुम लोग ?
मनो : जबलपुर से ।
राजीव : हैलो ! हैलो ! अरे मिश्रा जी ! …..देखिए मेरी कार खराब हो गई है…. हां ।
… हम लोग आज नहीं आ पा रहे…. रास्ते में ही रुक गए हैं । कल सुबह कार ठीक होने
पर चलेंगे । दोपहर तक पहुंच जाएंगे । बता देना पार्टी को । हां हां, डील पक्की है ।
रजिस्ट्री कल ही होगी । पोस्टपोन न कराइएगा । बार-बार आना नहीं हो पाएगा ……….
पुजारी : जमीन बेच रहे हो ?
मनो : नहीं । कैसी जमीन ? हम लोग तो गंगास्नान के लिए जा रहे हैं ।
वनलताएं : ही ही ही …. हम लोग तो गंगा-स्नान के लिए जा रहे हैं ! ही ही ही …..
पुजारी शांत कराने के लिए ऊपर देखता है ।
हूं…. हूं…. हूं…. हूं……
चिड़ियों का अजीब स्वर । पुजारी हंसता है । मनोरमा डर जाती है ।
मनो : राजीव !!
राजीव दौड़कर आता है ।
राजीव : क्या हुआ ?
पुजारी : झूठ इस जगह नहीं चलता ।
राजीव : झूठ ? कैसा झूठ ?
पुजारी : (ऊपर की ओर मुंह करके) कैसा झूठ ?
वनलताएं : हम लोग तो गंगास्नान के लिए जा रहे हैं । ही ही ही ……
मनो अपराध-भाव से राजीव की ओर देखती है । राजीव समझ जाता है ।
राजीव : दरअसल पुरखों की एक जमीन है बाबा, प्रयागराज में । उसे ही बेच रहे हैं ।
मनो : बड़ी मुश्किल से तो एक खरीददार मिला है । न बिकी, तो ऐसे ही चली जाएगी वो
जमीन । कोई न कोई कब्जा कर लेगा और हमें कुछ न मिलेगा….
पुजारी : क्यों नहीं बिक रही है ?
राजीव : कुछ तो एनक्रोचमेंट है … और कुछ ….
पुजारी : और कुछ ?
राजीव : कुछ वहां के लोग अफवाह फैलाए हुए हैं ।
पुजारी : अफवाह ?
मनो : अब बता भी दो ….
राजीव : यही कि वो जमीन शापित है…. वहां पर भूत हैं ! ह ह ह …. मैं इन चीजों को नहीं मानता..
वनस्पतियों की विचित्र ध्वनियां ।
पुजारी : मैं भी नहीं मानता ।
पुजारी मुस्कराता है ।
राजीव : वो क्या है बाबा कि उस जमीन पर पेड़ लगे हैं, ऐसे ही घने बड़े-बड़े पेड़… काफी घनी
छाया रहती है तो पार्क बना लिया लोगों ने । बच्चे खेलते हैं वहीं । बुजुर्ग हवा खाते हैं ।
कुछ अपना कबाड़ भी रख लिए । ऐसे में जमीन कही बिक न जाए, तो अफवाह फैला
रखी है कि उसमें भूत रहता है… जो भी खरीदने की कोशिश करता है… मर जाता है ।
आई डोंट नो कोई मरा या नहीं लेकिन …. शिट !
पुजारी : हूं । …. तो यह बात है …….. खरीददार क्या करेगा उस जमीन का ?
राजीव : मल्टी स्टोरी बनाएगा.. ऐसा ही हो रहा है आजकल….
मनो : वैसे भी हमें इससे क्या मतलब ! हमें तो पैसा मिल जाए बस ।
राजीव : करोड़ों की जमीन है बाबा करोड़ों की !
वनदेवियां हंसती हैं ।
मनो : लेकिन पूरा पैसा हम खाते में लेंगे । अपने साथ लेकर नहीं चलेंगे और ऐसी बिगड़ने
वाली कार में तो हरगिज नहीं ।
पुजारी : वो करोड़ों की जमीन है तो… पैसा तो आएगा ही तुम्हारे पास…. (अचानक मुद्रा बदल
जाती है ।) लेकिन वो करोड़ों की कैसे हुई ? बीस लाख से ऊपर नहीं होगी वो….
राजीव : अरे क्या कह रहे हैं बाबा…. (अचानक खयाल आया…) आपने देखी है वो जमीन ?
पुजारी : नहीं । मैं कहीं नहीं गया । यहीं हूँ । शुरू से ही ।
राजीव : तो आप कैसे कह सकते हैं कि वह जमीन बीस लाख से अधिक की नहीं ?
पुजारी : मुझे मालूम है ।
राजीव : कैसे ? जब आपने उस जमीन को देखा नहीं, आप यहां से बाहर नहीं निकले,
तो आपको कैसे मालूम कि वह बीस लाख से ऊपर की नहीं है ?

