केशव मोहन पांडे II
[विनीत मोहन ‘औदिच्य’ द्वारा अनूदित ‘ओ प्रिया’ ,पाब्लो नेरुदा के ‘100 लव सोंनेट्स’ का हिन्दी अनुवाद है ।प्रस्तुत है ‘ओ प्रिया’ सोनेट -संग्रह के पहले सोनेट का ‘भोजपुरी’ में अनुवाद केशव मोहन पांडे जी द्वारा ]
1
मेटिल्डा : नाँव एगो पौधा चाहें एगो चट्टान चाहे एगो दारू के,
ओह सगरो सामानन के, जवन धरती पर जनम लेली आ होला अंत
ऊ शब्द जवना के विकास में होला जनम, बिहान के
जवना के पूरा रूप में फुटेगा नेमुआ के अँजोर।
काठ के बनल पोत ओह नाँव के सहारे होले पार,
आ आगि जस नीला समुन्दर के लहर घेर लेला ओहके :
एहके आखर ओह नदी के पानी ह
जवन बरसेला हमरा सूखल करेजा से।
ऐ ! नाँव जवन रहेला उघार उलझल लत्तर में
एगो छुपल सुरंग में खुलेवाला दरवाजा जइसन
विश्व के सुगंध काओर !
गरम मुँह से करऽ हमरा पर आक्रमण : करऽ हमरा से सवाल,
राति में अपना आँखि से, जदि चाहऽ तऽ-
पोत जइसन चले द नाँव के सहारे; दऽ हमरा के ओहिजा विश्राम।
*मेटिल्डा- कवि पाब्लो नेरुदा के प्रेयसी मेटिल्डा उरूशिया, के बाद में उनकर तिसरकी पत्नी बनली।
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(१)
मेटिल्डा नाम एक पौधे या एक चट्टान या एक मदिरा का,
उन वस्तुओं का, जो धरा पर लेती हैं जन्म और होती हैं प्राप्त अंत कोः
वह शब्द जिसके विकास में होता है उदय, प्रभात का
जिसकी पूर्णता में प्रस्फुटित होता है नीबुओं का प्रकाश।
काष्ठ निर्मित पोत उस नाम के सहारे होते हैं पार,
और अग्नि सी नीली समुद्री लहरें घेर लेती हैं उन्हें :
इसके अक्षर हैं उस सरिता के जल जो बरसते हैं मेरे शुष्क हृदय से
ओ ! नाम जो रहता है अनावृत उलझी लताओं में
एक गुप्त सुरंग में खुलते दरवाजे सा
विश्व को सुगंध की ओर !
उष्ण मुख से करो मुझ पर आक्रमण करो मुझसे प्रश्न,
रात्रि में अपनी आँखों से, यदि चाहो तो
पोत सा चलने दो नाम के सहारे; दो मुझे वहाँ विश्राम।
*मेटिल्डा – कवि पाब्लो नेरुदा की प्रेयसी मेटिल्डा उरूशिया जो कालांतर में उनकी तीसरी पत्नी बनी
– विनीत मोहन औदिच्य
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