कविता काव्य कौमुदी

विभय कुमार की तीन कविताएं

विभय  कुमार ” दीपक ” II

1. नये शब्द

ढूंढ रहा था,
कुछ प्यार भरे
नये शब्द
तुम्हारे लिये।
क्योंकि
जो भी 
प्रचलित शब्दावली है,
प्यार की,
इश्क़ की,
मोहब्बत की, 
प्रेम की,
प्रीत की,
उल्फ़त की, 
सबमें प्रयुक्त शब्द
हो चुके हैं
काफ़ी पुराने।
मन नहीं किया
उन्हें दोहराने का
तुम्हारे लिये।
तुम नयी तो
तुम्हारे लिये
कहे जाने वाले
शब्द / सम्बोधन भी
नये ही होने चाहिये ” दीपक “।।

2. आवाज़ की ज़द में 

गगनचुंबी इमारतों में,
रहने वाले
अगर दिल के
भाव भी
ऊँचे रखें
उनमें उच्च विचारों को
संरक्षित करें,
सुरक्षित करें
तो क्या ही
बात हो।
सार्थक हो जाये
ये ऊँचाई।
सिर्फ नारियल ही
न तोडें,
तोडें नीचे झुककर
घासों में उगे 
पीले फूलों को भी।
महत्ता उतनी ही दें,
उन्हें भी।
न हो जायें
इतनी दूर कि
कोई आवाज़ ही
न पहुँच सके ,
उन तक ” दीपक “।।

3. परछाइयाँ

लम्बी होतीं,
छोटी होतीं,
बनती – बिगड़ती,
दिखतीं – छिपतीं,
कभी होतीं,
कभी नहीं होतीं
परछाइयाँ।
साथी अपनी 
अपने से जुड़ीं।
अपने जैसे
रूप और आकार की।
लेकिन
होती हैं
रंग में , 
काली परछाइयाँ।
परछाइयों पर
मत करना
भरोसा कभी भी
न करना इनका एतबार
क्योंकि
कभी भी- कहीं भी “दीपक”,
मौके -बेमौके
साथ छोड़ देती हैं,
परछाइयाँ ।।

About the author

विभय कुमार 'दीपक'

इलाहाबाद ( उ. प्र.) निवासी एक अवकाशप्राप्त वन क्षेत्राधिकारी हूँ ।
जीवन गुज़रा एकान्त के प्राकृतिक सुन्दर एवं आकर्षक माहौल में । ख़्वाब पलते रहे निगाहों में, दिल में और ज़ेहन में भी । कवि हृदय होने के कारण विचार काव्य-रूप में सदैव उमड़ते- घुमड़ते रहते थे।अतः सेवानिवृत्ति के पश्चात पूर्णतः स्वतंत्र होते ही कलम से दोस्ती प्रगाढ़ बना ली । अनुभूतियों का दीपक जला, मन प्रसन्न हुआ और फिर जब कलम उठी तो शब्दों ने जुड़कर पंक्तियों का तथा पंक्तियों ने जुड़कर कविताओं, छंदों, गीत-गज़लों और मुक्तकों का स्वरूप ले लिया । फिर वही अनगढ़ विचार , संवेदनायें विधिवत कागज़ पर उतरने लगीं । ज़मीन से जुड़ा आदमी हूँ इसलिए अपने देहाती - गँवई विचारों के भार से पृष्ठों को लाद दिया । सरलता को ही अपनी क्षमता मानता रहा । साधारण- सामान्य सी ज़िन्दगी में ऊँचे- नीचे रास्तों पर चलते हुये जो कुछ भी दिल ने महसूस किया , दिमाग ने सोचा , होठों ने गुनगुनाया हिम्मत कर आप की सेवा में प्रस्तुत किया जो कि यदाकदा दैनिक जागरण , कादम्बिनी, अहा ज़िन्दगी जैसी पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होता रहा ।
मेरे विभिन्न विधाओं में किये गये प्रयास पुस्तकों के रूप में अलग - अलग प्रकाशनों से प्रकाशित भी हो चुके हैं :--
१. दीपक की रोशनी ( गीत / गज़ल संग्रह )
२. सितारों सा दीपक ( नवगीत )
३. एक दीपक जला ( नवगीत )
४. दीपक राग ( नवगीत )
५. गज़लों के दीपक ( गज़ल संग्रह )
६. जवाकुसुम ( मुक्तक संग्रह )

सम्पर्क --
मो० 9415279851, 8881739156
ईमेल - vibhai.kumar26@gmail.com

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