डॉ. एके अरुण
विगत दो वर्षों से दुनिया महामारी का दंश झेल रही है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण इस कोरोना संक्रमण की वजह से चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है। देश में सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक संकटों ने यहां के नागरिकों को भविष्य के प्रति आशंकित कर रखा है। अभी भी महामारी का खतरा टला नहीं है और स्वास्थ्य की कई चुनौतियां लोगों के जीवन को प्रभावित किए हुए है। इसी पृष्ठभूमि में महज कुछ ही दिनों बाद देश की वित्तमंत्री वर्ष 2022-23 का आम बजट पेश करने वाली हैं। यह मौजूदा सरकार के दूसरे कार्यकाल का चौथा बजट होगा। आने वाले बजट में देश के विभिन्न तबके और क्षेत्र की अपनी-अपनी उम्मीदें हैं लेकिन मौजूदा दौर में स्वास्थ्य का क्षेत्र सबसे अहम है और यह समय का तकाजा भी है कि बजट में स्वास्थ्य के विषय को विशेष क्षेत्र के रूप में चिह्नित कर उस पर गंभीरता से काम किया जाए।
स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े संगठनों और कंपनियों की मांग है कि स्वास्थ्य का बजट बढ़े और सरकार स्वास्थ्य ढांचे को और मजबूत करे। चर्चा है कि सरकार आगामी बजट में स्वास्थ्य पर आबंटन को 40.50 फीसद तक बढ़ा सकती है। वर्ष 2020-21 की बात करें तो सरकार ने स्वास्थ्य के लिए लगभग 2.38 लाख करोड़ रुपए आबंटित किए थे। पिछले बजट में ही सरकार ने कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए 14,000 करोड़ रुपए खासकर टीके बनाने के लिए आबंटित किए थे। हो सकता है आगामी बजट में इन रकमों में वृद्धि हो, लेकिन सवाल है कि स्वास्थ्य बजट तो आबंटित हो जाएंगे, लेकिन यह रकम खर्च कैसे होती है यह मूल्यांकन न तो गंभीरता से होता है और न सरकार इसमें रुचि लेती है। यदि इन खर्चों को देखें तो ये कुल जीडीपी का मात्र 1.3 फीसद है जबकि इसे तीन से पांच फीसद होना चाहिए।
पिछले दो साल से देश में कोरोना के आतंक के दौरान सबने देखा कि सबसे बुरी हालत मेहनतकश गरीब लोगों की थी। सरकारी अस्पताल लगभग नकारा थे। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 85 फीसद अस्पताल और उपचार केन्द्र धन के अभाव में महज ढांचे के रूप में खड़े हैं। कोरोना की दूसरी लहर में हुई बड़े पैमाने पर मौत का तो ठीक से आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह तो आम लोगों को भी पता है कि कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों की मौत का आंकड़ा सरकारी रजिस्टर में दर्ज नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि आगामी बजट में से क्या प्रावधान किए जाएं कि लोगों को बीमारी/महामारी से होने वाली मौत से बचाया जा सके।
बजट 2022 में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र में क्षमता बढ़ाने की प्राथमिकता पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। देश ने देखा कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी सरकारी अस्पतालों का ढांचा और संरचना न तो पर्याप्त है और न ही आज की आवश्यकताओं के अनुरूप। अस्पतालों की विभिन्न आकस्मिक हालातों से निपटने के लायक बनाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। प्रत्येक अस्पताल को मेडिकल इमरजंसी की जरूरतों के मुताबिक सक्षम बनाना,आक्सीजन प्लांट, सर्जरी की समुचित व पर्याप्त व्यवस्थाए आवश्यक व जीवनरक्षक दवाओं की हर समय उपलब्धता, प्रत्येक अस्पताल में समुचित एम्बुलेन्स बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल व्यवस्था साफ सफाई आदि को सुनिश्चित करना एवं सुदृढ़ बनाना बेहद जरूरी है। कोरोनाकाल में हालांकि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियां दिखीं, लेकिन हमारे देश में तो स्थिति विस्फोटक और डरावनी थी। बजट 2022 में यदि इन तथ्यों को ध्यान में रखा गया तो शायद कुछ सार्थक हो पाएगा।
