विभय कुमार II
II 1 II
इत्तेफ़ाक अच्छा था,
इश्तियाक अच्छा था।
ज़रा ही देर बस बैठे वो,
नसीब ख़ाक अच्छा था।।
II 2 II
बादलों में चित्र देखो,
खेल ये विचित्र देखो।
जो इसे समझा सके,
कोई सच्चा मित्र देखो।।
II 3 II
अदायें उसकी निराली देखी,
हर तरफ चेहरे पे लाली देखी।
सदका उतारने बढ़े जब हम,
जेब अपनी तो खाली देखी।।
II 4 II
ये असली नहीं जाली लगता है,
वक्त कुछ खाली- खाली लगता है।
सोचता हूँ कि कुछ सवाल करूँ,
दिल मेरा एक सवाली लगता है।।
II 5 II
तुमने मेरी दीद चुराई,
दीवाली चुराई, ईद चुराई।
तुम एक शातिर चोर हो जाना,
इन नयनों की नींद चुराई।।
II 6 II
ज़िन्दगी में यही बस काम किया,
जो लगा गिरने उसे थाम लिया।
बस इसे बना ली आदत हमने,
न इसका कोई भी ईनाम लिया।।
II 7 II
आने का वादा था,
ठीक ही इरादा था।
पर मुझे क्या मालूम,
झूठ कुछ ज़्यादा था।।
II 8 II
अगर बरसात हो जाये,
रुको तुम, बात हो जाये।
मैं बातें दिल की कह दूँ,
और मेरी बारात हो जाये।।
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