अनिमा दास II
यह तिथि पूर्णिमा की नहीं, यह निशि भी नहीं नीलांबरी
होती संचरित चतुरपार्श्व चतुर्दशी चंद्रमा की अल्पना
यह चिह्न..नहीं है चुंबन, यह नारी में निःसत्वा ईश्वरी
मेरे संतर्पित स्वप्न में जो रही कभी बनकर एक संभावना ।
यह तीर्थ..एक प्रभास नहीं…. यह वन नहीं वृंदावन
अंगारों का अंकन है यह अतिअनुभूत अनंग अतीत
यह मेघ..आषाढ़ नहीं … इस वर्षा में कहाँ है श्रावण ?
शरद के शिशिर में नहीं लुप्त होता मेरा हेमंत या शीत ।
यह ऋतु..वसंत नहीं, इस कुहूरव में है कदंब का शोक
नहीं लौटेगी फूलमती…म्लान होगा मेरा फाल्गुनी मास
यह निर्जन निदाघ स्वयं ही है निर्मम निर्मोही निर्मोक
प्रेम -पाँस समीप…करेगा क्रंदन – मेरा कल्पित कैलास ।
यह नक्षत्र नहीं है..स्वाती.. यह नदी भी है नहीं सरस्वती
मेरे शब्दों के स्कंध पर किंतु सदा रहेगी तुम्हारी स्मृति बन सती ।
मूल ओड़िआ सोनेट – श्री गिरिजाकुमार बलियारसिंह
हिन्दी अनुवाद सोनेट – श्रीमती अनिमा दास
अत्यंत सुंदर काव्यानुवाद के लिए अनिमा दास जी को हार्दिक बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं 💐💐😊