कोरोना काल के अनुभव बताते हैं कि महामारी की अफरातफरी में सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को उठानी पड़ती है। आगामी बजट में यह उम्मीद और अपेक्षा है कि सरकार आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए जिला एवं प्रखंड स्तर पर सक्षम अस्पतालों की व्यवस्था करे। आज भी कई प्रदेशों में जिला स्तर के अस्पताल मरघट की तरह दिखते हैं। वहां न तो पर्याप्त चिकित्सक हैं और न ही दवाइयां। व्यवस्था की तो बात ही न करें। यदि देश के 748 जिलों के अस्पताल ठीक होते तो महामारी के दौरान ऐसी अफरातफरी नहीं मचती।
तस्वीर : साभार गूगल
भारत में अभी प्रशिक्षित चिकित्सकों की संख्या संभवत: 13 लाख होगी जो देश में 15.20 हजार व्यक्ति पर एक ही दर से बैठेगी। लेकिन प्रति दस हजार व्यक्तियों पर एक चिकित्सक की उपलब्धता को यदि लक्ष्य माना जाए तो सन 2050 तक 20.7 प्रतिशत चिकित्सक और चाहिए होंगे। सच्चाई तो यह है कि प्रशिक्षण के बाद लगभग 10.20 फीसद चिकित्सक अपना व्यवसाय छोड़कर किसी और धंधे में चले जाते हैं। पेशेवर चिकित्सकों की शिक्षा के निजीकरण के बंद बाजार में व्यावसायिक चिकित्सकों की भरमार है। चिकित्सा सेवा के स्वभाव में परिवर्तन एवं देश में उपभोक्तावाद के हावी होने के बाद अधिकांश चिकित्सक निजी क्षेत्र के अस्पतालों में जाना पसन्द करते हैं। दूसरी ओर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था धीरे-धीरे उपेक्षित एवं नकारा होती जा रही है। विगत कुछ वर्षों में विकित्साशिक्षा से संबंधित सरकारी नीतियों में जटिलता की वजह से भी दिक्कतें आ रही हैं। कहा जा रहा है कि देश में 70 हजार ऐसे डाक्टर हैं जिन्होंने विदेश में पढ़ाई की है और वे भारत में अपना रजिस्ट्रेशन चाहते हैं। इसके अलावा देश में नकली डाक्टरों की भी एक बड़ी संख्या है जिसे सरकार पकड़ नहीं पा रही है।
भविष्य में स्वास्थ्य चुनौतियों से लड़ने के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में बजट बढ़ाने के साथ-साथ ढांचे में बुनियादी परिवर्तन करने की भी जरूरत है। सरकार यदि निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दे तो स्थिति बेहतर हो सकती है। बढ़े बजट मात्र से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता। अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अच्छी स्वास्थ्य नीति और उसका सफल क्रियान्चयन का होना जरूरी है। फौरी तौर पर ध्यान देने योग्य बिंदु निम्नलिखित हो सकते हैं। सरकारी अस्पतालों की क्षमता बढ़ाना, डाक्टरों की संख्या को बढ़ाना, टीकाकरण मुफ्त उपलब्ध कराना, जेनेरिक दवाओं के दुकान प्रखंड स्तर पर खोलना, सरकार द्वारा सभी नागरिकों का स्वास्थ्य बीमा, अस्पतालों को चेरिटेबल संस्था के दायरे में लाने आदि प्रावधानों से सरकार देश की स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत कर सकती है।
हमारे देश में आयुष पद्धतियां चिकित्सा के 50 फीसद मामले को सफलतापूर्वक देख सकती हैं। वैसे तो होमियोपैथी और आयुर्वेद में उच्च अध्ययन के बाद गंभीर रोगों के इलाज के लिए आयुष चिकित्सक आगे आ रहे हैं और सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार आगामी बजट में आयुष एवं होमियोपैथी के लिए विशेष बजट का प्रावधान कर देश की आधी से ज्यादा आबादी के सहज इलाज का रास्ता आसान कर सकती है। अब तो बीमा क्षेत्र भी होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक उपचार के लिए सुविधाएं देने को तत्पर हैं और कई कंपनियां तो कवर भी दे रही हैं। कोरोना संक्रमण के मामले में होमियोपैथी एवं आयुर्वेद की सकारात्मक भूमिका की आम जनता में बड़ी सराहना हुई है। यदि सरकार आगामी बजट में होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक अनुसंधान पर अतिरिक्त बजट आबंटित कर चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों को प्रेरित करे तो स्वास्थ्य और उपचार के क्षेत्र में काफी प्रगति देखी जा सकती है। महामारियों की चुनौती के दौर में आगामी बजट का स्वास्थ्य पर उदार नजरिया एक आशा का संचार कर सकता है। फिलहाल चिकित्सा के क्षेत्र में सरकार के बजट के सकारात्मक होने की अपेक्षा है।
डॉ. अरुण विख्यात जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं। इस आलेख में लेखक के निजी विचार हैं।
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