कविता काव्य कौमुदी

अशेष

टुपी जाह्नवी सिंह II

फ़ुरसत में बताएंगे ज़िन्दगी का सिला
जिस दिन गला रुद्घ न होगा दर्द से
एक मोटी दीवार की ओट से विचार
खुल जाएंगे निर्भय होकर खुद ही
फिर आसान होगा मेरा समझाना
और तेरा भी समझना उस दिन
जिस दिन खोना शेष न रह जाएगा कुछ
न ही बंधन रह जाएगा हमारे बीच
इतना भी नहीं कि आंखें नम हो
इतना भी नहीं कि तेरी आत्मा भर आए
पर, इतना अवकाश कहां उस दिन का!
जिस दिन हम खाली आ सकें!
चलो इस प्रतीक्षित दिन से भी तुम्हें
मुक्त कर देते हैं तहे दिल से
क्योंकि ऐसी मुक्ति भी सम्मान है
उस पवित्र भावना के पक्ष से
हो जाएंगी एकांत में विसर्जित जिस दिन
अतीत की आत्म गाथा इस मन से
तू हवा में महसूस कर लेना वेदना के ख़त
या नहीं, तो कुछ गढ़ ही लेना अपनी समझ से
जो आसान लगे समझ लेने में
क्योंकि तेरी समझ से मुझे शिकायत नहीं
तू भी तो हिस्सा है इसी दुनिया का
और फिर सोचने पर वश है किसका !

About the author

टुपी जाह्नवी सिंह

जन्म स्थान- भागलपुर, बिहार
रचनाएं - कविता, लघुकथा,स्क्रिप्ट राइटिंग, संपादकीय लेखन।
एम. ए. (हिन्दी)- पटना विश्ववद्यालय
शोधार्थी ( पीएच.डी.) रांची विश्व विद्यालय

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