चिड़ियों का कलरव ।

क्रमशः …..अगला भाग प्रकाशित होगा, बुधवार 15 दिसम्बर

नोट : इस आलेख का आंशिक या पूर्ण उपयोग, मंचन या किसी भी रूप में करने से
पहले © योगेश त्रिपाठी से लिखित अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है अन्यथा
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About the author

योगेश त्रिपाठी

जन्म (18 जून सन् 1959) और शिक्षा, बघेलखंड के केंद्र रीवा (म.प्र.) में । साहित्य कला परिषद दिल्ली सरकार द्वारा तीन बार मोहन राकेश पुरस्कार प्राप्त - मुझे अमृता चाहिए (2002), केशवलीला रामरंगीला (2011) एवं चौथी सिगरेट (2018) । आकाशवाणी महानिदेशालय नईदिल्ली द्वारा दो रेडियो नाटक पुरस्कृत - शत्रुगंध (2002) और लकड़ी का पुल (2016) । रीवानरेश महाराज विश्वनाथसिंह रचित हिंदी के प्रथम नाटक आनंद रघुनंदन का संपादन व बघेली रूपांतरण । बाणभट्ट कृत कादंबरी का संपादन व हिंदी नाट्यांतरण । अब तक 60 से अधिक रेडियो नाटक और 44 छोटे-बड़े मंचीय नाटकों का लेखन/ नाट्य रूपांतरण । देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में लगभग 40 निर्देशकों के द्वारा दो सौ मंचन । रंगकर्म - होरी, बिन बाती के दीप, राग दरबारी, होइहैं वहि जो राम रचि राखा, प्रलय की दस्तक, कालचक्र, गबरघिचोर, देह तजों कि तजों कुलकानि, ताजमहल का टेंडर, अभिज्ञान शाकुंतल (कालिदास नाट्य-समारोह 2009), कोर्टमार्शल, छाहुर, रानी लक्ष्मीबाई, फूलमती आदि नाटकों का निर्देशन । होइहैं वहि जो राम रचि राखा, गबरघिचोर और छाहुर (मध्यप्रदेश नाट्य समारोह 2005) नाटकों में बघेली नाट्य-युक्तियों का सृजनात्मक प्रयोग । बघेलखंड के पारंपरिक नाट्य-रूपों के संकलन, अभिलेखन और आधुनिक रंगमंच पर इनके सृजनधर्मी प्रयोग से नई नाट्यभाषा और नाट्य-युक्तियों की खोज में संलग्न । पुस्तकें - 1. कागज पर लिखी मौत 2. हस्ताक्षर 3. दो रंग नाटक - मुझे अमृता चाहिए और युद्ध 4. ता में एक इतिहास है 5. रंग बघेली (बघेली नाट्यसंकलन) । 6. दो नाटक - शत्रुगंध और ऑक्सीजन 7. आदि शंकराचार्य 8. 1857 : एक अविजित विजय

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